19 जनवरी 2018
काफी दिन से कही घुमने जाना नही हो पा रहा था। मन कही जाने को कह रहा था। एक बार मन में आया की उत्तराखंड में कही जाया जाए और बर्फ में खेलने का आनंद लिया जाए। परंतु उत्तराखंड में भी कही जाना सुनिश्चित नही हो पा रहा था। एक दिन मन में एक विचार आया की क्यों ना जयपुर ही चला जाए? वैसे भी जयपुर जाने का प्लॉन हर बार रद्द हो जाता रहा है। मैं पहले भी दो दफा जयपुर जा चुका हूं, लेकिन परिवार संग नही गया था। श्रीमती जी नें भी जयपुर जाने के लिए हामी भर दी। वैसे भी वह कई साल से जयपुर जाने को बोल भी रही थी। लेकिन हर बार उधर जाना ना हो पा रहा था इसलिए मैने बोल दिया की हम कल सुबह जयपुर के लिए निकल चलेंगे। इसलिए रात में ही पैकिंग की गई और अगले दिन बेटे की स्कूल से एक दिन की छुट्टी करा ली गई। क्योकी उससे अगले दिन शनिवार था और उसकी स्कूल की छुट्टी रहती है, और संडे रात तक हम वापिस भी आ जाएगे। अब हमारे पास तीन दिन थे, जयपुर घुमने के लिए और यह ज्यादा नही तो कम भी नही थे। तो हमारा जयपुर भ्रमण कार्यक्रम पूरी तरह से बन चुका था।
19 जनवरी को लगभग दोपहर के 11 बजे हम दिल्ली से जयपुर के लिए निकल चले। दिल्ली के महिपाल पुर होते हुए गुरुग्राम पहुंचे , गुरूग्राम तक सड़क पर काफी भीड़ मिली इसलिए हमे यहां तक पहुंचने में दो घंटे से अधिक का वक्त लगा। दिल्ली से जयपुर लगभग 289 km की दूरी पर है और यहाँ तक आने में पांच से छः घंटे लग जाते है। अब हम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर चल रहे थे। सड़क अच्छी बनी है लेकिन इस सड़क पर बडे वाहनों का बहुत ट्रैफिक रहता है। ट्रकों, टैंकर, बस आदि वाहन साईड भी आसानी से नही देते है इसलिए ओवरटेक बहुत करने होते है। जो मन को सकून नही देता है। मुझे वह सफर अच्छा लगता है जहां पर भीड कम हो। सुबह ब्रैड व दूध का नाश्ता ही करके चले थे इसलिए भूख भी जोरों से लग रही थी। रास्ते में एक अच्छा सा रेस्टोरेंट देखा बस खाने के लिए उधर ही रूक गए। इस रेस्तरां का नाम रजवाड़ा था। खाना भी स्वादिष्ट था जब यहां से चले तब लगभग 2:30 का समय हो रहा था। इसी रोड पर आगे धारूहेड़ा नाम की जगह आती है जहां से बांये तरफ एक सड़क तिजारा किशनगढ़ होते हुए अलवर चली जाती है और यह सड़क आगे राजगढ़ होते हुए
भानगढ़ भी जाती है।
खाना खाने के बाद आगे हम कही नही रूके और नीमराना व कोटपूतली नामक जगह से गुजरते हुए सीधा जयपुर पहुंचे। समय शाम के लगभग 6 बज रहे थे। हम हवामहल, जौहरी बाजार से होते हुए, मोती डूंगरी रोड पर स्थित होटल सूर्या विला पहुंचे। यह होटल बहुत अच्छा व साफ सुथरा था। होटल के रूम में पहुंच कर थोडा आराम किया गया फिर चाय भी पी गई। लगभग शाम के 7:30 पर हम पैदल ही बिडला मन्दिर की तरफ चल पडे। होटल से तकरीबन 10 या पंद्रह मिनट ही लगते है यहां तक पहुंचने में। लेकिन एक बैटरी चलित रिक्शा कर लिया गया 20 रू में मन्दिर तक के लिए और पांच मिनट में ही बिडला मन्दिर पहुंच गए। बिड़ला मन्दिर के नजदीक ऊपर एक पहाडी पर एक किला दिख रहा था जो रात में बेहद सुंदर दिख रहा था। मैने पास ही खडे एक गार्ड से उस किले के बारे में पूछा तो उसने बताया की इस किले में एक शिव मन्दिर है जिसे एकलिंगेश्वर महादेव कहते है और यह साल में केवल एक बार ही शिवरात्रि के दौरान ही खुलता है। और इसकी बहुत मान्यता है। जिस पहाडी पर यह बना है उसे मोती डूंगरी पहाडी कहते है। मैने गार्ड को धन्यवाद कहा और बिड़ला मन्दिर में प्रवेश किया। मन्दिर में प्रवेश किया ही था की वहा के पंडित ने जल्दी आने को बोला हम दौडकर अंदर पहुंचे। सामने भगवान विष्णु जी की मूर्ति को नमस्कार किया ही था की पंडित जी ने बाहर का पर्दा गिरा दिया। अब सुबह ही दर्शन हो पाएगे लेकिन हमने दर्शन कर लिये थे इस बात की खुशी थी। मन्दिर परिसर में घुम कर हम मन्दिर से बाहर आ गए।
बिड़ला मन्दिर - यह मन्दिर बिडंला ग्रुप के द्वारा सन् 1988 में बनवाया गया। यह मन्दिर सफेद संगमरमर पत्थर से बना है और यह भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी को समर्पित है। इसलिए इसे लक्ष्मी नारायण मन्दिर भी कहते है। काली डूंगरी पर्वत की तलहटी में बसा यह मन्दिर बहुत सुंदर है।
बिड़ला मन्दिर के पास ही एक गणेश मन्दिर है जिसको मोती डूंगरी गणेश मन्दिर भी कहते है। मन्दिर के बाहर मिठाई की दुकान से प्रसाद के लड्डू ले लिए गए। और तीन चार सीढी चढ़कर मन्दिर में पहुंचे। गणेश जी मूर्ति लाल सिंदूर से सजी हुई थी। प्रसाद चढाकर हम मन्दिर से बाहर की तरफ चल पडे। हमने कुछ फोटो भी लिए । मन्दिर में तैनात एक पुलिस कर्मी ने हमारे पूछने पर बताया की यह मन्दिर काफी साल पुराना है। और यहां स्थापित गनेश जी की मूर्ति जयपुर के महाराजा माधो सिंह (प्रथम) की एक रानी अपने पीहर मेवाड(गुजरात) से सन् 1761 में लाई थी। हम मन्दिर से बाहर आ गए और गणेश मन्दिर के सामने एक अन्य मन्दिर जो हनुमान जी को समर्पित था वहां भी दर्शन कर आए।
यहां पर हमने एक ऑटो वाले को रोका। मैने उससे कहा की हमे किसी रेस्टोरेंट पर ले चलो वह हमे एक ढाबे पर ले आया उसने बताया की यह जयपुर का नामी ढाबा है जिसका खाना बडा स्वादिष्ट होता है। ढाबे का नाम हनुमान ढाबा था जो की राजा पार्क चौक पर था। अॉटो वाले ने हमसे यहाँ तक के 50 रुपये लिए। ढाबे पर बहुत भीड़ थी जल्द ही हमे टेबल मिल गई और खाने का ऑर्डर भी दे दिया गया। मैंने पहले ही बोल दिया था की खाना कम मिर्ची का बनाना। इसलिए खाने में कोई शिकायत नहीं थी, और खाना वाक्ई स्वादिष्ट बना था। यहां खाना खाने के बाद हम वापिस होटल पहुंचे।
आज की पोस्ट में बस इतना ही... बाकी मिलते है जल्द ही अगली पोस्ट पर..........
इस यात्रा की कुछ फोटो ...
|
मोती डूंगरी पहाड़ी पर वो महल और एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर। |
|
बिरला मंदिर |
|
बिरला मंदिर |
|
बिड़ला मंदिर |
|
गणेश मंदिर |
|
गणेश जी की मूर्ति |
|
पंचमुखी हनुमान मंदिर |
|
हनुमान ढ़ाबा |
|
मैं सचिन त्यागी होटल सूर्या विला में। |
|
होटल का बाहरी गेट |
बहुत बढ़िया सचिन भाई।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नरेंद्र जी
हटाएंअति सुंदर। मैं तीन दिन जयपुर रहा पर इन स्थानों में से एक भी नहीं देखा! :-(
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशांत जी। अगली बार देख आना. .जयपुर दूर नही है। 😊
हटाएंजयपुर में मैं भी पिछले वीक ही गई थी । ये मंदिर,मोती डूंगरी मन्दिर ओर सामने हनुमानजी का मंदिर एक साथ देखा था। जनवरी में मीसम कैसा था जयपुर के
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दर्शन बुआ जी। जनवरी में जयपुर का मौसम अच्छा होता है।
हटाएंबहुत सुंदर पर सर जी आपने ऊपर लिखा ह NH 48 पर वो नेशनल हाइवे नं 8 ह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अशोक जी.. वैसे दिल्ली से मैं NH 48 पर ही चला था। फिर भी चैक करता हूं।
हटाएंबढ़िया जानकारी और सुन्दर तस्वीरें .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नरेश जी।
हटाएंसरल व सुंदर वर्णन।।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा वर्णन किया ह आपने
जवाब देंहटाएंGreat information and beautiful pictures. Taxi service in Jaipur
जवाब देंहटाएं