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19 जून 2015,दिन शनिवार
रात काफी लेट सोने के बावजूद सुबह आँखें जल्दी ही खुल गई। पूरी रात बारिश पडती रही थी,लेकिन अब बारिश रूक गई थी,मै ओर आयुष,पियुष ओर नेहा हम चारो होटेल की छत पर पहुचें। जहां से चारो ओर नजारा शानदार दिख रहा था। मन्दिर के पहले दर्शन भी हमे यही से हो गए। होटल से नीचे सडक पर देखा तो बाहर श्रद्धालुओं की चहल पहल चालू हो चुकी थी,जो मन्दिर की ओर चले जा रहे थे।ओर माता ज्वाला देवी के दर्शन जल्द से जल्द करना चाह रहे थे। मन्दिर तक एक गलियारा बना है जिसके दोनो तरफ प्रसाद व पूजा की ओर अन्य वस्तुओ की दुकानें है।यह सब हम ऊपर से ही देख रहे थे।हम सभी नीचे आ गए ओर सुबह के दैनिक कार्यो को निपटा कर सुबह के 9बजे मन्दिर की तरफ चल पडे। रास्ते में हमारे ड्राइवर साहब जी मिले जो दर्शन कर लोट रहे थे।हम होटल से पांच छ: मिनट में ही मन्दिर पर पहुचं गए। बाहर बनी दुकान से सबने प्रसाद लिया। ओर माता का जयकारा लगाते हुए,सीढियां चढते चले गए। ऊपर देखा की माता के भक्तो की भिड लगी थी। काफी भीड थी हमने अंदाजा लगा लिया था की कम से कम दो घंटे लग जाऐगे दर्शन करने में। हमे काफी देर हो गई एक ही जगह खडे खडे,मन में कई सवाल ऊठ रहे थे की यह लाईन क्यो नही चल रही है। मेने फैसला किया की यह लाईन क्यो नही चल रही है क्यो ना यह देखा जाए। इसलिए मै लाईन से हट कर आगे चल दिया काफी आगे जाकर देखा की अब तक तो तीन लाईन चल रही थी पर आगे लोहे के पाईप लगे है ओर वहा से एक ही लाईन बन रही है इसलिए ऐसा लग रहा था की लाईन चल ही नही रही है।धिरे धिरे लाईन चली ओर मै अपने साथ वालो से थोडा आगे हो गया। मैने अायुष व पियुष को भी अपने पास बुला लिया। हम तीनों नें ज्वालामुखी माता के दर्शन एक साथ किये।मन्दिर में अन्दर एक कुंड सा बना था जिसमे माता की ज्योत जल रही थी ।तीन चार पुजारी वहां पर लगे हुए थे जो लोगे के प्रसाद को मां की अग्नि ज्योत के पास ले जाते हो बाकी प्रसाद उसी भक्त को वापिस दे देते। माता की ज्योत एक समान रूप से जली जा रही थी लग रहा था की शायद कुछ गैस वगैरह की पाईपलाईन बिछी हो पर ऐसा नही है। यह ज्योत पता नही कितने समय से जलती आ रही है इसका तो पता ही नही पर एक बार मुगल सम्राट अकबर ने इस ज्योति को बुझाने के लिए,पता नही कितने प्रयास किये पर यह ज्योति निरंतर जलती रही। आखिरकार अकबर भी मां की महिमा को जान गया ओर यहां घुटनो के बल आ गया,उसका अभिमान यहां आकर चकनाचूर हो गया । उसने मां को सोने का छत्र चढाया पर मां ने उसे स्वीकार नही किया ओर वह किसी ओर धातु में बदल गया। आज भी वह छत्र मन्दिर के पास ही रखा है।
मां की ज्योति के दर्शन कर व वहां से प्रसाद लेकर हम तीनो मन्दिर से बाहर आ गए। ज्वाला माई मन्दिर के आसपास कई मन्दिर बने है। हम तीनो ने एक एक कर सभी मन्दिरो में दर्शन किये।
मन्दिर परीसर में काफी भक्त मौजूद थे,कई ढौल वाले भी बैठे थे।कुछ लोग माता की ज्योत से ज्योत ले जा रहे थे। ऐसा हमारे गांव में भी होता है साल के दोनो नवरात्रो में यही से ज्योत ले जाते है ओर मन्दिर में एक अखंड जौत जलाते है,फिर सुबह हर घर से कोई ना कोई मन्दिर आता है ओर वहा उस अखंड ज्योत से एक ज्योत जला कर अपने घर के मन्दिर में स्थापित करता है।
उतर भारत के लोग माता की जात देने जाते है माता के दरबार में,यहां भी ऐसे काफी लोग मौजुद थे। जो मन्दिर परिसर मे गाना बजाना कर रहे थे।यह लोग ज्यादातर पीले वस्त्र ही पहनते है।इनको देखते हुए हम तीनो मन्दिर के बिल्कुल सामने बने माता का शयनकक्ष देखने के लिए पहुचें है जहां माता रानी का बिस्तर सजा है। ओर हर शाम यहा पर आरती होती है ओर माता का बिस्तर सजता है।
यहां से हम ज्वाला देवी मन्दिर के पास ही एक ओर मन्दिर है जिसे देखने गए "गोरख डिब्बी"। यहां पर माता का एक भक्त गोरखनाथ रहा करते थे। एक बार उन्हे भूख लगी तो उन्होने मां से कहा की "मां आप आग जला कर पानी गरम होने को रखे जब तक मै भिक्षा मांग कर लाता। मां ने आग जला दी ओर गोरखनाथ का इन्तजार करने लगी पर गोरखनाथ नही आया। सतयुग से कलयुग बीत गया पर गोरखनाथ जी नही आये। कहते है की माता रानी की यह ज्वाला ज्योति तब से निरंतर जलती आ रही है ओर माता रानी यहां पर हमेशा मौजूद रहती है। ओर जब तक बाबा गोरखनाथ नही आ जाते यह ज्योति यूं ही जलती रहेगी।
हम तीनो गोऱख डिब्बी नामक मन्दिर में प्रवेश करते है,यहां पर बाबा गोरखनाथ के कुछ चमत्कारो के चित्र बने है। वैसे इस मन्दिर में जो बात मुख्य है वो है खौलते पानी का कुण्ड जो दिखने मे तो खौलता महसूस होता है पर छुने पर ठन्डा ही होता है। यहां पर पुजारी नें कुछ देर के लिए दर्शन बंद कर दिए ओर पर्दा डाल दिया । आयुष ने हल्का सा पर्दा हटाकर देखा तो पुजारी जी नोटो को समेटने मे लगे थे। कुछ ही देर बाद दर्शन फिर से चालू हो गए। हमने भी गोरख डिब्बी के उस खौलते पानी के कुन्ड के दर्शन किये ओर बाहर आ गए। बाहर आते ही हमने देखा की बाकी लोग भी ज्वाला माता के दर्शन कर चुके है ओर हमारा इंतजार कर रहे है।यहां पर एक अन्य मन्दिर "टेढा मन्दिर" भी था जो लगभग 2km की दूरी पर था। हम वहा जाना तो चाहते थे पर अमरीष जी ने कहा की अब यहां,से चलो आज गाडी भी ठीक करानी है।(हमारी गाडी में कल ऊना से ही आवाज आ रही थी)हमने कहां की चामुंडा देवी भी तो चलना है पर हमारी गाड़ी खराब होने के कारण शायद ही हम वहा पर जा सके।हमने एक बार माता को प्रणाम किया ओर वहां से होटल की ओर चल पडे।
रात काफी लेट सोने के बावजूद सुबह आँखें जल्दी ही खुल गई। पूरी रात बारिश पडती रही थी,लेकिन अब बारिश रूक गई थी,मै ओर आयुष,पियुष ओर नेहा हम चारो होटेल की छत पर पहुचें। जहां से चारो ओर नजारा शानदार दिख रहा था। मन्दिर के पहले दर्शन भी हमे यही से हो गए। होटल से नीचे सडक पर देखा तो बाहर श्रद्धालुओं की चहल पहल चालू हो चुकी थी,जो मन्दिर की ओर चले जा रहे थे।ओर माता ज्वाला देवी के दर्शन जल्द से जल्द करना चाह रहे थे। मन्दिर तक एक गलियारा बना है जिसके दोनो तरफ प्रसाद व पूजा की ओर अन्य वस्तुओ की दुकानें है।यह सब हम ऊपर से ही देख रहे थे।हम सभी नीचे आ गए ओर सुबह के दैनिक कार्यो को निपटा कर सुबह के 9बजे मन्दिर की तरफ चल पडे। रास्ते में हमारे ड्राइवर साहब जी मिले जो दर्शन कर लोट रहे थे।हम होटल से पांच छ: मिनट में ही मन्दिर पर पहुचं गए। बाहर बनी दुकान से सबने प्रसाद लिया। ओर माता का जयकारा लगाते हुए,सीढियां चढते चले गए। ऊपर देखा की माता के भक्तो की भिड लगी थी। काफी भीड थी हमने अंदाजा लगा लिया था की कम से कम दो घंटे लग जाऐगे दर्शन करने में। हमे काफी देर हो गई एक ही जगह खडे खडे,मन में कई सवाल ऊठ रहे थे की यह लाईन क्यो नही चल रही है। मेने फैसला किया की यह लाईन क्यो नही चल रही है क्यो ना यह देखा जाए। इसलिए मै लाईन से हट कर आगे चल दिया काफी आगे जाकर देखा की अब तक तो तीन लाईन चल रही थी पर आगे लोहे के पाईप लगे है ओर वहा से एक ही लाईन बन रही है इसलिए ऐसा लग रहा था की लाईन चल ही नही रही है।धिरे धिरे लाईन चली ओर मै अपने साथ वालो से थोडा आगे हो गया। मैने अायुष व पियुष को भी अपने पास बुला लिया। हम तीनों नें ज्वालामुखी माता के दर्शन एक साथ किये।मन्दिर में अन्दर एक कुंड सा बना था जिसमे माता की ज्योत जल रही थी ।तीन चार पुजारी वहां पर लगे हुए थे जो लोगे के प्रसाद को मां की अग्नि ज्योत के पास ले जाते हो बाकी प्रसाद उसी भक्त को वापिस दे देते। माता की ज्योत एक समान रूप से जली जा रही थी लग रहा था की शायद कुछ गैस वगैरह की पाईपलाईन बिछी हो पर ऐसा नही है। यह ज्योत पता नही कितने समय से जलती आ रही है इसका तो पता ही नही पर एक बार मुगल सम्राट अकबर ने इस ज्योति को बुझाने के लिए,पता नही कितने प्रयास किये पर यह ज्योति निरंतर जलती रही। आखिरकार अकबर भी मां की महिमा को जान गया ओर यहां घुटनो के बल आ गया,उसका अभिमान यहां आकर चकनाचूर हो गया । उसने मां को सोने का छत्र चढाया पर मां ने उसे स्वीकार नही किया ओर वह किसी ओर धातु में बदल गया। आज भी वह छत्र मन्दिर के पास ही रखा है।
मां की ज्योति के दर्शन कर व वहां से प्रसाद लेकर हम तीनो मन्दिर से बाहर आ गए। ज्वाला माई मन्दिर के आसपास कई मन्दिर बने है। हम तीनो ने एक एक कर सभी मन्दिरो में दर्शन किये।
मन्दिर परीसर में काफी भक्त मौजूद थे,कई ढौल वाले भी बैठे थे।कुछ लोग माता की ज्योत से ज्योत ले जा रहे थे। ऐसा हमारे गांव में भी होता है साल के दोनो नवरात्रो में यही से ज्योत ले जाते है ओर मन्दिर में एक अखंड जौत जलाते है,फिर सुबह हर घर से कोई ना कोई मन्दिर आता है ओर वहा उस अखंड ज्योत से एक ज्योत जला कर अपने घर के मन्दिर में स्थापित करता है।
उतर भारत के लोग माता की जात देने जाते है माता के दरबार में,यहां भी ऐसे काफी लोग मौजुद थे। जो मन्दिर परिसर मे गाना बजाना कर रहे थे।यह लोग ज्यादातर पीले वस्त्र ही पहनते है।इनको देखते हुए हम तीनो मन्दिर के बिल्कुल सामने बने माता का शयनकक्ष देखने के लिए पहुचें है जहां माता रानी का बिस्तर सजा है। ओर हर शाम यहा पर आरती होती है ओर माता का बिस्तर सजता है।
यहां से हम ज्वाला देवी मन्दिर के पास ही एक ओर मन्दिर है जिसे देखने गए "गोरख डिब्बी"। यहां पर माता का एक भक्त गोरखनाथ रहा करते थे। एक बार उन्हे भूख लगी तो उन्होने मां से कहा की "मां आप आग जला कर पानी गरम होने को रखे जब तक मै भिक्षा मांग कर लाता। मां ने आग जला दी ओर गोरखनाथ का इन्तजार करने लगी पर गोरखनाथ नही आया। सतयुग से कलयुग बीत गया पर गोरखनाथ जी नही आये। कहते है की माता रानी की यह ज्वाला ज्योति तब से निरंतर जलती आ रही है ओर माता रानी यहां पर हमेशा मौजूद रहती है। ओर जब तक बाबा गोरखनाथ नही आ जाते यह ज्योति यूं ही जलती रहेगी।
हम तीनो गोऱख डिब्बी नामक मन्दिर में प्रवेश करते है,यहां पर बाबा गोरखनाथ के कुछ चमत्कारो के चित्र बने है। वैसे इस मन्दिर में जो बात मुख्य है वो है खौलते पानी का कुण्ड जो दिखने मे तो खौलता महसूस होता है पर छुने पर ठन्डा ही होता है। यहां पर पुजारी नें कुछ देर के लिए दर्शन बंद कर दिए ओर पर्दा डाल दिया । आयुष ने हल्का सा पर्दा हटाकर देखा तो पुजारी जी नोटो को समेटने मे लगे थे। कुछ ही देर बाद दर्शन फिर से चालू हो गए। हमने भी गोरख डिब्बी के उस खौलते पानी के कुन्ड के दर्शन किये ओर बाहर आ गए। बाहर आते ही हमने देखा की बाकी लोग भी ज्वाला माता के दर्शन कर चुके है ओर हमारा इंतजार कर रहे है।यहां पर एक अन्य मन्दिर "टेढा मन्दिर" भी था जो लगभग 2km की दूरी पर था। हम वहा जाना तो चाहते थे पर अमरीष जी ने कहा की अब यहां,से चलो आज गाडी भी ठीक करानी है।(हमारी गाडी में कल ऊना से ही आवाज आ रही थी)हमने कहां की चामुंडा देवी भी तो चलना है पर हमारी गाड़ी खराब होने के कारण शायद ही हम वहा पर जा सके।हमने एक बार माता को प्रणाम किया ओर वहां से होटल की ओर चल पडे।
ज्वालादेवी माता-ज्वालादेवी या ज्वालामुखी माता का मन्दिर कांगडा जिले मे पड़ता है। कांगडा से यहां तक की दूरी लगभग 35km है। इस मन्दिर मे माता की अग्नि ज्योत निरंतर जलती रहती है। यह भी माता के 51शक्ति पीठों में से एक है यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। कहते है की माता आज भी इन शक्तिपीठों में निवास करती है ओर जो सच्चे मन से यहां आकर माता की अराधना करता है,मां उसकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करती है। कहते है की इस मन्दिर की खोज पांडवों ने ही कि थी पर बाद में कांगडा के राजा ने इस मन्दिर का निर्माण कराया।
Sachin bhai aap ne jwaala ji ka darshan
जवाब देंहटाएंKarwa ya thanks mera bhi 9 deviya jaa ne
Ka mann hai
Thanks vinod ji
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