लैंसडौन :- लैंसडौन उत्तराखंड के पौडी गढ़वाल जिले में बसा एक सुंदर शहर है। इसको अंग्रेजों ने बसाया और इसका नाम तत्कालीन वायसराय के नाम पर लैंसडौन रखा गया वैसे इसका पुराना नाम कालूडांडा था। लैंसडौन एक आर्मी के अधीन शहर है। गढवाल रायफल का मुख्यालय भी यही है। यह दिल्ली से मात्र 240 किलोमीटर पर स्थित है। यह शहर समुद्र की सतह से लगभग 1670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसलिए साल भर मौसम ठंडा ही रहता है। यहां पर कई दर्शनीय जगह है। बर्फ से ढंकी ऊंची ऊंची हिमालय की चोटियों के दर्शन भी यहां से होते है।
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लैंसडौन |
5,मार्च,2017
सुबह पांच बजे अलार्म बज ऊठा। थोडी देर बिस्तर में ही लेटा रहा। लेकिन साढे पांच बजे बिस्तर छोड दिया। आयुष भी ऊठ चुका था। कमरे से बाहर आया तो देखा अभी बाहर अंधेरा ही था और ठंड भी बहुत थी। होटल के मैन गेट पर ताला लगा हुआ था। स्टॉफ रूम पर जाकर मैने दरवाज़ा खटखटाया। अंदर से एक व्यक्ति आंखो को मलता हुआ बाहर आया उससे मैने बाहर का दरवाजा खुलवाया। हम दोनो होटल से बाहर आ गए। ठंडी हवा चल रही थी। होटल के पास कालेश्वर महादेव मन्दिर था। मन्दिर से घंटो की आवाज आ रही थी। सोचा उधर ही घुम आएगे और कही चाय की दुकान खुली मिली तो सुबह की चाय भी पी लेंगे। हम थोडा चले ही थे की चार लडके एक स्थानीय व्यक्ति से टिफिन टॉप (टिप एंड टॉप) का रास्ता पूछ रहे थे। उस व्यक्ति ने दांये व बांये हाथ घुमा कर रास्ता बतला दिया। वो चार वहां तो जा ही रहे थे, हम भी उनके साथ हो लिए । वो लडके नोएडा से आए थे और वही किसी कॉलेज में फोटोग्राफी सीख रहे थे। हर कोई दो दो कैमरे ले रहे थे। उन्होने ही बताया की 6:35 पर सूर्योदय होगा। जिसको कवर करने के लिए ही वह ऊपर जा रहे है। मुझसे भी उन्होने मेरा परिचय पूछा। अब हम सब एक साथ ऊपर जा रहे थे। एक जगह एक सिपाही खडा था उससे आगे का रास्ता पूछा और उस तरफ बढ चले। मै सबसे आगे ही चल रहा था। हम लगभग 6:25 पर टिफिन टॉप पर पहुँच चुके थे। टिपिन टॉप वैसे तो कई जगह होता है एक नैनीताल में भी हैै। टिफिन टॉप सबसे ऊंची जगह होती है और यहां से व्यू बहुत सुंदर दिखता है। ऐसे ही लैंसडौन की सबसे ऊंची जगह को टिफिन टॉप कहते हैं। यहां से हिमालय की उच्चतम चोटियों के दर्शन होते हैं। व सुबह के वक्त सूर्योदय के बेहतरीन नजारे दिखते हैं। यहां पर GMVN का गैस्ट हाऊस भी बना है। जहां पर पर्यटकों को रूकने की सुविधा भी है।
अभी टिफिन टॉप पर हमारे अलावा कोई नही था। कुछ देर बाद तीन लडके और आ गए। वह जयपुर से आए थे। उन्होने ब्लूटुथ स्पीकर लिया हुआ था और कोई धीमी आवाज में अंग्रेजी गाना चल रहा था जो उस सुबह को और भी रंगीन व खुशनुमा कर रहा था। सब अपने अपने काम में लगे हुए थे। कोई कैमरा तो कोई मोबाइल लिए फोटो ले रहा था। कुछ देर बाद सूरज की लालिमा चारो और फैल गई। सामने के पहाड जो अभी तक काले नजर आ रहे थे। अब उन पर बर्फ दिखने लगी थी। उनकी चोटियां सूर्य के प्रकाश से लाल हो गई थी। यह दृश्य देखने के लिए ही हम इतनी सुबह यहां आए थे। सामने हिमालय की चौखम्बा व त्रिशूल व नंदा पर्वत को तो मैं पहचान सका लेकिन बाकी को पहचान नहीं पा रहा था। मेरे हिसाब से प्रशासन(सरकार) की तरफ से यहां पर कुछ फोटो लगने चाहिए जिससे हम उनकी मदद से सामने की हर चोटियों को पहचान सके। टिफिन टॉप से नीचे देखने पर जयहरीखाल नामक जगह दिख रही थी। कुछ दूर पर्वत पर एक मन्दिर बना था। थोडी देर बाद वह साफ दिखने लगा और मैने उस मन्दिर को पहचान भी लिया था। वह मन्दिर भैरवगढी़ का था। मेरे दोस्त बीनू कुकरेती ने पहली बार इस मन्दिर के बारे में बताया था। बीनू का गांव बरसुडी भी लगभग उधर की तरफ ही है। बरसुडी एक सुंदर गांव है निकट भविष्य में उधर भी जाना चाहूंगा। अब हम वापिस चल पडे समय देखा तो सुबह के सात बज रहे थे। पास में ही सेंट मैरी चर्च थी। चर्च के सामने से भी हिमालय की श्वेत चोटियां दिख रही थी। तभी जीजाजी का फोन आ गया, हमने उनको बताया की हम टिफिन टॉप पर आ गए है। और वापिस आ रहे है। कुछ दूरी पर सैंट जार्ज चर्च थी, अभी मुख्य द्वार पर ताला लगा हुआ था। इसी के पास ही एक रास्ता भुल्ला ताल को जाता है। हम सीधा होटल पहुंचे। नहाने के बाद अपना समान गाडी मे रखा और होटल के नीचे बने रेस्टोरेंट में नाश्ता किया गया नाश्ते में आलू प्याज के पराठे व चाय मंगवा लिए।
नाश्ता करने के बाद हम भीम पकौडा नामक जगह देखने चल पडे । गांधी चौक से बांये तरफ जाते रास्ते पर चल पडे। कुछ दूर जाकर मैन रोड से एक पतली सी कच्ची रोड बांयी तरफ अलग हो गई । लग नही रहा था की इस पर गाडी जा सकती है। लेकिन पास में ही कुछ सैनिक सडको से कुडा करकट ऊठा रहे थे। उनसे पूछा तो उन्होने सीधा एक किलोमीटर चलने को कहा । कुछ दूर चलने पर एक वृद्ध महिला मिली मैने पूछा की भीम पकौडा कहा है। तब उन्होंने एक पत्थर की तरफ इशारा करते हुए बताया की वही है भीम पकौडा । उन्होने बताया की यह बहुत भारी पत्थर है लेकिन एक अंगुली से भी हिल जाता है। मैने जाकर उस पत्थर को थोडा हाथ से दबाया तो वह हिलने लगा मतलब वह बडा पत्थर नीचे की तरफ से बीच में ही टिका हुआ है। बाकी यहां पर कुछ नही है चीड का जंगल है चारो तरफ। एक तरफ लम्बी घाटी दिखती है। शोर शराबे से दूर यह जगह प्रकृति के चाहने वालो के लिए ही बनी है। यहां पर आप हवा का शोर व जंगल में बसे पक्षियों की आवाज सुन सकते है। भीम पकौडा से अब हम चल पडे।
फिर वापिस गांधी चौक पहुंचे और अब सीधे हाथ को जाते हुए रास्ते पर चल पडे। तकरीबन एक किलोमीटर बाद भुल्ला ताल के लिए बांयी तरफ रास्ता अलग हो जाता है बस हम भुल्ला ताल की ओर ही मुड गए । भुल्ला ताल के कुछ पहले एक पार्किंग में गाडी खडी कर हम पहुंच गए झील पर यह ज्यादा बडी झील नही है। और यह प्राकृतिक भी नही है। बस पर्यटकों के लिए बनाई हुई है। लेकिन छोटी होने के बाबजूद भी यह सुंदर ताल है । ऊपर से कही इसमे पानी आ रहा था । भुल्ला ताल तक जाने के लिए प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति 25 रूपये लगते हैं। और 80 रूपये बोटिंग के अलग है। हर बुधवार को यह भी बंद रहती है। अगर आप बोटिंग करना चाहते है तभी 80 का टिकिट ले, नही तो कुछ समय ताल के किनारे बैठ कर भी मजा ले सकते हैं। पानी मे तैरती बत्तखो को देखना अच्छा लगता है। कुछ खरगोश भी यहां पर आपको देखने को मिलेंगे। कुछ पक्षियों के पिंजरे भी है जहां पर कुछ कबूतरों को रखा हुआ है। कहने का मतलब है आप यहां पर काफी समय बिता सकते हैं। हम लोगो ने भी यहां पर लगभग आधा घंटा बिताया और आगे की तरफ चल पड़े।
आगे जाकर सैंट मैरी चर्च में गए। यह चर्च सन 1895 में बननी शुरू हुई और 1896 में बन कर तैयार हुई। चर्च के बाहर हिमालय के स्वेत पर्वतो का अब सुबह से भी अच्छे दर्शन हो रहे थे। मैं और आयुष चर्च के अंदर गए और वहाँ पर रखी कुर्सी पर कुछ देर बैठे रहे। वहा पर बहुत शांति का वातावरण था। चर्च में पुराने कुछ फोटो भी लगे हुए थे कुछ अंग्रजी अफसरों के थे। एक अफसर की शादी के फोटो भी लगे हुए थे। चर्च में एक फिल्म भी चलायी जाती है लकिन हम उसे देख नहीं पाए। यह 15 मिनेट की फिल्म होती है। कुछ आगे ही टिफ़िन टॉप भी है एक बार फिर हम उधर हो आये।
वापिसी में हमे लैंसडौन के गढ़वाल रेजिमेंट संग्रहालय पहुँचे। किसी से पूछना नहीं पड़ा क्योकि यह तो लैंसडौन में देखने की मुख्य जगह है। संग्रहालय में प्रवेश के लिए 60 रुपए का टिकेट लगता है। संग्रहालय के अंदर फोटो खींचने की मनाही है। हर बुधवार को यह बंद रहता है। बाकी दिन यह सुबह 9 से शाम 5:30 तक खुला रहता है। दोपहर को लंच टाइम पर बंद हो जाता है। यह परेड ग्राउंड के पास ही बना है। संग्रहालय में गढ़वाल रेजिमेंट की बहादुरी की देखने को मिलती है। सैनिको के मैडल आप देख सकते है। प्रथम विश्व युद्ध में जीती राइफल, गन, हैण्ड ग्रिनेड और भी बहुत सारे हथियार यहाँ देख सकते है। वीर सैनिको के बहादुरी के किस्से यहाँ जान सकते है। संग्रहालय का नाम भी गढ़वाल रेजिमेंट के एक बहादुर सैनिक के नाम पर ही रखा गया है। इस संग्रहालय का नाम दरवान सिंह नेगी गढ़वाल म्यूजियम है। यहाँ आकर मेरे मन में गढ़वाल रेजिमेंट के लिए आदर और सम्मान बढ़ा है। लैंसडौन आकर अगर यह म्यूजियम नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। सभी को यहाँ आना चाहिये।
यही पर एक ठंडी सड़क नाम से एक जगह है। उसी के साथ एक रास्ता जाता है कुछ दूर तक मैं उस रास्ते पर गया कुछ दूरी तय करने पर एक लड़का उधर से आता मिला। मैंने उससे पूछा की यह रास्ता आगे कहा तक जा रहा है । तब उसने बताया की यह लोकल ट्रेक है। इसे ठंडी सड़क ट्रेक बोलते है, क्योंकी रास्ते की दूसरी तरफ़ निरंतर हिमालय दिखता रहता है वैसे यह रास्ता आगे गांव तक जाता है फिर जंगल में भी। मैं ओर आगे नही गया और फिर में वही से वापिस हो गया क्योकि सड़क पर आयुष व दीदी भी मेरा इन्तजार कर रही थी। फिर हम वहां से कोटद्वार की तरफ चल पड़े।
यात्रा जारी रहेगी.....
लैंसडौन का पुराना नाम बढ़िया लगा। फोटो बढ़िया हैं और खूब भर भर कर लगाए हैं स्पेशलली वो फ़ोटो जिसमे कैमरा रखा है और सन सेट वाले बहुत बढ़िया लगे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षिता जी । हां फोटो बहुत सारे लगे है
हटाएंबढ़िया लेख यह पहली बार पता लगा की लैन्सडाउन का नाम किसी वाइस राय पे है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनोद भाई। जी पहले कालूडांडा नाम था इसका।
हटाएंकभीकभार इतिहास पर नजर डालते तो पता चलता,कि लैंसडौन ही नही डलहौजी जैसे कई पहाड़ी नगरों के नाम वाइसराय के नाम पर है ।
हटाएंभाई जब लैंसडौन गढ़वाल में है तो इस जगह पर kmvn का होटल कहा से आया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिक जी,,, गलती है हो गया था गलती सुधार ली गई है। एक बार फिर धन्यवाद।
हटाएंBahut aacha lika hai mr. Sachin, ek sujhav hai agar theek lage tu adopt kar Lena.
जवाब देंहटाएंAap photos ko ek sath na daal kar, unke vratant ke sath dale tu mast vratant banega.
Thanks parvesh ji... I will try in future
हटाएंकालू डांडा, भीम पकौड़ा एक से एक नाम ढूंढ के लाये जो सचिन भाई । फोटो भी बढ़िया और खूब लगाये हैं "दिल से"
जवाब देंहटाएंसंजय जी.. हां नाम कुछ हैरान करने वाले है। फोटो बहुत थे काट छांट कर इतने तो लगाने पडे.... शुक्रिया "दिल से"
हटाएंबढ़िया पोस्ट , दिन ब दिन भाषा शैली निखर रही है । सभी फोटो बहुत सुंदर है । बढ़िया लिखा दिल से
जवाब देंहटाएंमुकेश पांडेय जी बस कोशिश कर रहा हूं लिखने की... आपका बहुत शुक्रिया और ऐसे ही मार्गदर्शन कराते रहे।
हटाएंशानदार, उत्कृष्ट एवं सुन्दर यात्रा लेख....!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शैलेंद्र सिंह जी।
हटाएंबढ़िया पोस्ट ।शानदार चित्र ।सूर्योदय के चित्र को बेहद सुन्दर आये है ।
जवाब देंहटाएंThanks naresh ji
हटाएंShandar vrtant umda photo bhai ji👍👍
जवाब देंहटाएंThanks Dr. Ajay
हटाएंलैंसडौन दिल्ली -एनसीआर वालों के लिए अच्छा स्पॉट हो गया है ! और हो भी क्यों न ? सबकुछ है जो पहाड़ में चाहिए होता है और वो भी बिना ज्यादा पैदल चले ! फोटो बहुत ही खूबसूरत है और "इन्वाइट " कर रहे हैं !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी सारस्वत जी। भाई आपने बिल्कुल सही कहा दिल्ली से मात्र पांच छ: घंटो मे यहां पहुंचा जा सकता है और देखने को भी बहुत कुछ है।
हटाएंबहुत बढ़िया सचिन भाई। मैं टिप n टॉप से दिखने वाले खूबसूरत नज़ारे फोग की वजह से नही देख पाया था। आपकी फ़ोटोज में देख लिया। बहुत अच्छा लिखते हैं आप
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओम भाई। वैसे मार्च में मौसम साफ था जिसकी वजह से खूबसूरत नजारे दिख सके।
हटाएंshaandar jagah ki shaandar jankari dene ke liye dhanywaad.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुज गोयल जी।
हटाएंसम्पूर्ण विवरण....
जवाब देंहटाएंशानदार फ़ोटोग्राफ़ी...
अगले भाग का इंतजार रहेगा।
धन्यवाद डॉ सुमित शर्मा जी। बस ऐसे ही कमेंट्स करके प्रोत्साहन करते रहे।
हटाएंबहुत बढ़िया लैंड्सडाउन!
जवाब देंहटाएं#घुमक्कड़ी दिल से
Thanks R.D. BHAI, DIL SE...
हटाएंकमाल की जगह है , इतना बड़ा पत्थर और वो भी हिलता हुआ देखना पड़ेगा,सुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दर्शन कौर जी (बुआ)
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