5 मार्च 2017
सिद्धबली मंदिर (कोटद्वार ):- कोटद्वार उत्तराखंड में पौडी क्षेत्र का प्रवेश द्वार माना जाता है। क्योकी यह पहाड़ की तराई में खोह नदी के किनारे बसा है। और कोटद्वार के बाद फिर पहाड़ी चालू हो जाती है। यह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल ज़िले में आता है। कोटद्वार में बाबा सिद्धबली मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर राम भक्त हनुमान जी को समर्पित है। यह एक पौराणिक मंदिर भी है। यह मन्दिर कोटद्वार शहर से थोडी दूर खोह नदी के किनारे व जंगल के पास एक ऊंचे टीले पर स्थित है। कई बार खोह नदी में बाढ आने के बावजूद भी इस मन्दिर पर कोई आपत्ति नही आई। एक बार तो इस का कुछ हिस्सा हवा में लटक भी गया था लेकिन फिर भी मन्दिर पर कोई आंच नही आई। मन्दिर के बारे में यह कहा जाता है की पहले कभी यहां इस टीले पर एक बाबा ने हनुमान जी की पूजा की थी, हनुमान जी ने उन्हें सिद्धि प्रदान की और उन्ह बाबा ने यहा पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की। लेकिन जब यह मन्दिर इतना भव्य या प्रसिद्ध नही था ।मन्दिर से जुड़ी एक बात और प्रचलित है की कभी ब्रिटिश शासन काल में एक मुस्लिम सुपरिटेंडैण्ड कहीं से आ रहे थे। जैसे ही वह सिद्धबली मन्दिर के पास से निकले तो वह बेहोश हो गए। उनको ऐसा सपना आया कि सिद्धबली कि समाधी पर मन्दिर बनाया जाए। जब उन्हें होश आया तो उन्होने यह बात आस-पास के लोगों को बताई और फिर तभी यहां पर लोगो ने भव्य मन्दिर बनवाया। पहले यह एक छोटा सा मन्दिर था। पर पौराणिकता और शक्ति की महत्ता के कारण श्रद्धालुओं ने इसे भव्यता प्रदान कर दी है। यहां हिन्दू धर्म के लोग ही नही बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी दर्शन हेतु के लिए आते है। माना जाता है की हनुमान जी यहां पर सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते है। प्रसाद में गन्ने से बना गुड, बत्तासे व नारियल का होता है। हर मंगलवार व शनिवार को यहां पर लोग भंडारे लगाते है। मन्दिर पर आने के बाद मन को परम शांति का अनुभव होता है।
अब यात्रा वृत्तांत :-
लैंसडौन से हम वापसी कोटद्वार की तरफ चल पडे। लैंसडौन से निकलने में ही दोपहर के 12:30 हो चुके थे। फिर हम दो बार रास्ते की सुंदरता देख रूक भी गए। हम तकरीबन 2:15 पर कोटद्वार पहुँचे । प्रसाद लिया और मन्दिर की तरफ चल पडे। हनुमान जी का मन्दिर सबसे ऊपर बना है और मन्दिर से चारो तरफ का सुंदर दृश्य दिखता है। खोह नदी मन्दिर के पीछे बहती बडी सुंदर दिख रही थी। कुछ ही मिनटों मे हम मन्दिर पर पहुँच गए। लेकिन मन्दिर बंद था और शाम के 4 बजे खुलेगा । हम तो चार बजे तक इंतजार भी कर लेते लेकिन जीजाजी को एक मिटिंग में भी जाना था जिनका सुबह से कई बार फोन आ चुका था और लंच का कार्यक्रम भी उनकी तरफ से था। हमने मन ही मन में हनुमान जी को प्रणाम किया। पता नही हम में से किसकी विनती हनुमान जी ने सुन ली। मन्दिर की साफ सफाई हो रही थी तभी एक पंडित जी ने मुश्किल से आधा मिनट के लिए गेट खोल दिया । जिससे हम सभी ने हनुमान जी के दर्शन किये। अब मन खुश हो गया क्योकी हम दर्शन के लिए आए थे जो हमे हो गए। जब हम नीचे की तरफ जाने लगे तभी मन्दिर के पीछे वाले गेट पर पंडित जी मिल गए उनको बोला की आप हमारा प्रसाद चढवा दिजिए तब उन्होने प्रसाद में से कुछ प्रसाद लेकर अंदर मन्दिर मे रख लिया और बाकी बचा प्रसाद हमे दे दिया। अब हमारा प्रसाद भी चढ चुका था। फिर हमने मन्दिर परिसर में बने अन्य मन्दिर देखे और पीछे बहती खोह नदी पर भी गए। नदी का वहाब इस समय कम था जिसकी वजह से कुछ पत्थरो पर काई भी जमी हुई थी। एक स्थानीय व्यक्ति नें बताया की जंगल के बहुत निकट होने के कारण कभी कभी पानी पीने के लिए जंगली हाथी भी यहां आ जाते है क्योकी यह हाथी बहुल क्षेत्र भी है।
कुछ समय नदी के किनारे बीता कर हम वापिस चल पडे। लेकिन वही हुआ जिसका डर था एक पत्थर पर काई जमी थी और मेरा पैर उस पर पड गया और मैं पानी में गिर गया। जिसके कारण मुझे हल्की चोट भी लग गई थी और मेरी चप्पल भी पानी में बह गई। पार्किंग तक मै नंगे पैर ही चलकर आया। जूते पहनने पडे। अब हम जीजाजी के मित्र के पास पहुँचे पहले लंच किया फिर उनकी आपस मे काम की बातें हुईं। समय लगभग शाम के पांच बज चुके थे। मेने गाड़ी स्टार्ट कर ली और हम शाम के सही 5:15 पर कोटद्वार से निकल चले। और नजीबाबाद, मीरापुर होते हुए खतौली निकले। मीरापुर से खतौली आने का यह फायदा हुआ की हमे ट्रक ज्यादा नही मिले, रास्ता नया व साफ मिला। जिसकी वजह से हम 9:15 पर दिल्ली पहुँच गए। मतलब मैने बिना कही रूके पूरे चार घंटे मे कोटद्वार से दिल्ली की दूरी (तकरीबन 210 KM) तय कर ली।
यात्रा समाप्त ।
भोत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ललित सर।
हटाएंबहुत बढ़िया विवरण व चित्र.. बड़ी मान्यता है इस मंदिर की हमने एक बार भंडारा कराने के लिये पूछा तो पता लगा 2 साल बाद नंबर आयेगा
जवाब देंहटाएंये हाल तब है तिवारी जी जब वहां भंडारा नित्य प्रतिदिन होता है. जब हम बीनू के गाँव जाते हुए यहाँ पहुंचे और गाँव के लिए चलने लगे तो हमें भी वहां कई लोगों ने भंडारा ग्रहण करने का आग्रह किया जो हम जल्दी कि वजह से स्वीकार ना कर सके, वापसी में हमने भंडारा ग्रहण करने का विचार बनाया जो बाबा ने स्वीकार ना किया और अत्यधिक भीड़ होने कि वजह से हम फिर भंडारा ग्रहण ना कर सके.
हटाएंजय सिया राम
धन्यवाद तिवारी जी। जी सही कहा यहां पर भंडारे बहुत लगते है, यही कारण है की आपका नम्बर दो वर्ष बाद का दिया गया। मन्दिर का इतिहास पौराणिक व प्राचीन है इसलिए यहां पर लोग बडी श्रधा के साथ आते है।
हटाएंशानदार पोस्ट .आज हनुमान जयंती को हनुमान मंदिर के दर्शन हो गए . बीनू के गाँव जाते हुए पिछले साल हम भी यहाँ गए थे .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नरेश भाई.. जय श्री राम।
हटाएंसुंदर और शांत मंदिर है ये बड़े आराम से दर्शन हो जाते हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा भाई
धन्यवाद मनु भाई। सही कहा आपने बडी ही शांति थी यहां और दर्शन भी बडे आराम से हो गए।
हटाएंबढ़िया लेख photo. की सुंदरता देखते बनती है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनोद गुप्ता जी। मन्दिर व आसपास का दृश्य है ही इतना सुंदर।
हटाएंबीनू भाई के गाँव जाते हुए और वहां से आते हुए दोनों बार तसल्ली से दर्शन हुए और आज आपके मध्यम से बाबा ने दर्शन दे दिए. धन्यवाद. सचमुच बहुत ही सुंदर मंदिर और वातावरण, इसके बिलकुल सामने भी एक भव्य और शांत मंदिर है.
जवाब देंहटाएंजय सिया राम
धन्यवाद संजय भाई। सब बाबा की मर्ज़ी है,पास में एक भव्य मन्दिर था लेकिन समय अभाव के कारण जा ना सका। कभी भविष्य में उधर जाना हुआ तब अवश्य उस मन्दिर में भी जाऊंगा।
हटाएंReally a nice compilation of whole journey. Pics are also very nice.
जवाब देंहटाएंU enjoyed whole journey..
Keep continue
Regards
Parmender Tyagi
Gurgaon
Thanks sir for like my post
हटाएंबहुत accha लिखा है aapne sachin bhai 👍aap nirantar nyi nyi yatra karte rahiye aur nyi jaankari dete rahiye
जवाब देंहटाएंDhanywad
Hardik shubkamnaye
धन्यवाद अजय भाई।
हटाएंबहुत शानदार यात्रा ।वैसे मैंने वीडियो भी देखा था
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बुआ।
हटाएंहनुमान जयंती के शुभ अवसर पर हनुमान जी को समर्पित सिद्धबली मंदिर की पोस्ट बहुत ही प्रभावी , प्रासंगिक और सुन्दर बन पड़ी है ! काई में फिसलन होती ही है सचिन भाई , अब ठीक हो गई होगी चोट , ऐसी उम्मीद करता हूँ !! लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंशुक्रिया योगी भाई। चोट ज्यादा नही थी कुछ ही दिन में ठीक हो गई थी। जय श्रीराम
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