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बुधवार, 22 जुलाई 2015

हिमाचल यात्रा-05(माता चामुंडा देवी)

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19 june 2015, 
हम लोग ज्वाला माता के दर्शन करने के बाद कांगडा से कुछ दूर पालमपुर वाले रोड पर एक कस्बा पड़ता है "नगरोटा बागंवा"। जिसे हम पूरे रास्ते नगरोटा भगवान कहते रहे। यहां आकर वर्कशोप पर गाड़ी दिखाई पर यहां पर वह पार्ट नही मिला। इसलिए हम यहां से मायूस होकर बाहर निकल पडे। वैसे उसी ही दिन हमने गगल में गाड़ी ठीक करा दी थी यह मेनें पिछली पोस्ट में लिख ही दिया है इसलिए चलते है सीधा मां चामुंडा के दर्शन करने...।

हम नगरोटा के टोयटा शौरूम से आगे चलकर मालन नाम की जगह से बांये तरफ जाती रोड पर मुड गए।जिसको मालन चामुंडा रोड भी कहते है।यहां से चामुंडा देवी मन्दिर मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर रह जाता है। यहां से हल्की हल्की पहाड़ी रोड भी चालू हो गई। यह रोड सीधे धर्मशाला पालमपुर वाली रोड पर मिल जाती है।यहां T पोईंट पर ही माता का मन्दिर स्थित है ओर अगर बायें चले तो यह रास्ता हमे धर्मशाला पहुचाँ देगा जो यहा से 14 km की दूरी पर ही है ओर अगर यहां से दाहिने चले तो यह रास्ता सीधे पालमपुर पहुचां देगा,जो यहां से लगभग 28km की दूरी पर है। पालमपुर अपनी चाय के बगानो के लिए मशहूर है।
हम लोग गाड़ी वही पार्किंग मे खडी कर मन्दिर की तरफ चल पडे। मन्दिर के पास से ही प्रसाद ले लिया ओर माता की जय,जयकार करते हुए मन्दिर के अन्दर प्रवेश कर गए। हल्की हल्की बारिश तो पहले से हो रही थी पर यहां पर एकदम जबरदस्त तेज बारिश चालू हो गई। वो तो माता का शुक्र है,की मन्दिर मे टिन सेड लगा हुआ था नही तो पूरे भीग जाते। यहां पर दर्शन के लिए काफी लम्बी  लाईन लगी हुई थी। सभी लाईन में लग गए,पर हम तीनों(सचिन,आयुष व पीयुष) वगैर लाईन में लगे ही आगे जा कर लाईन में घुस गए। बाद में माता से इस गलती के लिए माफी मांग ली।हम  मन्दिर के प्रवेश द्वार से होते हुए एक गलियारे की सीढियां उतरने के बाद  मां चामुंडा के मुख्य मन्दिर के समीप पहुचं गए। काफी भीड थी पर सबको माता के बढिया दर्शन हुए। यहां पर एक आदमी ने अपने छोटे से बच्चे(10 या 15 दिन का होगा)को बाहुबली स्टाईल में एक हाथ से ऊठा रखा था ओर वह बडे जोरो से रो रहा था। वहां पर सभी लोगो ने उसे आगे जाने के लिए रास्ता यह कह कर दे दिया की" भाई तु पहले दर्शन कर हम तो बाद में कर लेगे"।
बाद में हमने भी चण्ड ओर मुण्ड  नामक महादृत्यो का वध करने वाली मां चामुंडा देवी के दर्शन किये। माता के दर्शन करने के बाद हम मन्दिर से बाहर आ गए। हमने देखा की बारिश अभी भी हो रही थी पर अब हल्की हो गई थी।मन्दिर परिसर में हनुमान जी की एक बडी प्रतिमा लगी है ओर पास ही भैरो बाबा का मन्दिर भी है।इन को नमस्कार कर हम सीढियो से नीचे उतरकर एक छोटी सी झील के पास पहुचें,इस झील के बीचो बीच भगवान शकंर की एक प्रतिमा लगी है ओर कुछ लोग यहां,पर पैडल वाली नाव भी चला रहे है। अभी तक धार्मिक मुड चल रहा था पर यह सब देखकर पिकनिक जैसा लगने लगा। हर कोई अपने आंनद मे डुबा दिखाई दे रहा था। हो भी क्यो नही जब मौसम सुहाना हो,कल कल बहती बानेर नदी(बाणगंगा) हो,मन्दिर से दिखते ऊंचे ऊंचे धौलाधार के बर्फ से ढके पहाड।जब यह सब कुछ एक ही जगह हो तो यकीनन आपके मन मे आंनद की एक लहर सी ऊठेगी ही।
इस छोटी झील के पास ही कुछओर  सुंदर प्रतिमाएँ लगी हुई थी। इनको देखते हम तीनों बानेर नदी या कहे की बाणगंगा नदी के तट पर पहुचें ।यहा पर बहुत से लोग पहले से ही मौजूद थे,सभी लोग यहा पर आकर मौजमस्ती कर रहे थे। कोई नहा रहा था तो कोई फोटो खिचंवा रहा था। हमने भी बाणगंगा के इस सीतल जल मे मुहं हाथ धोए ओर फोटो खिचने लगे। हम नदी मे बह कर आए बडे बडे पत्थरो पर बैठे गए।ओर  नदी के बहाब व उसके शौर को देख व महसूस कर रहे थे। आयुष व पियुष दोनो इस जगह की खूबसूरती का लुफ्त ऊठा रहे थे दोनो अलग अलग अंदाज मे एक दूसरे का फोटो खिंच रहे थे।मै उन्हे वही छोड कर थोडा ओर आगे की तरफ चला ही था की मेरी नजर नदी मे तैरते हुए एक साँप पर पडी जो मजे से तैरता हुआ आकर एक पत्थर पर बैठ गया। मैने उसके पास जाकर (थोडा दूर ही रहा)उसके फोटो खिंचे। वहा पर एक अन्य सांप ओर दिखाई दिया। फिर वह दोनो सांप एक बडे से पत्थर की ओट में पता नही कहां छिप गए। पर कहते है की पानी का सांप ज़हरीला नही होता पर एक बार टीवी पर बताया था की पानी का सांप ज़हरीला होता है। अगर आप में कोई इस बारे मे जानता हो तो मुझे जरूर बताना।
सांपो को देखकर मै वापिस उन दोनो के पास आ गया ओर उन्हे सांप के बारे मे बताया।व उन्हे ओर  वहां पर मौजूद अन्य लोगो को हिदायत भी दी की आप लोग उधर ना जाए वहां पर सांप है।
कुछ ही देर बाद दीदी व अन्य  हम तीनों के पास आ गए। सभी लोग नदी के किनारे बैठ गए। यहां पर आकर मन आंनद से भर गया।
कुछ समय यहां बैठ कर हम बाण गंगा नदी से बाहर निकल आए। ओर वापिस पार्किंग की तरफ चल पडे। पर मै ओर आयुष पास में ही एक मन्दिर देखने के लिए दोडते चले गए। यह मन्दिर पुरानी चामुंडा नाम का था। यहा पर कई मन्दिर थे। जिन्हे हम देखकर वापिस चामुंडा देवी मन्दिर पर पहुचं गए। यहा पर एक विशाल पत्थर पडा हुआ है जिसके नीचे एक गुफा सी बनी है मुस्किल से दो या तीन आदमी ही रह सकते है वहा पर। यहां पर एक शिवलिंग स्थापित है जिसको पंडित जी नन्दकेश्वर शिवलिंग बता रहे थे। उन्होने बताया की यह स्वयं निकला शिवलिँग है। इसका फोटो खिचना मना था इसलिए कैमरा जेब में ही पडा रहने दिया। यहां पर दर्शन करने के बाद हम सीधे पार्किंग में पहुचे। ओर गगल के लिए प्रस्थान किया जो यहां से लगभग 28km दूरी पर स्थित है....
चामुंडा देवी:-माता चामुंडा का मन्दिर जिला कांगडा मे स्थित है। यह मन्दिर बानेर नदी (बाणगंगा) के किनारे पर स्थित है।माता चामुंडा मन्दिर माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है। शक्ति पीठ उन्ह स्थलो को कहा जाता है जहां पर माता सती के अंग या आभूषण गिरे थे। ज्यादात्तर यह शक्तिपीठ भारत मे ही है ओर कुछ पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका व तिब्बत में भी  है। ऐसा माना जाता है की यही पर माता के पैर( चरण) गिरे थे। यह मन्दिर मां काली को समर्पित है। पौराणिक ग्रन्थो में व अन्य कथाओं मे वर्णित है की इसी जगह मां भगवती(शेरावाली मां)के एक रूप मां काली ने चन्ड ओर मुन्ड दो महाअसुरो का वध किया था ओर उनके सर काट कर मां भगवती को भेंट में दिए जिससे मां भगवती ने उन्हे वर दिया की क्योकीं तुमने चन्ड ओर मुंड नामक दो महाअसुरो का वध किया है इसलिए तुम इस संसार मे चामुंडा के नाम से विख्यात होगी।इसलिए यहां पर माता के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है कहते है की यहां पर देवी का पाठ कहने व सुनने वाले की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है।
अब कुछ फोटो देखते है............... 
जय मां चामुंडा देवी
मन्दिर द्वार बाहर पार्किंग के पास
मन्दिर द्वार (बाजार )
लाईन लगी हुई है
मां चामुंडा देवी का मुख्य मन्दिर
मन्दिर के बाहर का दृश्य
 मै सचिन त्यागी
मां काली चंड ओर मुंड के सर माता भगवती को उपहार के रूप मे देती हुई।
यहां चिलम पीना मनाभोले नाथ जी बब्बर शेर के साथ पियुष जीयह नकली नहीं"असली" है
पुरानी चामुंडा मन्दिर मार्गपुरानी चामुंडा मुख्य मन्दिर व दिवारो पर वर्णित इतिहास 
चामुंडा मन्दिर का पूर्ण दर्शन व नन्दीकेश्वर शिवलिंग वाला स्थान दिखता हुआ(मन्दिर के नीचे)
बाणगंगा नदी(बानेर नदी)
बानेर पर बना पूल 
आयुष व पियुष
मै सचिन त्यागी 
बाणगंगा नदी 
नाग देवता
नाग देवता

4 टिप्‍पणियां:

  1. Bhai maa ke dardhan bhi ho gaye aur naag devta ke bhi aap ka din bangya aur line me to ham bhi akksar ghuste hai maa to sab ko darshan deti hai aaj ki post me jaada nikhar hai

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  2. चामुण्डा माता के पुराने मन्दिर स्थल पर ही माता के अंग गिरे होंगे व यहीं चण्ड-मुण्ड के सर भेंट किये गये होंगे। इस हिसाब से पुराने मन्दिर का महात्म्य ज्यादा होना चाहिये। फिर दुसरे स्थान पर नया मन्दिर बनाये जाने के पीछे क्या कारण रहा है?

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  3. देवेन्द्र जी सर्वप्रथम तो ब्लाग पर प्रथम बार आने के लिए धन्यवाद....शायद मेने भी ऐसा ही सोचा था इसलिए हम यहां पर दर्शन के लिए गए,पर यह मन्दिर कोई अखाडा किस्म का लगा था,यहा पर एक बाबा जी का मन्दिर बना था ओर एक चामुंडा माता का लेकिन माता की पिन्डी नही थीजब की शक्ति पीठो मे पिन्डी की पूजा होती है.यहा केवल मूर्ति थी वो भी नई लग रही थी पर मन्दिर के प्रवेश द्वार पर मन्दिर का इतिहास वर्णन थालेकिन हम थोडा जल्दी मे थे इसलिए वहा उस मन्दिर में ज्यादा समय नही बिता पाए पर एक दो फोटो जरूर खिच लिए।

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