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tadkeshwar temple, uttrakhand |
4 मार्च 2017 को मेरा लैंसडौन (लैन्सडाऊन) जाने का प्रोग्राम बना। हुआ ऐसा की 3 मार्च को घर में पूजा थी, घर पर कई मेहमान भी आए थे। जिसमे मेरे बडे जीजा जी भी आए। उनको कोटद्वार किसी काम से जाना था। मुझसे साथ में चलने के लिए बोला। मै मना ना कर सका और उनके साथ चलने के लिए सहमति दे दी। कुछ देर बाद पता चला की अब वो एक दिन पहले चलेंगे। क्योकी अब दीदी व मेरा भांजा आयुष भी चल रहा था , उनका लैंसडौन घुमने का कार्यक्रम बन गया था। इसलिए उन्होने होटल मयूर में (गांधी चौक ,लैंसडौन) रूम भी बुक कर दिए थे। अब लैंसडौन तक पहुंचाने व घुमाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी।
4 मार्च की सुबह तकरीबन आठ बजे हम सब कार से लैंसडौन के सफर पर निकल चले। दिल्ली से मेरठ तक सुबह काफी ट्रैफिक मिला। मेरठ शहर से मवाना रोड होते हुए हम मीरापुर पहुंचे यहां से हमने खाने के लिए फल भी लिए। यहां से एक रास्ता सीधा मुजफ्फरनगर चला जाता है। और एक रास्ता खतौली की तरफ जाता है और तीसरा दाहिनी तरफ से बिजनौर की तरफ चला जाता है। हमे बिजनौर वाले रास्ते पर ही चलना था। इसलिए गाडी उधर की तरफ ही मोड दी। थोडा आगे चलने पर गंगा नदी पर बैराज बना है। यहां पर हम थोडी देर रूके और घर से लाए सब्जी व पूरी भी खाई ली। मैने देखा की पास के एक पेड पर बेर लगे हुए थे। मैने थोडे से बेर भी तोडे। कुछ देर बाद हम यहां से चलकर बिजनौर पहुँच गए। बिजनौर से दो रास्ते कोटद्वार जाते है, पहला किरतपुर से नजीबाबाद होते हुए सीधा कोटद्वार। दूसरा बिजनौर से कौतवाली होते हुए नजीबाबाद और फिर कोटद्वार। दूसरा रास्ता पहले रास्ते से कुछ बडा है। लेकिन इस पर ट्रैफिक कम है। इसलिए हमने दूसरा रास्ता ही चुना कोटद्वार पहुंचने के लिए। यह रास्ता सिंगल लेन ही है, लेकिन ट्रैफिक इतना नही है। तकरीबन हम दोपहर के 1बजे कोटद्वार पहुंचे। तकरीबन दिल्ली से हमे कोटद्वार तक पहुँचने में पांच घंटे का समय लग गया.
खोह नदी का पुल पार करते ही सिद्ध बली का मन्दिर दिखाई दे रहा था। मन्दिर एक ऊंचे टीले पर बना है। हमने दूर से ही हनुमान जी को प्रणाम किया क्योकी हम यहां पर कल आएगे। आज हम पहले ताडकेश्वर महादेव मन्दिर जाएगे और फिर बाद मे लैंसडौन। कोटद्वार से हम लगातार खोह नदी के साथ चल रहे थे। तकरीबन दस बारह किलोमीटर चलने पर दुर्गा देवी नामक मन्दिर आया। इसका मुख्य द्वार रोड पर ही है लेकिन मन्दिर दर्शन के लिए नीचे जाना होता है। कार रोड पर पर साईड में खडी कर हम मन्दिर में नीचे चल पडे। थोडा सा चलने पर हम एक गुफा पर पहुंचे । इसी गुफा में माता की मूर्ति व एक शिवलिंग के दर्शन हुए। गुफा में लगभग लेट कर या घुटनो के बल ही जाया जा सकता है। पास में ही एक साधु बाबा बैठे हुए धुनी रमा रहे थे। उन्होने माथे पर धुनी की भभूत भी लगाई। उन्होने इस जगह के बारे में बस इतना ही बताया की यह जगह प्राचीन काल से ही बहुत मान्यता वाली है। पहले यहां पर साधु व तपस्वियों ने बहुत तपस्या की है। मन्दिर के नदी की ओर जाली लगी हुई थी, पता चला की पहले यहां पर जंगली जानवर भी आ जाते थे फिलहाल बंदरो से बचने व कोई नदी की तरफ ना जाए इसलिए यह जाली लगाई हुई है। मुझे यह जगह बहुत सुंदर लगी। खोह नदी का बहाव कम था लेकिन फिर भी इसे देखना अच्छा लग रहा था।
दुर्गा देवी मंदिर से तकरीबन 5 किलोमीटर चलने के बाद दुगड्डा नाम की जगह आती है। जहां से एक रास्ता नीलकंठ महादेव मन्दिर की तरफ चला जाता है। और एक रास्ता गुमखाल की तरफ चला जाता है। लेकिन हम लैंसडौन रोड पर ही चलते रहे। दुगड्डा से तकरीबन 20 किलोमीटर चलने पर सडक दो भागो में बंट जाती है। वहां से एक सड़क लैंसडौन चली जाती है। यहां से लैंसडौन मात्र 6 किलोमीटर ही रह जाता है। और दूसरी सड़क दाहिनी तरफ चली जाती है। जो चमकोट व डौरीयाखाल होते हुए चौखुलियाखाल तक जाती है। वैसे यह सड़क आगे कर्णप्रयाग तक जाती है। लेकिन हमे चौखुलियाखाल से बांयी तरफ जाती एक छोटी सी सड़क पर ही मुडना था। यह सड़क सीधा ताडकेश्वर मन्दिर तक पहुंचा देती है।
हम इसी सड़क पर चल पडे। मुख्य सड़क से ताडकेश्वर मन्दिर तक की दूरी पाँच किलोमीटर है। अब तक हमे चीड का जंगल मिल रहा था , अब हमे बांज व बुरांस का जंगल देखने को मिल रहा था। बुरांस के लाल फूल हर पेड पर दिखाई दे रहे थे, कुछ फूल सड़क पर बिखरे हुए थे जिनको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सड़क पर लाल रंग का गलीचा बिछा दिया हो। बुरांस के फूल का शर्बत बहुत अच्छा लगता है पीने में, यह दिल व दिमाग के लिए बहुत लाभदायक होता है। कुछ ही देर बाद हम ताडकेश्वर महादेव मन्दिर तक पहुँच गए। एक बडे सी खाली जगह पर गाडी खडी कर दी। दो दुकानें भी यहां बनी थी लेकिन फिलहाल बंद थी। गाडी खडी कर हम मन्दिर की तरफ चल पडे। मन्दिर लगभग तीन चार सौ मीटर दूर बना है। अब एक चीज पर ध्यान गया। अब तक हमको यहां पर बांज व बुरांस के पेड ही दिख रहे थे अब हमको यहां पर देवदार के गगनचुम्बी पेड दिख रहे थे। जबकी यह पेड हमे आसपास व पूरे रास्ते में नही दिखे। मैने मोबाईल की एक एेप से यहां की ऊंचाई नापी तो समुंद्र की सतह से 1824 मीटर ऊंचाई आयी। मन्दिर से पहले एक आश्रम व धर्मशाला भी बनी है। जहां पर आप रात में रूकना चाहे तो रूक सकते है। एक व्यक्ति वहां पर मुझे मिला। नाम याद नही पर सरनेम भट्ट था उसने बताया की आपको यहां पर 1100 रू मे फैमली के लिए कमरा मिल जाएगा। धर्मशाला से कुछ आगे नहाने के लिए कुंड भी बने है।
मन्दिर से कुछ पहले रास्ते पर दोनो तरफ घंटियां लगी हुई है। जो वहां के शांत माहौल को चीरती हुई मन की ध्वनि को जगाती है। कुछ ही पल मे हम मन्दिर परिसर में आ गए। मुख्य मन्दिर बीच में बना है। मन्दिर के आसपास बहुत से देवदार के पेड लगे है। मन्दिर के पुजारी ने हमे एक पेड दिखाया जो ऊपर जाकर तीन भाग में बंट गया था और त्रिशूल जैसे दिख रहा था। मन्दिर में जाकर शांति से बैठ गए, पुजारी जी ने प्रसाद दिया । अच्छी बात यह रही की मैने जब मन्दिर में फोटो लेने चाहे तो पंडित जी ने मना नही किया। उन्होने बताया की यह शिव की मूर्ति है। शिव ने यहां पर तपस्या की थी। मन्दिर में एक माता का मन्दिर और भी है। मन्दिर व देवदार के घने पेड़ो के जंगल के बीच केवल हम ही थे। पुजारी जी ने बताया की लोगो ज्यादातर सुबह आते है। हम लगभग 3:30 पर पहुँचे थे। हमारे पूछने पर पुजारी जी ने बताया की यहां पर कभी कभी जंगली जानवर भी आ जाते है। जिसमे भालू, हिरण व जंगली सुअर मुख्य है। कुछ समय मन्दिर परिसर में बिताने के बाद हम लोग वापिस लैंसडौन की तरफ चल पडे। शाम के लगभग पांच बज चुके थे हमे निकलते निकलते । लैंसडौन शहर में प्रवेश करने के लिए प्रति व्यक्ति एक रूपया देना पडा व 24 घंटे के लिए गाडी का शुल्क 100 रूपया भी देना पडा। थोडा चलने के बाद गांधी चौक आ गया, जहां पर होटल मयूर में हमारे कमरे बुक थे। कमरो मे पहुंचे और खाना वही मंगा लिया और जल्दी ही सो गए।
ताडकेश्वर मन्दिर की कहानी :- कहते है कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां इस जगह विश्राम किया था, विश्राम के समय उन्हें सूर्य की किरणों की गर्मी से बचाने के लिये मां पार्वती ने देवदार के सात वृक्ष लगाये थे। आज भी ये सातों वृक्ष मन्दिर के अहाते में हैं।
एक कहानी यह भी है की एक योगी बाबा यहां पर रहा करते थे। शरीर पर भस्म लगाए व हाथ मे चिमटा लिए यहां पर रहते थे लोगो की हरसंभव मदद किया करते थे। जो व्यक्ति बुरा कार्य करता था, जैसे किसी पशु तथा पक्षियों को सताता था। यह बाबा उन लोगो को बहुत ताडते थे। ताडना का मतलब होता है दंड देना, डांटना या तेज आवाज मे बोलना। वह बाबा अपने ताडने के कारण ताडकेश्वर बाबा कहलाने लगे। और यह जगह ताडकेश्वर मन्दिर।
tadkeshwar mahadev video
अब कुछ फोटो देखे जाएं.........
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बेर तोडते हुए। |
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kotdwar,कोटद्वार |
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sidhbali temple, सिद्धबली मन्दिर, कोटद्वार |
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रास्ते के नजारे ऐसे हर मोड पर मिलेंगे। |
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khoh river, खोह नदी |
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durga devi temple , दुर्गा देवी मन्दिर |
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दुर्गा मन्दिर थोडा नीचे बना है, सड़क से.. मन्दिर तक जाती सीढियाँ |
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गुफा के बाहर हनुमान जी |
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tample cave in backside , गुफा पीछे दिखती हुई |
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lizard |
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durga devi cave , मन्दिर में यह छोटी सी गुफा ही है जिसमे एक शिवलिंग व एक माता की प्राचीन मूर्ति है। |
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durga devi temple |
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duggada, दुगड्डा |
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pine forest , चीड का जंगल |
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left side go for lansdowne and right for tadkeshwar temple , एक मोड |
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turn left side for temple |
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reached tadkeshwar temple , ताडकेश्वर मन्दिर पर पहुँच गए। |
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मन्दिर तक बना रास्ता |
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me (sachin) and my jiju |
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ayush |
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जल का कुंड |
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मन्दिर के पास बनी एक धर्मशाला। |
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ताडकेश्वर का इतिहास |
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मन्दिर |
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मन्दिर का प्रवेश द्वार |
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main murti in tadkeshwar temple ( shiva), मन्दिर की मुख्य मूर्ति |
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me |
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देवदार के एक पेड पर ऊपर त्रिशूल बना हुआ है, जबकी बाकी पेड सीधे है। |
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सड़क के एक मोड पर यह जनाब भी मिले। |
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sun set |
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sun set |
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hotel mayur , lansdowne |
बढ़िया लिखा है सचिन भाई आप ने और बाद मे हिस्टोरिकल पॉइंट लिखकर व्रतांत पूर्ण कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 👍👍
धन्यवाद अजय भाई।
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा है 👍👍👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुप्ता जी।
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुरू जी।
हटाएंशानदार तस्वीरें और जानकारी से भरी बढ़िया पोस्ट .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नरेश जी।
हटाएंजय जो ताड़केश्वर महादेव जी की
जवाब देंहटाएंफोटो गज़ब और खूब डाली हैं "दिल से"
धन्यवाद कौशिक जी "दिल से"
हटाएंबहुत बढ़िया सचिन भाई जी.. जीवंत यात्रा वर्णन खूबसूरत चित्रों के साथ..
जवाब देंहटाएंकृपया ध्यान दीजिए कही कही हिंदी वर्तनी लिखने में अशुद्धि रह गयी है...
धन्यवाद रितेश जी.. लेख पढने व लेख सुधार कार्य पर ध्यान दिलाने के लिए ।
हटाएंदिल से लिखी गयी पोस्ट । एक बार स्वयं भी पढ़िए कुछ अशुद्धियाँ मिल जायेगी । जय हो बाबा ताड़केश्वर की
जवाब देंहटाएंनमस्कार मुकेश जी। बहुत बहुत शुक्रिया आपका अशुद्धियाँ पर ध्यान देने के लिए।
हटाएंजय ताडकेश्वर धाम की ,बहुत सुंदर पोस्ट विस्तृत जानकारी के साथ |ये रास्ता वाकई बहुत सुंदर है कोटद्वार से लैंसडाउन |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपेश जी। रूपेश भाई आपने सही कहा लैंसडौन व वहा तक का रास्ता बहुत सुंदर है।
हटाएंbahut badhiya sachin ji, pahad ki jagah kitna aakrshit karti hai na,photo bahut badhiya lage khastor par sunset vale
जवाब देंहटाएंहर्षिता जी पहाड सबको आकर्षित करते है और हम उधर खीचे हुए चले जाते है। वैसे यह बात आप से ज्यादा कौन जान सकता है।
हटाएंबहुत अच्छा लगा आपका कमेंट देखकर। धन्यवाद आपका
बहुत खूब ! पहाड़ अब धीरे धीरे सबके प्रिय डेस्टिनेशन हो रहे हैं ! शानदार फोटो सचिन भाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी भाई। जैसे जैसे लोगो को पता चल रहा है आने जाने की सुविधा बढ रही है लोग प्रकृति की तरफ आकर्षित हो रहे है और पहाड सब के चहते हो रहे है।
हटाएंबहुत सुंदर और शांत जगह दिख रही है ऐसा लग रहा है सिर्फ आँखे बंद कर के कोलाहल का आनन्द लिया जाय।
हटाएंबस बुआ जी बिल्कुल ऐसी ही जगह है। जैसा आपने वर्णन किया है।
हटाएंलैंसडाउन सुन्दर जगह है, आपने अच्छा यात्रा वृत्तान्त लिखा है। फोटो भी सुन्दर हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शैलेंद्र भाई।
हटाएंआपका लेख मेरे जीवन को प्रेरित करने में मदद करता है, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमेरा यह लेख भी पढ़ें ताड़केश्वर महादेव मंदिर