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कुमाऊं रेजिमेंट का संग्रालय, रानीखेत उत्तराखंड |
23 मार्च 2017
सुबह 5:30 का मोबाइल में अलार्म भरा होता है। इसलिए आज भी सुबह 5:30 पर ऊठ गया। उठते ही कमरे से बाहर बॉलकनी में आ बैठा लेकिन बाहर अभी अंधेरा था। थोडी देर बाद कमरे में आकर पानी पीया और फिर बॉलकनी में चला गया। बाहर चिड़ियों की आवाज आ रही थी। यह बहुत प्यारी अावाज होती है। लगता है जैसे चिडिया ने कोई मधुर राग छेड दिया हो सुबह की इस मनोरम छटा में। कुछ देर बाद हल्का हल्का अंधेरा छटता गया और सामने हिमालय की ऊंची स्वेत पहाड़िया जो अभी तक अंधेरे की वजह से दिख नही रही थी अब दिखने लगी थी। नीचे गांव से लोगो की आवाज भी सुनने को आनी लगी थी। शायद वो अपने कार्यो पर लग गए होंगे। सामने का नजारा हर मिनट पर बदल रहा था हिमालय की ऊंची चोटियां भी अपना रंग बदल रही थी। शुरू मे जो काली दिख रही थी वह कभी लाल तो कभी भूरी दिख रही थी। सूर्योदय की ऐसी छटा देखना मन, मस्तिष्क को बहुत शांति देता है। कुछ देर बाद विराट हिमालय साफ साफ नजर आ रहा था। एक दम साफ बर्फ से ढका दिख रहा था। चौखम्बा भी थोडी सी दिख रही थी। त्रिशुल पर्वत व नंदा देवी तो एक दम साफ दिख रही थी कुछ और पर्वत भी दिख रहे थे लेकिन मै इनका नाम नही जानता था। इन हिमालय पर्वत की चोटियों पर जाना बेहद दुर्गम होता है। कुछ लोग यहां तक जाते भी है। कुछ लोग पैदल इसके बहुत नजदीक चले जाते है। जहां से इनको और नजदीकी से देख सकते है। ऐसे लोगो को ट्रैकर कहा जाता है और ऐसी पैदल यात्रा को ट्रैकिंग । कुछ लोग हमारे जैसे भी होते है जो इन्हे दूर से ही आंखो से देखकर खुश हो जाते है। मतलब हिमालय सबको अपनी तरफ आकर्षित करता है। और लोग इसे देखकर आंनद लेते हैं।
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सुबह सुबह अभी कुछ अँधेरा है। |
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अब सूर्योदय होने वाला है |
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अब कुछ धूप आती हुई |
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बच्चे भी आ गए है |
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अब त्रिशूल पर्वत व अन्य पर्वत दिख रहे है। |
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ऐसी जगह हाई ज़ूम वाला कैमरा होना चाइए होता है। मेरे पास सामान्य कैमरा था |
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यह भी सुबहे का नजारा था। |
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त्रिशूल पर्वत व नंदा देवी व नंदा देवी ईस्ट पर्वत श्रंखला |
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मैं सचिन त्यागी |
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किसान खेत जोतते हुए |
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नैणी गांव तक जाती एक पगडंडी |
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डाइनिंग हॉल से दीखता विराट हिमायल की पर्वत श्रंखला |
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बू बू आश्रम व मंदिर , रानीखेत |
मैं इस नजारे को देखकर बहुत खुश था। साथ मे देवांग व दोनो बच्चे वह भी मेरे साथ हिमालय की इन खूबसूरत पर्वतमाला को देखकर आंनद ले रहे थे। थोडी देर बाद चाय आ गई। चाय पीने के बाद नहा धौकर हम सब तैयार हो गए। जब तक नाश्ता तैयार होता है तब तक हम नीचे गांव की तरफ चल पडे। गांव के कुछ मजदूर ऊपर से सिमेंट व भवन निमार्ण सामाग्री नीचे गांव की और ले जा रहे थे। पहाडो पर भवन निर्माण की कीमत ऐसे ही बहुत बढ जाती है। क्योकी समान को इधर से उधर ले जाना होता है। नीचे गांव में बच्चे खेल रहे थे। और कुछ किसान बैल द्वारा चलित हल से खेत मे जुताई कर रहे थे। जो बैल को आवाज देकर आगे पीछे कर रहे थे। हमे यह सब देखना बहुत अच्छा लग रहा था। गाय भैंस के गौबर से बने उपले( कंडे) जिन्हें इंधन के रूप मे भी उपयोग किया जाता है। उनको एक विशेष प्रकार से सम्भाल कर रखा जाता है जिसके लिए कुछ झौपडी टाईप जगह बनाई जाती है। उसे भी हम देखकर आए। कुछ देर बाद होटल से बुलावा आ गया नाश्ते के लिए और हम वापिस चल पडे।
होटल में एक डायनिंग हॉल बना है। हॉल से भी हिमालय की सुंदर पर्वतमाला के दर्शन हो रहे थे। मेरे पास ज्यादा ज़ूम वाला कैमरा नहीं था ऐसी जगह ज्यादा ज़ूम वाला कैमरा ही काम आता है क्योकि जो हम देख रहे है उसे और ज्यादा पास से देख लेते है। नाश्ता लग चूका था, नाश्ते में मैने दही और परांठे लिए। बच्चो के लिए गर्म दूध ले लिया। नाश्ता अच्छा बना था। होटल के रहने व खाने पीने का बिल अदा कर हम वहां से चल पडे। कुछ दूर पर बूबू आश्रम बना था। आश्रम में मन्दिर भी बना है, मन्दिर में दर्शन कर हम आगे चल पडे।
हम सीधा रानीखेत के कुमाऊँ रेजिमेंट के संग्रहालय पहुँचे। हमसे पहले तकरीबन दस लोग और वहां पर मौजूद थे। 25 रू एंट्री फीस लगती है संग्रहालय में अंदर प्रवेश करने के लिए। किसी भी तरह की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी करना मना है। अब लगभग म्यूजियम देखने वाले पर्यटकों की संख्या 20 से ऊपर हो चुकी थी। यहां पर हमे एक रिटायर्ड आर्मी मैन मिले जिन्होने बताया की वह कोई गाईड नही है लेकिन वह हर आने वाले व्यक्ति को यह संग्रहालय घुमाते है। अपनी भारतीय सेना व कुमाऊँ रेजिमेंट के बारे में बताते है जिससे उन्हे बहुत अच्छा लगता है। पहले उन्होने सेना मे दिए जाने वाले चक्रो के बारे मे बताया उन्होने बताया की परमवीर चक्र से बडा कोई च्रक नही होता है। उन्होने बताया की कुमायूँ रेजीमेन्ट के मेजर सोमनाथ शर्मा 1947 में श्रीनगर में हुयी लड़ाई में पराक्रम दिखाते हुये शहीद हुए उनके मरणोपरान्त देश का पहला परमवीर चक्र उनको प्राप्त हुआ। सन् 1962 में भारत व चीन के युद्ध में मेजर शैतान सिंह भाटी ने वही शौर्य और पराक्रम दिखाते हुये कुमायूँ रेजीमेंट का दूसरा परमवीर चक्र प्राप्त किया। उन्होंने बताया की जब भारत अंग्रेजो के आधीन था तब भी कुमाऊँ रेजिमेंट कार्यशील थी। लेकिन भारत के आजाद होने पर इस रेजीमेंट ने हमेशा भारतीय सेना का मान ऊंचा किया है। कारगिल वार में कैसे भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाई उसके बारे मे भी बताया। एक जगह पाकिस्तान का झंडा उल्टा लटका हुआ था तब उन्होने बताया की हमारी सेना ने कई बार पाकिस्तान को हराया है इसलिए उसका झंडा यहां पर उल्टा लटका हुआ उनकी हार की गवाही दे रहा है। यहां पर हमने विश्वयुद्ध में पकडी गई चीनी राईफल, जापानी वायरलेस व गोले, बंदुके आदि कई चीजे देखी। जो हमे हमारी सेना पर गर्व करा रही थी। यहां पर कुछ युद्घपोतो के छोटे प्रारूप भी रखे थे। बार्डर पर तैनात जवानो के लिए दी गई गन व बंदुको के बारे में यहां जानने को मिला। पहले की सेना की वर्दी व समय समय पर क्या इसमे बदलाव हुए वह यहां पर देखने को मिला। यहां पर झांसी की रानी का राज दंड भी रखा हुआ है। यहां पर शहीद हुए सैनिको के ताबुत भी देखे। यहां पर बहुत सी चीजे देखी जिनका वर्णन करते करते मै थक जाऊंगा इसलिए यही कहूंगा की आप जब भी रानीखेत आओ तो कुमाऊँ रेजिमेंट के म्यूजियम जरूर जाना।
जो रिटायर्ड आर्मी मैन हमे संग्रहालय घुमा रहे थे वह बहुत हंसमुख व मजाकिया किस्म के थे। वह बार बार बच्चो व महिलाओं से कह रहे थे की जब आप पूरा संग्रहालय घुम लोगे तब मै आपको एक गिफ्ट दूंगा अगर आप उसे ऊठा कर ले गए तो वह आपकी होगी। जब सबसे शांति से पूरा संग्रहालय घुम लिया तब वह कहने लगे की संग्रहालय के बाहर दो एंटी एयरक्राफ्ट गन खडी है जो उठा कर ले जा सकता है ले जाए नही तो अपने कैमरे से उनकी फोटो ही ले जाएं। मै मना नही करूंगा सब लोग उनके इसी कहने पर बहुत हंसे। हमने भी उनको धन्यवाद किया और म्यूजियम से बाहर आ गए और चल पडे अगले सफर की ओर.......
अब कुछ फोटो देखे। ....
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म्यूजियम के बाहर |
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कुमांऊ रेजिमेंट का म्यूजियम , रानीखेत |
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देवांग व उसका गिफ्ट अगर वो ले जा सके इसलिए फोटो ही ले लिया |
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बच्चे यहाँ आकर बड़े ही खुश थे। |
सचिन भाई बहुत लिखा है आपने, सचित्र विवरण, एक दूसरे का लिखा हुआ पढ़ने के बाद कहीं जाने की योजना बनाना कितना आसान हो जाता है
जवाब देंहटाएंजी भाई सही कहा आपने दूसरो का लेख पढ कर ही उस जगह जाने का मन करने लगता है। क्योकी उस लेख में हमे वहा की जानकारी मिल जाती है।
हटाएंशुक्रिया अभयनन्द जी।
सचिन भाई सूंदर विवरण और लाजवाब फोटोग्राफी बिना झूम कॅमेरे के
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वसंत पाटिल जी।
हटाएंबढ़िया सचिन भाई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हरेंद्र भाई।
हटाएंबहुत बढ़िया त्यागी जी, रानीखेत कभी जाना हो तो ये म्यूजियम जरूर जाऊंगा। नई जानकारी मिली।
जवाब देंहटाएंजी RD भाई आप जरूर होकर आना जब भी रानीखेत का टूर लगे। आपका बहुत शुक्रिया ।
हटाएंअच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा चल रही है सचिन भाई...ये भी हम नही घूमे थे :(
जवाब देंहटाएंकोई नही रितेश जी अब की बार यह दो तीन जगह आप जरूर होकर आना।
हटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रमता जोगी भाई।
हटाएंअति सुन्दर और रमणिक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिनेश ठाकुर जी। आपका स्वागत है ब्लॉग पर।
हटाएंइस सीरीज की सबसे अच्छी पोस्ट है भाई फोटो तो मनभावन है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनोद भाई इस हौसला अफजाई के लिए।
हटाएंबहुत संदर फोटो व विवरण । कुमायूं रेजीमेंट के बारे में जानकर गर्व हुआ ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुंजन जी। मुझे भी नही पता था पहले की सर्वप्रथम परमवीर चक्र इस रेजिमेंट को ही मिला था। बाकी और बहुत कुछ देखने को है इस संग्रहालय में।
हटाएंआपका स्वागत है ब्लॉग पर।
बहुत सुंदर विवरण.. चोटियों के लिये अच्छे जूम का कैमरा जरुरी है..मैने रानीखेत से दिखती चोटियों की जूम से फोटो रायट आफ कलरस में लगाई है.. आशा है आपने देखी होंगी.. चौखम्बा की तो कल ही लगाई...वो भी रानीखेत (होटल पार्वती रिसोर्ट ) से ली है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद P.S.Sir..
हटाएंसर मैने आपके फोटोग्राफ देखे थे। वाकई कमाल के थे। ऐसी फोटो के लिए ज्यादा जूम वाला कैमरा होना अति आवश्यक है। मेरे पास सामान्य सा कैमरा था इसलिए दूर के फोटो खराब आए है।
अगली बार गए तो जरूर सबकुछ देखेगे। हिमालय की चोटियों के दृश्य काफी बेहतर है ।अच्छे कैमरे से तो सभी अच्छे फोटू लेते है पर साधारण कैमरे से अच्छे फोटू लेना खूबी कहलाता है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बुआ जी।
हटाएंओर एक बात यदि हर पोस्ट में सारे लिंक दिए जाएं तो सिलसिलेदार सभी पोस्ट पढ़ सकते है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बुआ जी। आपने बहुत अच्छी सलाह दी है जल्द ही सलाह को अमल मे लाऊँगा ।
हटाएंसचिन भाई जानकारी से भरपूर पोस्ट। आप की पोस्ट पढ़ कर मेरा भी जाने का मन हो रहा है जाने का।
जवाब देंहटाएंहा हा हा जरूर जाइये भाई। धन्यवाद आपका
हटाएंमजा आ गया सचिन भाई ! अभी पिछले ही साल नवंबर में होकर आये हम भी उधर ! फोटो जबरदस्त हैं !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी भाई।
हटाएंबहुत बढ़िया सचिन भाई, रामनगर की तरफ अभी तक जाना नहीं हुआ मेरा, देखो कब चक्कर लगता है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रदीप भाई
हटाएंसचिन जी कुमाऊँ रेजिमेंट संग्रहालय का बहुत ही अच्छा विवरण किया आपने और जिन्होंने (रिटायर्ड आर्मी मैन) आपको ये सभी जानकारी निस्वार्थ दी उनके काम को भी सलाम।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गौरव जी
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