अभी हाल में ही(अप्रैल2015)में दिल्ली चाणक्यपुरी स्थित राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (national rail museum) जाना हुआ,अभी इसी साल फरवरी में रेणुका जी घुम कर आया था उसके बाद कही जाना नही हो पाया,एक दिन देवांग ने घुमने की रट लगा ली की मुझे कही घुमा कर लाओ,सब बच्चे जाते है मै ही नही जाता,वैसे उस दिन मंगलवार भी था, मंगलवार को मेरी दुकान की छट्टी रहती है,इसलिए मै उसको चाणक्यपुरी,नई दिल्ली स्थित राष्टीय रेल म्युजियम(national rail museum) दिखाने के लिए ले गया,यह म्युजियम सोमवार को अवकाश के कारण बंद रहता है बाकी सभी दिन खुला रहता है,सुबह 9:30 बजे से शाम के 5:30 तक खुला रहता है,यहा पर पुराने भाप के इंजन,सैलून गाडी,राजा महराजो की रेल गाडी,नैरो गेज पटरी,मीटर गेज पटरी व बहुत सी अन्य चीजे आप देख सकते है व उनकी जानकारी प्राप्त कर सकते है,यहा पर एक छोटी ट्रैन की सवारी भी आप कर सकते है जो आपको पुरे रेल संग्रहालय का चक्कर लगवाती है,इसमे बैठ कर बच्चे तो बच्चे,बडे भी बहुत मस्ती करते है पुरे रास्ते हल्ला मचा होता है,अगर आप यहां से निशानी के तौर पर कुछ ले जाना चाहते है तो पास ही एक कोने में एक दुकान है जहां पर आप चाबी के छल्ले,किताबे,रेल गाडी के माडल व अन्य वस्तुए खरीद सकते है,
अब आगे...
में सुबह लगभग 10 बजे घर से चल पडा,दिल्ली I.T.Oचौक को पार करते हुए,अशोका रोड से तीन मूर्ती रोड व वहा से शांति पथ रोड जहां पर सभी देशो की अम्बैसी है व वहा के राजदूत रहते है,शांति पथ रोड पर ही यह रेल म्युजियम स्थित है,पार्किंग में गाडी खडी कर हम(मै,देवांग ओर पत्नी जी)सीधे टिकेट खिडकी पर पहुचे,तीन प्रवेश टिकेट ले लिए साथ मे अन्दर चलने वाली रेल गाडी की सवारी का भी टिकेट ले लिया, टिकेट का मूल्य बडो के लिए 20 रू० का था ओर बच्चो के लिए 10 रू० का,इतना ही रेल गाडी की सवारी का टिकेट मूल्य था,हम टिकेट लेकर अन्दर चल पडे,अन्दर पहुचते ही सामने एक लाल रंग का सुन्दर व छोटा सा इंजन खडा था,जो बहुत सुन्दर लग रहा था,इसे देखकर हम आगे बढ गए,थोडा सा ही चले थे की रेल गाडी की छुक छुक व लम्बी सी हार्न सुनाई पडा,आगे देखा तो एक नन्ही सी ट्रेन चली आ रही है,देवांग उसको देखकर बहुत खुश हुआ,हमारा यहां पर आना सफल हुआ क्योकी हम यहां पर देवांग के लिए ही तो आए थे,
ट्रैन हमारे सामने से चलती चली गई ओर आगे बने स्टैशन पर रूक गई,हम भी स्टैशन पर पहुचें ओर सीट देखकर ट्रेन में बैठ गए,मैने साल 2013 में ऐसी ही ट्रेन (ऊटी से कौन्नूर)में यात्रा की थी यह भी बिल्कुल उस जैसी ही थी,जब ट्रेन चली तो सभी सवारी चाहे बच्चे हो या बडे सब के सब खुशी से चिल्लाने लगे,इस ट्रेन ने हमको पूरा एक चक्कर लगवाया,वाकई बहुत मजा आया,इसमे बैठ कर,
ट्रेन से नीचे उतर कर हम पैदल ही घुमते रहे,हमने बहुत से पुराने इंजन देखे जो हमारे देश में बाहर से लाए गए थे, यह सभी भाप के इजंन थे,जिनमे इंधन के तौर पर कोयले का उपयोग होता था,आजकल तो बिजली से या डीजल से ट्रेन चलती है,
कुछ इंजन छोटे व प्यारे थे तो कुछ बहुत विशाल थे,जैसे एक कार्टुन आती है थॉमस एण्ड फ्रेण्डस.
कुछ बोगिया भी देखी जो पूरी तरह से लकडी की बनी थी,जिन्हे यह इंजन खीचा करते थे,ज्यादात्तर इन्हे अंग्रैज ही प्रयोग मे लाते थे,
इन सब पर चमचमाता रंग बिरंगे कलर किये हुए है,कोई लाल रंग का तो कोई हरा,खाशतौर पर बच्चे इन्हे देखकर बहुत खुश हो रहे थे,यहा पर कुछ स्कूल के बच्चे भी स्कूल की तरफ से आए हुए थे,कभी मै भी जब छोटा था शायद तीसरी कक्षा में पढता था तब मे भी स्कूल की तरफ से यहा पर आया था, यहा पर एक छोटा सा पार्क भी बना है जिसमे संगीतमय फव्वारें लगे है,पेड पौधे से भरा व फूलो व रंगो से भरा यह पार्क या यह कहे की पूरा रेल म्युजियम ही बहुत सुन्दर व मन मोह लेने वाला है, सभी को एक बार तो यह देखना ही चाहिए.
अब कुछ फोटों देखे...
अच्छी एवं उपयोगी जानकारी युक्त वर्णन , साथ ही फोटो भी अच्छे हैं। कभी दिल्ली जाना होगा तो जरूर इस रेल म्यूजियम के दर्शन किए जाएंगे।
जवाब देंहटाएंस्वाति जी ब्लॉग पर उत्साहपूर्ण टिप्पणी के लिए धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंबिल्कुल जब भी दिल्ली आए तो एक दो घंटे यहा के लिए समय जरूर निकाले...
देवांग को मेरी तरफ से धन्यवाद कहियेगा ।उसके कारण हमे भी रेल संग्रहालय घूमने का मौका मिला ,आपके पोस्ट के माध्यम से ।
जवाब देंहटाएंबाकई बच्चे को साथ बड़े को लिए भी बढ़िया जगह है घूमने के लिए ।
फ़ोटो और जानकारी दोनों ही बहुत बढ़िया ।
जय भारत माता की
शुक्रिया किसन जी,
हटाएंरेल प्रेमी व बच्चो के लिए यह जगह अच्छी है।
बहुत ही अच्छी जगह के बारे में बताया सचिन भाई । आपकी पोस्ट जब पढ़ने में मजा आने लगता है तभी वो ख़त्म हो जाती है । थोड़ी बड़ी पोस्ट लिखे । जैसे इसी पोस्ट में म्यूजियम का इतिहास , कितने प्रकार के इंजन रखे है , आदि बातें जोड़ी जा सकती थी । देवांग को ढेर सारा स्नेह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मुकेश जी।
हटाएंआपने सही कहा इस लेख में कई चीजे ओर जुड सकती थी, लेकिन उस तरफ जब ध्यान ही नही गया, बस मौजमस्ती में ही समय निकल गया, लेकिन आगे के लेखो में इस बात का ध्यान रखुंगा।