दिनांक 27 जनवरी 2015 की सुबह ऊठकर हम होटल से ही फ्रैश होकर रीशिकेश से हरिद्वार की तरफ चल पडे,रीशिकेश से ही जो रास्ता नीलकंठ महादेव को तरफ जाता है,वही तिराहे पर ही एक होटल में बैठकर आलू के परांठेदक के साथ नाश्ते में खा लिए,ओर चल पडे हरिद्वार की तरफ,रीशिकेश से हरिद्वार वाला रास्ते पर सडक चौडीकरण हो रहा है,आने वाले समय मे यह रास्ता ओर बढिया हो जाऐगा,लगभग 10:30 पर हम हरिद्वार पहुचं गए,हर की पौडी के पास ही कार पार्किंग में कार खडी कर,पैदल ही हर की पौडी पर पहुचें,इस समय गंगा मे जल की मात्रा बहुत कम थी,ओर श्रधालुओ की सँख्या भी काफी कम थी,जैसा हरिद्वार में आमतौर होता नही है,यहां तो साल मै कभी भी आओ पर भीड मिलती है पर आज कुछ राहत थी,वैसे मैं यहां पर काफी बार आ चुका हुं फिर भी यहां आकर मै बहुत अच्छा महसूस करता हुं,
हर की पौडी पर पहुचते ही सीधा गंगा स्नान के लिए गंगा जी मे पहुचं गया,बहुत ही ठंडा जल था पहली डुबकी तक सर्दी लगती रही जब चार पांच डुबकी गंगा में लगाई,तब जाकर कुछ ठंड से मुक्ति मिली,मुझे देखकर देवांग भी नहाने के लिए आ गया,शुरू मे वह ठन्डे पानी की वजह से रोता रहा पर फिर वह गंगा जी से निकलने का नाम ही नही ले रहा था,कुछ देर नहाने के बाद हम गंगा जी को प्रणाम कर व घर के लिए गंगा जल एक कैन में भर कर ,गंगा जी से बाहर आ गए,गंगा जी में नहाने के बाद भूख लगने लगती है,गंगाघाट पर ही शक्करगंदी की चाट बिक रही थी,पहले हमने वो चाट खाई फिर हम पार्किग की तरफ चल पडे,रास्ते में गंगा पर बने एक पुल पर मछलियों के लिए आटे की गोलिया बिक रही थी,जिन्हे देखते ही देवांग ने कहा की पापा वह गोलिया ले लो मै मछलियों को खिलाऊगां,मेने वो आटे की गोलियां खरीद कर उसको दे दी,उसने वही पुल के नीचे एक एक कर सारी गोलियां गंगा जी मे डाल दी,एक दो मछली दिखाई भी दी,फिर हम वहा से चलकर गाडी के पास पहुचें ओर वहा बने एक होटल पर चाय पी,वही से घर के लिए प्रसाद खरीदा ओर चल पडे कनखल की तरफ,कनखल हरिद्वार से कुछ किलोमीटर पहले ही है,हरिद्वार से कुछ पहले गुरूकल कांगडी नामक एक संस्था पडती है जो दवाईयो के लिए भी जानी जाती है वह कनखल मे ही स्थति है,
कनखल हर की पौडी से लगभग मात्र छ: या सात किलोमीटर दूर है ,अगर अपनी सवारी से ना जाना चाहे तो टम्पू(थ्रीविलर) से भी जा सकते है,हमने अपनी कार सीधे मन्दिर के पास वाली पार्किंग में खडी कर दी ओर चल पडे,दक्षेश्वर महादेव व सती कुण्ड(हवन कुंड) के दर्शन करने के लिए.....
कनखल:- कनखल को भगवान शिव की सुसराल भी माना गया है,क्योकी कनखल के राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती(पार्वती)ने शिव से विवाह किया,पर राजा दक्ष शिव को अपने से निम्न समझता था,एक बार राजा दक्ष ने शिव को नीचा दिखाने के लिए एक महायज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होने सभी देवताओ व गुरू को निमंत्रण दिया पर भगवान शिव व सती को निमंत्रण नही भेजा,पर सती ने शिव से जिद्द कर के वहा जाने की आज्ञा मांगी,जब सती अपने पिता के घर कनखल पहुचीं तो वह देखती है की वहा पर सभी देवताओ के आसन लगे है,ओर शिव को छोडकर सभी देवता यहां उपस्थित है, तब उन्हे यह अच्छा नही लगा क्योकी वहा शिव का आसन नही था,तब उन्होनो यह बात अपने पिता से पुछी तब उनके पिता राजा दक्ष ने सभी के सामने भगवान शिव को बुरा भला कहा,जो माता सती सहन ना कर सकी ओर उन्होने वही यज्ञ (हवन)कुण्ड में अपने प्राणो की आहुती दे दी,जिसे देख वहा पर हाहाकार मच गया,जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तब वह बहुत क्रौध में आ गए,ओर उन्होने अपने एक गण वीरभद्र को आज्ञा दी वह कनखल जाए ओर दक्ष को मृत्यु दण्ड दे ओर उसका यज्ञ खण्डित कर दे,शिव से आज्ञा पाकर वीरभद्र ने राजा दक्ष का सर काट डाला,शिव भी वहां पहुचें ओर माता सती का शव लेकर चले गए..आगे की कहानी तो आपको पता ही होगी की कैसे भगवान ने शिव का गुस्सा शांत किया ओर जहां जहां माता सती के शव के अंग धरती पर गिरे वहा पर शक्ति पीठ बने,जैसे जहां पर नैन गिरे वहां नैना देवी शक्ति पीठ बना
मन्दिर में प्रवेश द्वार में घुसते ही,भगवान शिव की एक बडी प्रतिमा लगी है,जिसमें वो गुस्से में ओर माता सती का शव ऊठाएं है,उस प्रतिमा को देखते ही सती माता की कहानी अपने आप याद आ जाती है,थोडा सा अन्दर चलने पर मुख्य मन्दिर व सती कुण्ड नजर आ जाता है,हमने भी ओर श्रधालूओ की तरह मन्दिर के पास बह रही गंगा जी से जल लिया ओर वहा पर एक पण्डित जी से छोटी सी पूजा कराई ओर जल लेकर मन्दिर में प्रवेश किया,प्रवेश करते ही प्राचीन हवन कुंड के दर्शण किये,जहां माता सती ने अपने प्राणो की आहुती दी थी,हवन कुंड देखकर मूख्य मन्दिर में प्रवेश किया,यहां पर एक शिव लिंग है जो स्वयमं यहा पर प्रकट हुआ है,किसी के द्वारा स्थापित नही है,शिवलिंग पर गंगाजी का जल चढाया ओर फिर वही थोडी देर बैठे रहे फिर पण्डित जी से प्रसाद लेकर बाहर आ गए,बाहर कुछ अन्य मन्दिर भी है,शिव ओर अन्य भगवानो के,उन मन्दिरो को देखकर हम वापिस पार्किंग में पहुचें जहां से हम चलकर सीधे दिल्ली की तरफ चल पडे ओर रास्ते में रूकते रूकाते रात को घर पहुंच गए.......
यात्रा समाप्त...
rochak yatra varnan...........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंजानकारी और यात्रा का आनंद देता हुआ लेख।
जवाब देंहटाएंdhanywad vikash gupta ji
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