26 जनवरी का दिन था,हम रेणुका जी से गुरूद्वारा पाँवटा साहिब की तरफ चल दिए,रेणुका से पाँवटा साहिब जाने के लिए दो रास्ते है एक रेणुका से नाहन ओर नाहन से पाँवटा साहिब,जो तकरीबन 85 km लम्बा पडता है,ओर दूसरा रेणुका से सीधे पाँवटा साहिब जो लगभग 44 km ही लम्बा पडता है,
हमने दूसरे वाले रास्ते को चुना पाँवटा साहिब जाने के लिए,दिन के तकरीबन 11 बज रहे थे जब हम रेणुका जी से पाँवटा साहिब की तरफ चले थे,हमने गिरी नदी पर बने एक पुल को पार ही किया था की देखा सडक की हालत बहुत ही खराब है,सडक के नाम पर केवल पत्थर व पत्थर के ऊपर मिट्टी पडी थी ओर ऊपर से खडी चढाई वाला रास्ता था,फिर भी मेने इसी रास्ते पर जाने का फैसला किया,हां अगर शाम या रात का समय होता तब तो मैं भूल कर भी इस रास्ते से नही जाता पर अभी दिन ही था इसलिए मेने यही रास्ता चुना,काफी देर हो गई चलते हुए पर इस रास्ते पर कोई वाहन नजर नही आ रहा था,ओर हम उस कच्चे रास्ते पर चले जा रहे थे,तभी एक सामने की तरफ से एक मोटरसाईकल आती दिखाई दी,मेने उसे रूकने का इशारा किया ओर उससे पूछा की यह रास्ता पाँवटा साहिब ही जाता है या हम गलत आ गए है उसने बताया की10 km बाद आपको पक्की सडक मिल जाऐगी जो आपको NH72 तक ले जाऐगी,उस भले इन्सान को धन्यवाद कह कर मै वहा से चल पडा,कुछ दूर ही गया था की एक जगह यह रास्ता दो रास्तो मे बदल गया(Y),एक दाई ओर मुड गया तो दूसरा बाई ओर,दोनो ही रास्ते कच्चे थे,दाया वाला रास्ता बहुत चढाई वाला था इसलिए हमे यह लगा की यह रास्ता नही होना चाहिए, इसलिए हम बाए वाले रास्ते पर मुड गए,यह रास्ता पहले से ओर कच्चा ओर छोटा होता जा रहा था,बीच बीच मे मोडो पर ऊपर से आता पानी ओर बह रहा था,तकरीबन 4km चलने के बाद ऐसी जगह आई की हम समझ गए की यह रास्ता तो पाँवटा साहिब का हो ही नही सकता,सडक पर पानी बह रहा था ओर पूरी सडक पर मिट्टी की कीचड ही कीचड थी,यहा पर पेड,झाडियो के अलावा कुछ नही था,रास्ता बिल्कुल ऐकांत था,जो हमे बडा भयानक लग रहा था,बडी मुस्किलो के बाद मेने गाडी वापिस मोडी ओर वापिस उसी दो राहे पर आ गया,काफी देर खडा रहा पर कोई नही आया,थोडी देर बाद एक सैन्ट्रो गाडी आयी ओर दाहिने वाले खडी चढाई वाले रास्ते पर चली गई,मैने फोन निकाला ओर गुगल मैप का सहारा लिया,फोन ने कहा की दाहिने वाले रास्ते पर मुड जाओ,तब मेने भी अपनी गाडी सीधी कठीन चढाई वाले रास्ते पर चढा दी,आगे कुछ कि० मीटर चलने के बाद एक पक्की सडक मिल गई,यदि हम यहा से दाई ओर मुडते तो हम नाहन पहुचं जाते पर गुगल मैप का सहारा लेते हुए हम बाएं मुड गए,फिर तो सीधे इसी सडक पर चलते रहे,पूरा रास्ता पहाडी ही है,पर ज्यादा ट्रैफिक नही था,अब मुझे भी पता था की मै सही रास्ते पर हुं तो मै भी बडे आराम से व पहाडी रास्तो की सुंदरता को देखते नीचे उतर रहा था,हम लगभग 20 km चलने के बाद एक टी प्वाईंट (T) आया जहा से कही भी मुड जाओ आप पाँवटा साहिब को जाने वाली सडक पर पहुचं जाओगे,हम पहले बाए मुडे पर वह रास्ता बडा ओर जगंल मे होते हुए जाता है ऐसा वहा के एक स्थानीय व्यक्ति ने बतलाया इसलिए मै दोबारा पहली वाली जगह पहुचां ओर दायें वाले रास्ते पर चलता चल,मेन हाईवे पर पहुचं गया जहा से मेने अपनी कार बाए ओर मोड दी ओर लगभग 7km चलने के बाद दोपहर के1:45 पर हम गुरूद्वारा पाँवटा साहिब पहुचें,
हमने दूसरे वाले रास्ते को चुना पाँवटा साहिब जाने के लिए,दिन के तकरीबन 11 बज रहे थे जब हम रेणुका जी से पाँवटा साहिब की तरफ चले थे,हमने गिरी नदी पर बने एक पुल को पार ही किया था की देखा सडक की हालत बहुत ही खराब है,सडक के नाम पर केवल पत्थर व पत्थर के ऊपर मिट्टी पडी थी ओर ऊपर से खडी चढाई वाला रास्ता था,फिर भी मेने इसी रास्ते पर जाने का फैसला किया,हां अगर शाम या रात का समय होता तब तो मैं भूल कर भी इस रास्ते से नही जाता पर अभी दिन ही था इसलिए मेने यही रास्ता चुना,काफी देर हो गई चलते हुए पर इस रास्ते पर कोई वाहन नजर नही आ रहा था,ओर हम उस कच्चे रास्ते पर चले जा रहे थे,तभी एक सामने की तरफ से एक मोटरसाईकल आती दिखाई दी,मेने उसे रूकने का इशारा किया ओर उससे पूछा की यह रास्ता पाँवटा साहिब ही जाता है या हम गलत आ गए है उसने बताया की10 km बाद आपको पक्की सडक मिल जाऐगी जो आपको NH72 तक ले जाऐगी,उस भले इन्सान को धन्यवाद कह कर मै वहा से चल पडा,कुछ दूर ही गया था की एक जगह यह रास्ता दो रास्तो मे बदल गया(Y),एक दाई ओर मुड गया तो दूसरा बाई ओर,दोनो ही रास्ते कच्चे थे,दाया वाला रास्ता बहुत चढाई वाला था इसलिए हमे यह लगा की यह रास्ता नही होना चाहिए, इसलिए हम बाए वाले रास्ते पर मुड गए,यह रास्ता पहले से ओर कच्चा ओर छोटा होता जा रहा था,बीच बीच मे मोडो पर ऊपर से आता पानी ओर बह रहा था,तकरीबन 4km चलने के बाद ऐसी जगह आई की हम समझ गए की यह रास्ता तो पाँवटा साहिब का हो ही नही सकता,सडक पर पानी बह रहा था ओर पूरी सडक पर मिट्टी की कीचड ही कीचड थी,यहा पर पेड,झाडियो के अलावा कुछ नही था,रास्ता बिल्कुल ऐकांत था,जो हमे बडा भयानक लग रहा था,बडी मुस्किलो के बाद मेने गाडी वापिस मोडी ओर वापिस उसी दो राहे पर आ गया,काफी देर खडा रहा पर कोई नही आया,थोडी देर बाद एक सैन्ट्रो गाडी आयी ओर दाहिने वाले खडी चढाई वाले रास्ते पर चली गई,मैने फोन निकाला ओर गुगल मैप का सहारा लिया,फोन ने कहा की दाहिने वाले रास्ते पर मुड जाओ,तब मेने भी अपनी गाडी सीधी कठीन चढाई वाले रास्ते पर चढा दी,आगे कुछ कि० मीटर चलने के बाद एक पक्की सडक मिल गई,यदि हम यहा से दाई ओर मुडते तो हम नाहन पहुचं जाते पर गुगल मैप का सहारा लेते हुए हम बाएं मुड गए,फिर तो सीधे इसी सडक पर चलते रहे,पूरा रास्ता पहाडी ही है,पर ज्यादा ट्रैफिक नही था,अब मुझे भी पता था की मै सही रास्ते पर हुं तो मै भी बडे आराम से व पहाडी रास्तो की सुंदरता को देखते नीचे उतर रहा था,हम लगभग 20 km चलने के बाद एक टी प्वाईंट (T) आया जहा से कही भी मुड जाओ आप पाँवटा साहिब को जाने वाली सडक पर पहुचं जाओगे,हम पहले बाए मुडे पर वह रास्ता बडा ओर जगंल मे होते हुए जाता है ऐसा वहा के एक स्थानीय व्यक्ति ने बतलाया इसलिए मै दोबारा पहली वाली जगह पहुचां ओर दायें वाले रास्ते पर चलता चल,मेन हाईवे पर पहुचं गया जहा से मेने अपनी कार बाए ओर मोड दी ओर लगभग 7km चलने के बाद दोपहर के1:45 पर हम गुरूद्वारा पाँवटा साहिब पहुचें,
गुरूद्वारा पाँवटा साहिब का इतिहास-(गुरूद्वारा का मतलब होता है गुरू का द्वार,गुरूद्वारा पाँवटा साहिब हिमाचल के सिरमौर जिले(नाहन) में यमुना नदी के किनारे स्थित है,एक बार जब सिख धर्म के दसंवे गुरू,गुरू गोबिंद सिह जी अपने घोडे पर सवार होकर यहा पर आए तब उनका घोडा यहा पर आकर रूक गया,तब गुरू गोबिन्द सिहं जी ने यही रूकने का फैसला किया,वे यहां पर साढे चार साल रहे ओर उन्होने यहा पर एक शहर बसाने का फैसला किया ओर उन्होने जहां यह गुरूद्वारा है वहां पर एक ईमारत भी बनवाई,गुरू गोबिंद सिहं जी ने यही पर पवित्र पुस्तक(ग्रन्थ)dassam भी लिखि,
बाद में गुरू गोबिंद सिहं को समर्पित इस गुरूद्वारा का नाम पाँवटा साहिब पडा, यहां पर आज भी गुरू गोबिंद सिहं जी के अस्त्र व अन्य वस्तुए( निशानिया) एक संग्रहालय में सुरक्षित रखी है जिसे वहा जाने वाले देख सकते है,)
बाद में गुरू गोबिंद सिहं को समर्पित इस गुरूद्वारा का नाम पाँवटा साहिब पडा, यहां पर आज भी गुरू गोबिंद सिहं जी के अस्त्र व अन्य वस्तुए( निशानिया) एक संग्रहालय में सुरक्षित रखी है जिसे वहा जाने वाले देख सकते है,)
अब आगे..
गुरूद्वारा की पार्किंग मे कार खडी कर हम सीधे गुरूद्वारा के बडे गेट से होते हुए अन्दर पहुचें,गुरूद्वारा में कोई भी धर्म का व्यक्ति जा सकता है,पर उसे कुछ गुरूद्वारा के नियमो का पालन करना होगा ही जैसे आप नंगे सर गुरूद्वारे में नही जा सकते,आपको अपना सर किसी कपडे से ढकना होगा चाहे तो रूमाल सर पर बांध सकते है,दूसरा आपको बाहर ही जूते,जूराबे व चप्पल उतारनी होगी,इन सब का पालन करते हुए हम भी गुरूद्वारे श्री पाँवटा साहिब में प्रवेश कर गए,बाहर काफी भीड थी इसलिए थोडा सा शोर तो होना ही था पर अन्दर का माहौल बिल्कुल विपरीत था अन्दर बडी ही शान्ति का माहौल था व शान्त सगींत(गुरूवाणी) चल रही थी,कुछ लोग वहा बिछे हुए कालिनो पर शांत मुद्रा में बैठे हुए थे,पास ही हलवे का प्रसाद बंट रहा था,हमने भी प्रसाद लिया ओर वही बिछे कालिन पर बैठ कर प्रसाद में मिला हलुवा खाया, हमारी तरह बहुत से लोग वही बैठ कर ही प्रसाद खा रहे थे,हलवा बडा ही स्वादिष्ट बना हुआ था,थोडी देर पश्चात हम मुख्य कक्ष से बाहर आ गए,बाहर दूसरी तरफ यमुना शांत बह रही थी,कहते है की यमुना मे कितना ही पानी आ जाए पर यहां पर यमुना नदी हमेशा शांत ही बहती है,हम आगे चले तो देखा की एक जगह गुरू का लंगर लिखा हुआ था,दोपहर के 3 बज चुके थे इसलिए हमे भी भूख लग रही थी,हम भी लंगर छकने पहुंच गए,अन्दर जाकर देखा की कितने ही लोग यहा पर थे पर गुरूद्वारे की व्यवस्था बहुत अच्छी थी बहुत से सेवादार यहा पर सेवा कर रहे थे.
लंगर छकने (खाने) के बाद हम बाहर की तरफ बने लंगर के लिए बने दान काऊंटर पर कुछ पैसे देकर व उन्होने पर्ची लेकर बाहर आ गए.
अब हम अपनी कार मे बैठ कर सीधे रीषिकेष(रीशिकेश) की तरफ चल पडे,पाँवटा साहिब वैसे तो हिमाचल के सिरमौर जिले मे पडता है पर यह देहरादून के बहुत नजदीक ही है,यहां से देहरादून मात्र 45 km की दूरी पर ही है,यहा से आप चकराता भी जा सकते है जो यहां से लगभग 75 km दूरी पर है,यहां से चलने के थोडी देर बाद ही बारिश शुरू हो गई हम सीधे रीशीकेश वाले रोड पर हो लिए वैसे यहा से हर्बट पूर व कलसी भी जा सकते है,एक दो जगह मुझे रास्ता भी पूछना पडा ओर हम शाम के 6 :30 पर रीशिकेष पहुचं गए,रीशिकेश के त्रिवेणी घाट के पास ही एक होटल मे रूम लिया ओर थोडी देर त्रिवेणीघाट पर गंगा के किनारे घुमते रहे,गंगा आरती मे भाग लिया,एक पंडत जी से गंगा मईया का प्रसाद लिया ओर कुछ देर वही गंगा के घाट पर बैठे रहे रात मे गंगा जी बडी शांत लग रही थी,हाथ मुंह धोए ओर कुछ छीटे शरीर पर भी डाले,बडा ही ठंडा जल था मां गंगा का,मै साल मे कई बार हरीद्वार आ जाता हुं मुझे यहा आना बहुत अच्छा लगता है,चाहे कितनी भी भीड क्यो ना हो पर गंगा मे नहा कर सब कष्ट भूल जाता हुं,ऐसी है मां गंगा ...
गुरूद्वारा की पार्किंग मे कार खडी कर हम सीधे गुरूद्वारा के बडे गेट से होते हुए अन्दर पहुचें,गुरूद्वारा में कोई भी धर्म का व्यक्ति जा सकता है,पर उसे कुछ गुरूद्वारा के नियमो का पालन करना होगा ही जैसे आप नंगे सर गुरूद्वारे में नही जा सकते,आपको अपना सर किसी कपडे से ढकना होगा चाहे तो रूमाल सर पर बांध सकते है,दूसरा आपको बाहर ही जूते,जूराबे व चप्पल उतारनी होगी,इन सब का पालन करते हुए हम भी गुरूद्वारे श्री पाँवटा साहिब में प्रवेश कर गए,बाहर काफी भीड थी इसलिए थोडा सा शोर तो होना ही था पर अन्दर का माहौल बिल्कुल विपरीत था अन्दर बडी ही शान्ति का माहौल था व शान्त सगींत(गुरूवाणी) चल रही थी,कुछ लोग वहा बिछे हुए कालिनो पर शांत मुद्रा में बैठे हुए थे,पास ही हलवे का प्रसाद बंट रहा था,हमने भी प्रसाद लिया ओर वही बिछे कालिन पर बैठ कर प्रसाद में मिला हलुवा खाया, हमारी तरह बहुत से लोग वही बैठ कर ही प्रसाद खा रहे थे,हलवा बडा ही स्वादिष्ट बना हुआ था,थोडी देर पश्चात हम मुख्य कक्ष से बाहर आ गए,बाहर दूसरी तरफ यमुना शांत बह रही थी,कहते है की यमुना मे कितना ही पानी आ जाए पर यहां पर यमुना नदी हमेशा शांत ही बहती है,हम आगे चले तो देखा की एक जगह गुरू का लंगर लिखा हुआ था,दोपहर के 3 बज चुके थे इसलिए हमे भी भूख लग रही थी,हम भी लंगर छकने पहुंच गए,अन्दर जाकर देखा की कितने ही लोग यहा पर थे पर गुरूद्वारे की व्यवस्था बहुत अच्छी थी बहुत से सेवादार यहा पर सेवा कर रहे थे.
लंगर छकने (खाने) के बाद हम बाहर की तरफ बने लंगर के लिए बने दान काऊंटर पर कुछ पैसे देकर व उन्होने पर्ची लेकर बाहर आ गए.
अब हम अपनी कार मे बैठ कर सीधे रीषिकेष(रीशिकेश) की तरफ चल पडे,पाँवटा साहिब वैसे तो हिमाचल के सिरमौर जिले मे पडता है पर यह देहरादून के बहुत नजदीक ही है,यहां से देहरादून मात्र 45 km की दूरी पर ही है,यहा से आप चकराता भी जा सकते है जो यहां से लगभग 75 km दूरी पर है,यहां से चलने के थोडी देर बाद ही बारिश शुरू हो गई हम सीधे रीशीकेश वाले रोड पर हो लिए वैसे यहा से हर्बट पूर व कलसी भी जा सकते है,एक दो जगह मुझे रास्ता भी पूछना पडा ओर हम शाम के 6 :30 पर रीशिकेष पहुचं गए,रीशिकेश के त्रिवेणी घाट के पास ही एक होटल मे रूम लिया ओर थोडी देर त्रिवेणीघाट पर गंगा के किनारे घुमते रहे,गंगा आरती मे भाग लिया,एक पंडत जी से गंगा मईया का प्रसाद लिया ओर कुछ देर वही गंगा के घाट पर बैठे रहे रात मे गंगा जी बडी शांत लग रही थी,हाथ मुंह धोए ओर कुछ छीटे शरीर पर भी डाले,बडा ही ठंडा जल था मां गंगा का,मै साल मे कई बार हरीद्वार आ जाता हुं मुझे यहा आना बहुत अच्छा लगता है,चाहे कितनी भी भीड क्यो ना हो पर गंगा मे नहा कर सब कष्ट भूल जाता हुं,ऐसी है मां गंगा ...
अब हल्की हल्की बारिश पडने लगी थी इसलिए हम त्रिवेणी घाट से बाहर आ गए ओर बाहर ही एक रेस्टोरेंट मे खाना खाकर वापिस होटल में चले गए...... जय गंगे मईयां
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