11dec2015,Friday
एक दिन मेरे बेटे देवांग(6 वर्ष) ने जिद्द लगा दी, की वह आज घुमने जाएगा, या तो मॉल या फिर इंडिया गेट। हुआ यह की वह स्कूल की तरफ से पिकनिक जा रहा था, कुछ तबियत ठीक नही थी, इसलिए उसे भेजा नही ओर कह दिया की हम तुम्हें ले जाएंगे पिकनिक पर, इसलिए उसने एक दिन जिद्द पकड़ ली की आज ही जाना है।
इसलिए हम सुबह तकरीबन 9:30 पर घर से इंडिया गेट की ओर निकल पड़े। कुछ ही मिनटों मे हम इंडिया गेट पहुंच गए। वैसे इंडिया गेट पर शाम ओर रात को बड़ा मजा आता है। सबसे पहले में , देवांग को इंडिया गेट के पास चिल्ड्रन पार्क ले गया, यह पार्क आज भी पहले जैसा ही था, कुछ नही बदला, जब में छोटा था, तब कई बार स्कूल की तरफ से यहाँ पर आया था, पर देवांग को यहां पर काफी मजा आ रहा था, वह यहां पर लगे कई प्रकार के झूलो पर खेल रहा था, आज भी यहां पर बच्चो की बहुत भीड़ थी, शायद कई स्कूल यहां पर आए हुए थे।
यहां पर कुछ समय बिताने के बाद हम दिल्ली की ऐतिहासिक व सबसे लोकप्रिय बिल्डिंग इंडिया गेट पहुँचे, यह पेरिस की एक बिल्डिंग से मिलती जुलती है, इसका डिजाईन लुटिंयन नामक एक अंग्रेज ने बनाया था, इंडिया गेट उन सैनिकों की याद मे बना था, जो प्रथम विश्व युद्ध मे अंग्रेजी सेना की तरफ से लड़ते शहीद हुए थे। इंडिया गेट के पत्थरों पर उन 70000 सैनिकों का नाम लिखा गया है, बाद मे आजादी के बाद इंडिया गेट के बीचो बीच अमर जवान ज्योति उन शहीद जवानों की स्मृति मे जलाई गई, जो 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध मे शहीद हुए थे। इंडिया गेट पर आज भारत के जल, थल व वायु सेना के ध्वज इन शहीदों को सलामी दे रहे है, इंडिया गेट को राष्ट्रीय शहीद स्मारक भी कहा जाता है। यह लगभग 42 मीटर ऊंचा है, यह लाल व भूरे पत्थरों से बना है। हर वर्ष 26 जनवरी को यहां पर राष्ट्रपति जी व बड़ी बड़ी हस्तियाँ गणतंत्र दिवस मनाते है, सैनिक परेड मे शामिल होते है, रंग बिरंगी झांकिया निकलती है।
यहां पर हम लोग फोटो खिंचवा रहे थे, वहाँ तैनात एक सैनिक ने एक व्यक्ति को वहां पर लगी चेन से दूर होने को कहा, इस बात पर वह व्यक्ति बहुत तेज तेज चिल्लाकर बोलने लगा, वह उस सैनिक से बहस करने लगा, एक दो गालियां भी दी, पर सैनिक ने उसे कुछ नही कहां, बस अपना काम करता रहा, यह देखकर मेरे व शायद ओरो के मन मे यही आया की वह इंसान कुछ ज्यादा ही सैनिकों का अपमान कर रहा है, जबकी वह तो अपनी ड्यूटी कर रहे है, वैसे कुछ देर बाद सब सामान्य हो गया। कुछ देर यहां पर समय बिताने के बाद हम तीनों यहां से वापिस चल पड़े।
अब हम दिल्ली के मथुरा रोड व दिल्ली चिड़िया घर के पास बने एक ओर ऐतिहासिक किला देखने पहुँचे। जिसे लोग पुराना किला के नाम से जानते है, प्रवेश शुल्क पांच रू० का था, अंदर बने म्यूजियम देखने के लिए पांच रू० का अलग टिकेट है। पुराने किले का इतिहास बहुत पुराना है, कहते है की पांडवो का इंद्रप्रस्थ यही था, वैसे म्यूजियम में यहां पर खुदाई से मिली बहुत सारी चीजें रखी है, बाद मे मुगल शासक हुंमायु व दिल्ली का एक ओर सम्राट शेरशाह सुरी ने भी इस किले मे निर्माण कराए। लेकिन हम अब इसे पुराने किले के नाम से ही जानते है।
किले में प्रवेश द्वार के बांये ओर तलाकी द्वार है, ओर दांये तरफ हुंमायु द्वार। यहां पर एक कुहना नाम की मस्जिद भी बनी है। जिसे 1541 में शेरशाह ने बनवाया था। मस्जिद के पास ही एक पानी की बावडी भी मौजूद है। पहले हर किले में ऐसी बावडीयां होती थी, कुछ बावडी तो काफी बड़ी होती थी, यहां पर एक शाही हमाम घर भी बना है, जो अब जर्जर हालत मे मौजूद है। हमाम घर के पास ही शेरशाह द्वारा बनवाया गया शेर मंडल जो अश्तकोनीय दो मंजिला भवन है। इसी भवन मे हुमायूँ का पुस्तकालय हुआ करता था. यहीं पर एक बार पुस्तकों के बोझ को उठाये हुए जब हुमायूँ सीढियों से उतर रहा था, तभी उनको मस्जिद से नवाज की पुकार सुनाई पड़ी। हुमायूँ की आदत थी कि नमाज़ की पुकार सुनते ही, जहाँ कहीं भी होता झुक जाया करता। झुकते समय उसके पैर लंबे चोगे में कहीं फँस गये और वह संतुलन खो कर गिर पड़ा। इस दुर्घटना से हुई शारीरिक क्षति से ही 1556 के पूर्वार्ध मे वह चल बसा।
पुराने किला मैं पहले भी कई बार आया हुं, पहले की तरह अब भी यहां पर प्रेमी जोडो का जमावडा लगा रहता है, कुछ लोग तो दिवारो पर अपना व अपनी प्रेमिका का नाम लिख देते है। जो बहुत गलत है, हम सभी को अपनी इन ऐतिहासिक इमारतों की कद्र करनी चाहिए। इन्हें साफ सुथरा रखने में मदद करनी चाहिए। कोई भी ऐसा कार्य ना करें जिससे इन्हें नुकसान हो।
यहां पर लाईट एंड साऊंड शो भी होता है, शाम को, जिसमें यहां का इतिहास बताया जाता है। ओर किले के बाहर, पानी की एक छोटी सी झील भी बनी है, जहां पर आप नोका विहार का आनंद ले सकते है।
हम लोग यहां घुम कर वापिस अपने घर लौट आए। आज का दिन दिल्ली घुमक्कडी के नाम रहा।
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चिल्ड्रन पार्क में बनी एक जंगल की कलाकृति। |
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बच्चे झूले पर लाइन लगाये हुए। |
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एक विदेशी बच्चा झूला झूलता हुआ। |
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देवांग देशी मुंडा |
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इंडिया गेट |
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एक फोटो साइड से भी |
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में और मेरा बेटा देवांग |
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अमर जवान ज्योत |
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पुराना किले का बाहरी दरवाजा |
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तलाकी दरवाजा |
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हुमायूँ दरवाज़ा |
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शेर मंडल जहा हुमायूँ का पुस्तकालय था। |
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पानी की बावड़ी |
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पुराना ज़माने का पाइप जहा से हमाम में पानी जाता होगा। |
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इसपर से होकर पानी जाता था। |
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कुहना मस्जिद |
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मस्जिद के अंदर का फोटो |
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साउंड एंड लाइट शो का टाइम टेबल |
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देवांग त्यागी |
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कैप्शन जोड़ें |
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शेर मंडल और पीछे कुहना मस्जिद दिखती हुई। |
Purana Quila pehle bhi ghoom chuka hoon, aapke lekh ne yaadein taaja kar di sachin bhai...
जवाब देंहटाएंशानदार तस्वीरों ने वृतांत को जीवंत बना दिया।
जवाब देंहटाएंकोठारी जी तस्वीरें ही यात्रा लेख की जान होती है।
हटाएंआपका शुक्रिया।
भाई आपकी पोस्ट ने हमारी इंडिया गेट की यात्रा की याद दिला दी फोटो का तो क्या कहना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुप्ता जी।
हटाएंभाई जी फ़ोटो दमदार है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सचिन कुमार जी।
हटाएंभाई जी फ़ोटो दमदार है।
जवाब देंहटाएंदेवांग के बहाने ही सही, हम फिर से पुराना किला और इंडिया गेट घूम लिए। बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसही कहा बीनू कुकरेती जी आपने, बच्चो के बहाने बड़े अक्सर घुम लिया करते है।
हटाएंशुक्रिया आपका।
इण्डिया गेट तो ठीक है पर पुराने किले के बारे में पहली बार मालूम पढ़ा। सुंदर चित्र और देवांग की फोटु भी सुंदर लगी । कुल मिलकर सफर बढ़िया रहा ☺
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बुआ जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर यात्रा वर्णन सचिन जी ! इंडिया गेट तो कई बार जाना हुआ है लेकिन आजतक पुराना किला कभी नही घुमा ! आपके पोस्ट को पढ़कर मन फिर से हो रहा है वहां जाने को !!
जवाब देंहटाएंयोगी जी धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिए।
हटाएंओर पुराना किला अवश्य देखने जाए।
बड़ों के अंदर भी कहीं ना कही एक बच्चा छुपा होता है,देवांग ने अपने साथ आपको और हमें भी घुमा दिया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षिता जी।
हटाएंसही कहा आपने "बड़े भी कही ना कही बच्चे होते है"
बढ़िया आउटिंग रही ,पिता और पुत्र दोनों की |देवांग बाबू के भी क्या कहने |उनकी वजह से हमने भी दिल्ली घूम ली ,बहुत बढ़िया जी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपेश जी...
जवाब देंहटाएंim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
जवाब देंहटाएंdog does.
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