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बुधवार, 8 मार्च 2017

ओरछा यात्रा (पौधा रोपण व ओरछा से वापसी)

इस यात्रा को शरुआत से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे। 

25, दिसम्बर, 2016

सुबह उठकर पहले चाय के लिए नीचे होटल की कैंटीन में गया। वहा कोई नहीं था। फिर राम राजा मंदिर के पीछे एक दुकान दिखी। बस उसी दुकान पर चाय पी ली और एक पैक करा ली। चाय पीने के बाद छत पर घूम रहा था और सामने ओरछा का महल दिख रहा था। महल के पीछे से सूर्य अपनी लाल किरणों से चमकता हुआ ऊपर आ रहा था। ये द्र्श्य ओरछा  के महल को ओर भी सुंदर बना रहा था। हरिद्वार से आये मित्र पंकज शर्मा जी भी अपना कैमरा लिए इस सुन्दर सुबह का हर पल को कैद कर रहे थे।

बाद में मैं  दैनिक कार्य से निर्वत होकर अपना सारा सामान पैक करके कार में रख आया। पता चला की ग्रुप से कुछ महिलाएं मुकेश पांडेय जी के घर गयी हुई थी, नीचे जाकर इस ग्रुप (मिलन समारोह ) के देख रेख करने वाले पांडेय जी व संजय कौशिक जी को तय पैसे भी दे आया। कुछ ही देर बाद नाश्ता आ गया। नाश्ते में गरमा गर्म पोहा व मावे की गुंजिया खाने को मिली। साथ में आगरा से आये रितेश गुप्ता जी ने आगरे का मशहूर पेठा भी खिलवाया। सब एक बड़ी सी मेज पर बैठे थे। नाश्ता करने के बाद मैंने बेतवा नदी के किनारे बनी छतरिया देखना तय किया। और फिर आज मुझे वापिस भी जाना था। इसलिए मैंने पांडेय जी व अन्य सभी से विदा लेते हुए कहा की यह महामिलन हमेशा स्मरण रहेगा। लकिन संजय जी ने कहा की वृक्ष रोपण कार्य हो जाने के बाद चले जाना। मुझे सभी की बात माननी पड़ी और बेतवा नदी के उसी पार्क में पहुच गए जहां हम कल शाम घूम रहे थे।

फिर से वही मज़ाक मस्ती चालू हो गयी। ज्यादातर सभी आपस में पहली या दूसरी बार ही मिल रहे थे। लकिन लग नहीं रहा था की इनसे पहली या दूसरी ही मुलाकात है, लग रहा था की हम एक दूसरे को काफी समय से जानते है। यहाँ पर मुझे एक बुजुर्ग़ व्यक्ति भगवान सिंह बुन्देला मिले। उन्होंने बताया की यहाँ पर जंगल में हिरन, नील गाय , जंगली सूकर , सियार व बन्दर ही है। और उन्होंने बताया की इसी रोड से आगे पाँच किलोमीटर आगे जाने पर एक नदी भी जहा आप कुछ समय बिता सकते हो। उन्होंने मुझे वहा लगे पेड़ो के नाम भी बताये (जो मुझे याद नहीं )। उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। वो पहले यही काम करते थे लकिन अब रिटायर हो चुके है। मैंने उनको धन्यवाद किया।

मुकेश पांडेय (दरोगा बाबू ) व ओरछा वन के फारेस्ट ऑफिसर भी वहाँ आ चुके थे। उन्ही की देख रेख में वृक्ष (पौधे) लगाने का व प्रकृति को बचाने का यह महत्वपूर्ण कार्य किया गया। एक पौधा दोस्ती के नाम का मैंने भी लगाया। पता नहीं मैं कब ओरछा आऊँ या ना आ पाऊ लकिन इतना तय है की मैं ओरछा से यादें ही संजो कर ही नहीं ले जा रहा था, बल्कि पौधे के रूप में कुछ देकर भी जा रहा था। सभी दोस्तों से मिलकर व दोबारा मिलने का वादा कर में ओरछा से चल पड़ा। ओरछा से लगभग 11 :40 पर हम चले। पहले मेरा प्रोग्राम बना की ग्वालियर में सिंधिया हाउस व सूर्य मंदिर देखा जाये। लकिन लगभग दोपहर के 3 बज चुके थे। और फिर इतना समय भी नहीं था यह जगह देखी जाये इसलिए मैंने सीधा घर जाना ही तय किया और मैं ग्वालियर रोड से वापिस कार मोड़कर दिल्ली की तरफ चल पड़ा।

यात्रा समाप्त। 
पिछली पोस्ट। 

अब कुछ फोटो देखे जाये। ........ 




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भगवान सिंह 





पौधा रोपण 







12 टिप्‍पणियां:

  1. ट्रेन देर होने के कारण आपसे मुलाकात न हो पायी ,शायद जल्द ही फिर मिलु आपसे । पेड़ लगाना इस मिलन की दूसरी सबसे पड़ी उपलब्धि है ।

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    1. किशन भाई आपसे नही मिल पाया यह बात आज भी निराशा देती है। लेकिन भविष्य में जल्द ही मिलेंगे । धन्यवाद आपका सवांद बनाए रखें।

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  2. उत्तर
    1. जी पांडेय जी यह यात्रा मन में बस चुकी है ।

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  3. बढ़िया पोस्ट के साथ शानदार फोटो .....

    ओरछा तो हम दिल में समा गया है ....ये यादें न भूल सकते है ..

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    1. धन्यवाद रितेश जी।
      वो पल हमेशा याद रहेंगे ।

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  4. बहुत बढ़िया सचिन जी 👍शानदार फ़ोटो औऱ विवरण

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  5. जिन लोगों तक भी ये पोस्ट जायेगी उन्हें एक सीख , एक सन्देश जरूर मिलेगा कि घुमक्कड़ी सिर्फ मौज मस्ती ही नही , सामाजिक और पर्यावरण का सही सन्देश देना भी इसका मकसद हो सकता है ! अच्छा लगा सचिन भाई

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    1. धन्यवाद योगी जी। आपने बहुत सही कहा है। हम लोग घुमने बाहर जाते है, जहां जहां हम जाए वहा पर साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए। हम लोगो ने एक कदम ओर आगे बढकर दोस्ती के पौधे लगाए ओरछा में। आज थोडा सा पर्यावरण की तरफ भी ध्यान देना आवश्यक है।

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  6. बहुत ही बढ़िया article है ..... ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)

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