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मंगलवार, 27 सितंबर 2016

Delhi to kunjapuri temple (दिल्ली से कुंजापुरी मन्दिर)

13 August 2016, शनिवार
कुंजापुरी देवी मंदिर 


बद्रीनाथ से लौटने के बाद कही जाना नहीं हुआ था, मन भी था कि कही कुछ दिन बाहर घूम आऊ, लेकिन  समय ही नहीं मिल पाया। लेकिन एक दिन मेरे बेटे देवांग (7साल) ने मुझसे प्रॉमिस लिया की में उसको ग्रीन वाले पहाड़ो पर ले कर चलूंगा। उस की नजर मे दो पहाड होते है, एक बर्फ के और दूसरे ग्रीन वाले जैसे पहाड़ कार्टून में आते हैं। मुझे उसकी बात सुनकर हँसी भी आई की वो पहाड़ असली में नहीं होते है, लकिन मेने उसको बोल दिया की अबकी बार जब छुट्टी पडेगी तब हम चलेंगे।

15 अगस्त के आसपास कुछ छुट्टी पड़ रही थी। देवांग का स्कूल भी तीन दिन तक बंद रहेगा बस इन्ही छुट्टियों मे मैने देवांग घुमाने का प्लान बना लिया। प्लॉन के अनुसार हम 13 अगस्त को घर से चल कर पहले नरेन्द्र नगर के पास कुंजापुरी माता के दर्शन करेगे, फिर टिहरी झील देखने जाएगे। बाकी का कार्यक्रम समय के हिसाब से वही देखेगे। मैने चलने से एक दिन पहले 12 तारिख को होटल कुंजापुरी में एक कमरा बुक कर दिया। जिससे हमे होटल ढुढने मे समय बर्बाद ना करना पडे। और टूर प्लान के अनुसार 13 अगस्त को सुबह 6:30 पर हम अपनी कार से कुंजापुरी के लिए निकल पडे। सुबह नाश्ता कर के नही चले थे, इसलिए मुजफ्फनगर बाईपास पर बहुत से ढाबे है, उन्ही ढाबो में से एक ढाबे पर रूक कर खाना खा लिया गया। आगे छपार गांव पडता है वहा पर जाम मिला, जाम से जूझते हुए हम आगे बढ चले, रोड पर आज बहुत सी गाडिया दिख रही थी, लग रहा है जैसे सभी लोग घर से घुमने के लिए निकले हो। रूडकी से तकरीबन दो किमी पहले ही ट्रैफिक जाम मिल गया। इसी कारण लगभग 25 मिनेट में हमने रुड़की का फ्लाईओवर पर किया। फ्लाईओवर पार करते ही पहले चौक से एक रास्ता बायें और देहरादून के लिए कट जाता है वाया छुटमलपुर होते। लगभग 70% भीड़ इधर ही जा रही थी, मतलब मसूरी और धनोल्टी में जम कर भीड़ होनी थी।

अब पूरे रास्ते कोई भी जाम नहीं मिला, कार सीधा हरिद्वार में शिव की पौड़ी पर लगा दी। समय देखा तो अभी दिन के 12 ही बज रहे थे। कुछ देर गंगा के किनारे बैठे रहे और गंगा स्नान करने के बाद ऋषिकेश की तरफ चल पड़े। ऋषिकेश सिटी में ना जाकर बाहर की तरफ वाले रास्ते से चल पड़े। यह रास्ता सीधा नरेन्द्र नगर चला जाता है। नटराज चौक पार करते ही पहाड़ी रास्ता आ जाता है। मुझे पहाड़ी रास्तों पर गाड़ी चलाना अच्छा लगता है। कुछ ही देर में हम नरेन्द नगर पहुच गये। यह एक छोटा सा पहाड़ी शहर है, जो राजा नरेन्द्र शाह का बसाया हुआ है। यहाँ से लगभग 8 किलोमीटर दूर हिंडोला खाल गांव आता है, वही से माता कुंजापुरी देवी को रास्ता जाता है, पास में ही टेक्सी स्टैंड है, जहा से ऊपर जाने के लिए टेक्सी मिल जाती है, हिंडोला खाल से मंदिर तक की दूरी मात्र 4 किलोमीटर है। कुछ लोग पैदल भी जाते है, हम अपनी कार से ही ऊपर चला पडे।

 यह रास्ता पतला सा बना है लेकिन हमे कोई भी वे किसी प्रकार की दिक्कत नही हुई,  बाकी यह रास्ता बारिश की वजह से हरा भरा हो रखा था, जिसकी वजह से यह और भी खूबसूरत लोग रहा था। हम कुछ ही मिनटों में ऊपर मन्दिर की सीढियों  तक पहुँच गए। प्रसाद लिया और ऊपर की तरफ चल पडे। यहां पर ज्यादा भीड नही थी जबकी यह के सिद्धपीठ है लेकिन यह मन्दिर अभी इतना प्रसिद्ध नही है कुछ ही लोगो को इसके बारे में पता है, जबकि यहां केवल धार्मिक दृष्टि से ही नही बल्कि मन्दिर से दिखता सुंदर नजारे के लिए अब बेहतरीन जगह है,  मन्दिर समुद्र तल से लगभग 1650 मीटर ऊंचाई पर है और यहां से चारो और का सुंदर नजारा देखने को मिलता है, यहां से एक तरफ दूर से दिखती ऊंची ऊंची बर्फ से ढकी चोटियों के दर्शन होते है तो दूसरी तरफ रीशिकेश शहर व दूर तक फैली घाटी दिखती है। लेकिन हमे यह मौका नही मिला क्योकि चारो और कोहरा या कहे की बादल छाए हुए थे। लेकिन फिर भी यहां आकर मन प्रसन्न हो ऊठा था।

कुंजापुरी देवी एक शक्तिपीठ है, आपको पता ही है जहां पर माता सती के मृत शरीर के अंग गिरे वहां वहां पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई। यहां पर माता सती के शरीर का ऊपरी हिस्सा गिरा था। गर्दन के नीचे के हिस्से को कुजा कहते है, ऐसी मान्यता है की इस पर्वत पर माता का कुजा गिरा था, इसलिए यहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई,  और कुंजापुरी ने नाम से जाने लगी। यहां पर दशहरे से पहले आने वाले नवरात्रो में मेला भी लगता है।

मैने पंडित जी से पूछा की हर शक्तिपीठ में पिंडी रूप मे माता का पूजन होता है, यहां पर पिंडी कही नही दिख रही है,  तब पंडित जी ने एक चांदी की प्लेट दिखाई और कहा की इस प्लेट के नीचे एक गढ्ढा है, जहां पर कुजा गिरा था, बस इसी जगह की पूजा होती है, मन्दिर मे एक दीपक जल रहा था व कुछ मूर्तियां रखी हुई थी, हमने प्रसाद चढाया व पंडित जी को दक्षिणा देकर बाहर आ गए। बाहर शिव मन्दिर भी बना है, शिव के दर्शन करके हम मन्दिर के पीछे रखी के बैंच पर बैठे रहे।  मौसम सुहाना था पर साफ नही था। यहां पर और मन्दिरो की तरह बहुत से बंदर भी मौजूद रहते है जो पलक झपकते ही अपना काम कर जाते है।

कुछ देर बाद हम मन्दिर से नीचे की तरफ चल पडे,  कुछ सीढियों से उतरते ही एक दुकान आती है उसी के पास एक होटल बना है, नाम है होटल कुंजापुरी, यही पर मैने के रूम बुक किया हुआ था,  आज हमारे अलावा यहा पर कुछ लडकियां रूकी हुई थी, लेकिन होटल में पानी की कमी व साफ सफाई की बहुत कमी दिखी जिस वजह से हमने यहां रूकना कैंसल कर दिया। दुकान से चाय और बिस्किट ले लिए,  चाय बिस्कुट खत्म करने के बाद हम चम्बा की और निकल पडे।

हिंडोलाखाल से चम्बा हम मात्र सवा घंटे मे ही पहुँच गए, मैने चम्बा में दो तीन होटल देखे पर पंसद नही आए,  फिर हम  गब्बर सिंह चौराहे से बांये तरफ जाते रास्ते पर चल दिए, वही उसी रोड पर होटल सिरमौर देखा।  होटल में कार खडी करने के लिए जगह भी थी,  और रूम भी साफ सुथरा था, रूम देखते ही पंसद आ गया। मोल भाव करने पर 1200 मे मान गया। होटल के मालिक से बातचीत की तो वह दिल्ली का ही निकला, मुझे उसका बातचीत करने का ढंग अच्छा लगा, उसने मुझे कल के लिए टिहरी झील तक जाने का रास्ता भी बता दिया। खाने की व्यवस्था होटल मे ही थी इसलिए खाने के लिए बाहर नही जाना पडा और खाना रूम मे ही आ गया, खाना खाने के बाद हम सो गए...

अगला भाग..... 
अब कुछ फोटो देखे जाय। 
हरिद्वार 



बस यही से कुंजापुरी के लिए मुड़ना है। 

नीचे से मंदिर दिखता हुआ 

मेरी कार 

टैक्सी स्टैंड, कुंजापुरी 


कही रास्ते में 

ऊपर कुछ दुकानें बनी है 


सीढ़िया मंदिर तक 

में और मेरा परिवार 

ऊपर कुंजापुरी माता मंदिर का प्रवेश द्वार। 

कुंजापुरी 


मंदिर के अंदर का दर्श्य 







धुंध व कोहरा 

ऊपर से दिखते नज़ारे 


होटल कुंजापुरी जहा पर हमने रूम बुक किया पर साफ सफाई व पानी की कमी की वजह से रुके नहीं। 


होटल सिरमौर ,चम्बा (उत्तराखंड)

गब्बर सिंह चौक (चम्बा 


34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर एक नयी जगह की जानकारी दी आपने।

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    1. धन्यवाद हितेश शर्मा जी।
      कुंजापुरी रीशिकेष वे हरिद्वार से बहुत निकट है फिर भी कम लोग ही इस मन्दिर को जानते है।

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  2. आज पहली बार इस जगह का नाम सुना . काफ़ी अच्छा लिखा है आपने .चित्र भी काफ़ी खूबसूरत हैं ...

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  3. मै २०१४ में यहाँ ट्रेक करके गया था ,ट्रेकिंग शुरू होती है ऋषिकेश में तपोवन नामक स्थान से बहुत ही बढ़िया रास्ता है थोड़ी बहुत जगह पूछना पडता है मंदिर जाने का रास्ता .
    मंदिर के पास से ही हिमालय का विहंगम दृश्य दिखता है

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    1. ट्रैकिंग कर के आप यहां तक आए,ऊपर से हमे बादलों की वजह कुछ नही दिखलाई दिया, फिर भी बेहतरीन जगह थी...
      बहुत बढिया जानकारी दी आपने।
      श्याम भाई धन्यवाद।

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  4. चलिये, आखिरकार आपने असली ग्रीन वाले पहाड़ दिखा ही दिए बच्चे को...
    बहुत बढ़िया यात्रा।

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  5. जय माँ कुंज्जापूरी, बहुत सुन्दर सचिन भाई।

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  6. बहुत बढ़िया यात्रा सचिन भाई,दो दिन के हिसाब से बहुत सुन्दर जगह है।यहाँ जाने का कई बार प्रोग्राम बनाया पर साथ जाने वालों में नीलकंठ महादेव जाने वाले ज्यादा रहे जिस वजह से जाना हो ही नहीं पाया।कुछ लोगों को तो इस जगह का पता भी नहीं है।नए लोगों को नई जगह से अवगत कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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    1. हा रूपेश जी अभी ज़्यादा लोगो को इधर के बारे में पता नहीं हैं, लकिन सूंदर जगह है अब की बार आप जरूर हो कर आना।

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  7. काफ़ी नाम सुना था मंदिर का, आज दर्शन भी कर लिए। बहुत सुंदर व बढ़िया।

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    1. धन्यवाद संदीप सिंह जी,वैसे आप तोह यहाँ हो कर आ गए होंगे आप तोह बहुत नजदीक रहते है।

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  8. त्यागी जी बेटा सही तो कह रहा था।बर्फ के पहाड़ और हरे पहाड़।

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  9. बहुत ही अच्छा सचिन जी, मैं भी टिहरी जाने के सोच रहा हूं, क्या वह आराम से होटल मिल जाते है।

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    1. थैंक्स संगम मिश्र जी।
      जी हां आप नई टिहरी, चंबा या अगरखाल रुक सकते है,होटल की कमी नहीं है।

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  10. देवांग ने बढ़िया काम करा, उसके साथ हमें भी कुञ्जपूरी के दर्शन हो गए

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  11. बहुत ही अच्छा सचिन जी, मैं भी टिहरी जाने के सोच रहा हूं, क्या वह आराम से होटल मिल जाते है।

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  12. बहुत बढ़िया सचिन जी
    उम्मीद है कि अगला भाग भी जल्दी ही पढ़ने को मिलेगा....👍

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    1. शुक्रिया चलते चलते साहब। आप अगला भाग पढ़ सकते है पोस्ट कर दिया गया है।

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  13. सचिन भाई माता के मंदिर के बारे सुना जरूर था मगर आपने दर्शन करवाया ,धन्यवाद। आपने जो यात्रा का वर्णन किया ,मज़ा आ गया, तस्वीरे जो आपने शेयर किये देखकर लगा जैसे मैं अभी दृश्य निहार रहा हूँ।

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    1. धन्यवाद मस्ती ट्रेवल जी। आपने पोस्ट पसंद की बहुत अच्छा लगा।

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  14. बहुत बढ़िया सचिन भाई....यात्रा के फोटो भी अच्छे लगे...|

    कुंजापुरी शक्तिपीठ का नाम पहली बार सुना है .....जानकारी के लिए धन्यवाद

    ये होटल सिरमौर चंबा पहले ही पड़ता है न....

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    1. शुक्रिया रितेश गुप्ता जी।
      होटल सिरमौर चम्बा में ही है,जहाँ से यमनोत्री व गंगोत्री को रास्ता जाता है उसी कट के सामने पेट्रोल पंप के निकट है।

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  15. बहुत बढिया सचिन भाई । एक नई और बेहतरीन जगह के दर्शन कराने के लिये । देवांग के माध्यम से हमने भी नई जगह के दर्शन कर लिये । टायपिंग मिस्टेक पर ध्यान दीजियेगा

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    1. धन्यवाद योगी सारस्वत जी लेख पसंद करने के लिए । व लेख सुधार लिए उपयोगी सलाह के लिए भी थैंक्स।

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  16. हिम्मत करके मैं पटना से अपनी गाड़ी से माँ के दर्शन को यहाँ 2014 में आया था।पत्नी बच्चों को जानकारी नहीं दी थी ।उनके लिए सरप्राईज था।हाँलाकि मंदिर में दर्शन को सिर्फ मैं और मेरी बेटी गए।आपने एक बात बतानी थी यहाँ पर कि कुल 312सिढियाँ चढनी पड़ती हैं।पर आपका पोस्ट है बहुत ही इंट्रेस्टिंग।मजा आया पढकर।रिवाइव हुआ

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    1. धन्यवाद राजेश जी आपका पोस्ट पर आने के लिये और पसंद करने के लिए।
      बाकि मैंने सीढ़ियों की संख्या की गिनती नहीं की थी लेकिन आपने बता दिया उसके लिए भी आभार।

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  17. हिम्मत करके मैं पटना से अपनी गाड़ी से माँ के दर्शन को यहाँ 2014 में आया था।पत्नी बच्चों को जानकारी नहीं दी थी ।उनके लिए सरप्राईज था।हाँलाकि मंदिर में दर्शन को सिर्फ मैं और मेरी बेटी गए।आपने एक बात बतानी थी यहाँ पर कि कुल 312सिढियाँ चढनी पड़ती हैं।पर आपका पोस्ट है बहुत ही इंट्रेस्टिंग।मजा आया पढकर।रिवाइव हुआ

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