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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

रेणुका झील की परिक्रमा व mini zoo

दिनांक 26 जनवरी
आज आँख जल्दी ही खुल गई,खिडकी से पर्दा हटाकर बाहर देखा तो पूरे बाजार मे सन्नाटा छाया हुआ था,किसी भी प्रकार की दुकाने नही खुली हुई थी,होटल के सामने गिरी नदी शान्त स्वभाव में बह रही थी,चाय पीने का मन था पर अभी होटल नया बना था इसलिए रेस्टोरेंट की सुविधा नही थी,मै होटल से बाहर आकर थोडी दूर घुम आया पर दुकाने बंद ही मिली,शायद आज 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) है इसलिए दुकाने देर से खुले इसलिए मै वापस होटल की तरफ चल पडा,होटल के बाहर होटल के मालिक मिल गए,थोडी उनसे बातचीत होती रही,उन्ही से पता चला की यहां पर गिरी नदी पर डैम बनाया जाऐगा जहां से बिजली बनेगी व ददाहु से शिमला के लिए व पावंटा साहिब के लिए बस मिल जाती है,उन्होने यह भी बताया की पहले यहां पर बहुत कम बाहर का पर्यटक आता था पर अब यहां पर पर्यटक आने चालू हो गए है,इसलिए ही मेने यह होटल बनाया है,
कुछ देर उनसे बात होती रही इतने में ही होटल के पास वाली एक दुकान खुल गई,मैने उससे दो चाय पैक कराई ओर सीधे अपने रूम मे पहुचां,चाय पीने के बाद,हम नहाकर व सुबह के दैनिक कार्य को निपटा कर गाडी के पास पहुचें,गाडी में समान रखकर सीधे रेणुका झील पहुचें,सुबह सुबह का मौसम था,हर ओर साफ व मन को प्रसन्न करने वाली ताजी वायु चल रही थी,ऐसी जगह मन अपने आप ही खुश हो जाता है,पक्षीयो की आवाज इस माहौल को ओर भी सुन्दर बना रही थी,यहां पर केवल हम ही थे ओर कोई हमे यहां पर दिखाई नही दिया,वैसे थोडी देर बाद यहां पर कई पर्यटक आ गए थे!
देवांग ने गाडी में से एक कुरकुरे का पैकिट निकाल कर खोला ही था की एक बलशाली बंदर महाराज ने वो पैकिट देवांग से छीन लिया ओर पेड पर बैठ कर बडे मजे से कुककुरो का आनन्द लिया,यहां पर बंदरो की बहुत बडी फौज है जो हर जगह आपको मिल जाऐगी ओर आपको परेशान भी कर सकती है,
बंदर से बच कर हम मन्दिर पहुचें,यहा पर पूजा की ,प्रसाद खाया व दक्षिणा दी,वहा पर एक परिवार भी था जो शायद वहां का लोकल भी हो,उन्होने हमे बताया की यहां पर प्रसाद में कच्चे चावल भी मिलते है,वह चावल उनको खिलाए जाते है जिनको बूरे सपने व नींद मे बोलने व चलने की बिमारी होती है,
पंडित जी ने हमे भी कच्चे चावल दिए,हम मन्दिर से बाहर आ गए,मन्दिर के बाहर ही एक टिले नुमा जगह थी जिस पर परशुराम बैठ कर तप किया करते थे,यह सब देख कर हम तीनो झील की परिक्रमा मार्ग पर चल पडे,
यह परिक्रमा मार्ग लगभग 3.5 km लम्बा है,आज सोमवार था इसलिए इसका बडा गेट बंद था नही तो गाडी,बाईक से भी परिक्रमा की जा सकती है,परिक्रमा मार्ग पक्का बना हुआ है,ऐसा प्रतित होता है जैसे आप किसी जंगल में जा रहे हो,पक्षीयों की आवाज,बन्दरो की आवाज,ओर साथ में शेर की दहाड भी सुनाई दे जाती है,क्योकी यहां पर परिक्रमा मार्ग पर दर्शको व भक्तो के लिए एक छोटा चिडियाघर (mini zoo)बनाया हुआ है,जहां पर कई तरह के जंगली जानवर खुले बाडे(पिंजरे) में रहते है ओर पूरे परिक्रमा मार्ग पर मौजूद है,जिनको देखते देखते परिक्रमा भी पूरी हो जाती है,यहां पर जंगली भैसा,शेर,तेन्दुंआ,भालू,जंगली बिल्ली,कई तरह के हिरण व कई अन्य प्रकार के जीव आप देख सकते है,
हम झील के किनारे किनारे चलते रह थे,आसपास या आगे पिछे कोई नही था,नयी जगह थी इसलिए हम वही किनारे पर रूक गए थोडी देर बाद एक ग्रुप जिसमे कुछ जापानी व बाकी हिन्दुस्तानी लडके लडकीयां थे,हमने उनको देखा ओर आगे आगे चल दिए,रास्ते मे एक मन्दिर भी मिला,जहां पर एक स्वच्छ पानी की धार निकल रही थी,इसको देखकर हम आगे चल पडे,झील लगभग दो km लम्बी ओर 300 मीटर चौडी है,पर हर जगह अलग ही नजारा देखने को मिलता है,जहां शुरू मे मन्दिर,आश्रमो दिखते है तो आखिर में पेड पौधो से घिरे तट भी है,खजूर के पेड भी झील की शोभा को बढा रहे थे,यहां पर अर्थात रेणुका झील मे महाशीर मछलीयां बहुत पाई जाती है,पर्यटक व भक्त इन मछलीयो को आटे की गोली व चने खिलाते रहते है,हमने भी चने व आटे की गोलियां मछलीयो को खिलाई ओर हजारो मछलीयां वहा प्रकट हो गई,बडा ही मस्त नजारा था वो,
यहां से आगे चले ही थे की आश्रम वाले बुढे बाबा मिल गए ओर कहने लगे की कल आप वापिस नही आए तब मेने उनको बताया की रात हम ददाहु मे रूक गए थे,मेने उनको कुछ पैसे दिए आश्रम के लिए,ओर उनको प्रणाम कर आगे बढ चला,यहा पर बोटिंग भी कर सकते है,जब हम आए थे जब बोटिंग चालू नही थी पर अब बोटिंग चालू हो चुकी थी,
तभी हमे भारत का राष्ट्रगान के स्वर सुनाई दिए ओर हम उसके सम्मान मे शांत खडे हो गए,राष्टगान के बाद हम गाडी के पास पहुचें,
पार्किंग के पास ही एक दुकान पर चाय पी गई ओर नाश्ते के तौर पर मैगी खाई,
यही पर एक परिवार मिला जो अभी अभी रेणुका जी पहुचां था,उन्होने बताया की वे लोग हरीपूर धार नामक जगह से आ रहे है जहा पर मां भाग्यानी देवी का मन्दिर है ओर अच्छी खासी बर्फ भी है,इस जगह के बारे में मुझे पहले से ही पता था, हरीपुरधार से ही चूरीधार नामक जगह है जहां पर लोग ट्रैकिंग करते है ओर मेरे एक मित्र नीरज जाट वहा पर जा चुके है,
लेकिन हमारा कोई इरादा नही था वहा पर जाने का लेकिन भविष्य में एक बार वहा अवश्य जाऊगां,
मैगी खाने के बाद हम गाडी मे सवार हो गए ओर निकल पडे अगली मन्जिल पाँवटा साहिब गुरूद्वारा की तरफ.....
अब कुछ फोटो देखे जाए.....
गिरी नदी(ददाहु)
रेणुका मन्दिर
बंदर देवांग के कुरकुरे खाता हुआ
रेणुका मन्दिर परिसर
तपे का टिला
भगवान परशुराम मन्दिर
रेणुका मन्दिर
हिमाचल सरकार का गेस्ट हाऊस
रेणुका झील व आश्रम 
झील की परिक्रमा मार्ग
मां का दूध मन्दिर
जंगली बिल्ली
रीछ(भालू)
शेर
हिरण
काला हिरण
देवांग हिरण के पास फोटो खिचवां ता हुआ
जंगली भैंसा(मिथुन)
कैसा लगा 
आसमान को छुता पेड
यह फोटो देवांग ने खिचां था
बोटिंग 
तेन्दुआ
मछलियां
झील का एक किनारा

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपके ब्‍लॉग के माध्‍यम से रेणुका यात्रा की जानकारी मिली , लगा जैसे हम भी वहां हो। बढि़या जानकारी
    और दर्शनीय फोटो ।

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  2. स्वाति जी बहुत बहुत धन्यवाद..
    यही कोशिश जारी रहेगी..

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  3. ओह ! रेणुका झील देखना रह गया ! कुरुक्षेत्र जाने से पहले अगर आपको पढ़ लेता तो शयद एक बार सोचता जरूर ! शानदार यात्रा वर्णन सचिन जी !!

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  4. धन्यवाद योगी भाई, कोई नही कभी ओर चले जाना रेणुका जी।

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