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बुधवार, 19 सितंबर 2018

मेरी जयपुर यात्रा (अल्बर्ट हॉल म्यूजियम,सिटी पैलेस और हवामहल)

हवामहल ,जयपुर 

21 जनवरी 2018
आज सुबह आराम से उठे क्योंकि कल किले घूमने के बाद जयपुर के लोकल बाजार से थोड़ी ख़रीदारी भी की थी। इसलिए सोने में थोड़ा लेट भी हो गए थे। सुबह फ्रेश होने व नाश्ता करने के बाद हम होटल के रिसेप्शन पर पहुँचे तब तक होटल के एक कर्मचारी ने सारा सामान गाड़ी में रख दिया था। हमने होटल का बाकी का भुगतान भी कर दिया और जयपुर के जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्तिथ अल्बर्ट म्यूजियम हॉल देखने जा पहुँचे। सबसे पहले गाड़ी को पार्किंग में खड़ी किया और  फिर टिकट काउंटर से टिकट(40 रुपये प्रति व्यक्ति) लेकर सीधा हॉल के अंदर  प्रवेश कर गए।

अल्बर्ट म्यूजियम
अल्बर्ट हॉल संग्रहालय का निर्माण महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा सन 1876 में शुरू किया। प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड 7 जब भारत यात्रा के दौरान जयपुर आये तो उनको सम्मान देने के लिए इस इमारत को उन्ही का नाम दिया गया। यह इमारत 1886 में बनकर तैयार हुई। यह इमारत भारत - अरब शैली में बनाई गई और इसका डिज़ाइन सर सैम्युल स्विटन जैकब एक वास्तुकार ने बनाया और सन 1887 में यह इमारत पब्लिक के लिए एक संग्रहालय के रूप में खोली गई। इस म्यूजियम में भारत ही नही बल्कि बहुत से देशों की संस्कृति को जानने का मौका दिया गया।  इस म्यूजियम में पुराने चित्र, कालीन ,दरिया, कीमती पत्थर, धातु व पत्थर से बनी पुरानी मूर्तिया, पुराना फर्नीचर, सिक्के, तलवारें व और बहुत सी वस्तुएँ देखने को मिलती है। इसलिए जयपुर आने वाले पर्यटक यहाँ अवश्य आते है। यहाँ इस म्यूजियम के नीचे तल में एक बहुत पुरानी ममी भी रखी है। ममी एक प्रकार का शव होता है जिस पर कई प्रकार के लेप व कपड़े की पट्टीयो को लपेटा जाता था जिससे मृत शरीर सड़े गले नही। यह ममी जो किसी शाही परिवार की औरत की है। इसको मिस्र से लाया गया है।

हॉल में प्रवेश करते ही दीवारों पर जयपुर के सभी राजा महाराजों की तस्वीर लगी है साथ मे उनके काल भी लिखे है। अब हम सीढ़ियों से होते हुए ऊपर के कक्ष में पहुँचे। यहाँ पर बहुत सी पुरानी बहुमूल्य वस्तुओं को रखा गया है एक बहुत बड़ी ढाल देखी जिस पर रामायण के चित्र अंकित थे। एक बहुत बड़ा (प्यानो) वघ्ययंत्र भी यहाँ पर रखा गया है। श्री विष्णु जी की मूर्ति व अन्य भगवानो की मूर्ति भी दर्शनीय है। कुछ सही सलामत है तो कुछ खण्डित हो रखी है। हमने सैनिको द्वारा पहने जाने वाली पोशाक व अस्त्र सस्त्र भी देखे। एक पित्तल का हाथ धोने का वाश वेसन भी म्यूजियम में रखा गया है। उस समय की खेलने वाली वस्तुओं को भी देखा गया फिर हमने प्राचीन ग्रंथ भी देखे। यहाँ और भी बहुत सी वस्तुओं को हमने देखा। फिर हम सबसे निचले कक्ष में पहुँचे यहाँ पर एक पुरानी ममी देखी। यहाँ फ़ोटो लेने की मनाई है इसलिए ममी की फ़ोटो नही ले पाया। बाकी पूरे म्यूजियम में फ़ोटो ले सकते है। कुछ देर बाद हम म्यूजियम से बाहर आ गए और अब सिटी पैलेस की तरफ चल पड़े।
albert museum jaipur

हॉल में प्रवेश करते ही यहाँ राजा महराजाओं की तस्वीरें लगी है। 

ऊपर कक्ष में ढाल व अन्य वस्तुएँ रखी गयी है। 

एक बड़ा सा प्यानो 

इस पर भी रामायण के दृष्य अंकित है। 

गौतम बुद्ध की सर कटी मूर्ति 

विष्णु भगवान की मूर्ति 

सैनिक व उसकी पोशाक 

एक और कक्ष 





वाश बेसन पुराने समय का 

चौसर 




हाथी दांत से बनी कुछ वस्तुएँ 



निचले मंज़िल पर बना ममी घर जहाँ एक ममी को पर्दिशित किया गया है। 

यह वो ममी है जो अल्बर्ट हॉल म्यूजियम में रखी गयी है। यह एक महिला की ममी है। (दैनिक भास्कर से लिया गया फोटो )

सिटी पैलेस
सन 1959 में जयपुर सिटी पैलेस प्रांगण में महाराजा ऑफ जयपुर म्यूजियम की स्थापना की गई। बाद में 1972 में इसका नाम बदल कर महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम कर दिया गया। जो आज भी राजशाही जीवन के सुनहरे पलो और इतिहास को प्रदर्शित कर रहा है। ऐतिहासिक महत्व की कलात्मक वस्तुएँ जो कभी महाराजाओं के निजी संग्रह में हुआ करती थी आज इस म्यूजियम में रखी हुई है।
इस पैलेस में कई इमारत है जिसमे अलग अलग वस्तुओ को प्रदशित किया गया है।
हम टिकट लेकर अंदर प्रवेश कर गए। एक बड़े से दरवाज़े से होकर गुजरे उसको वीरेन्द्र पोल कहते है। दरवाजे के सामने ही एक छोटा सा महल है जो एक चबूतरे पर बना है। इसका निर्माण सवाई माधोसिंह द्वितीय (1880-1922) के शासनकाल में किया गया। आज इसमें शाही वस्त्रो को प्रदर्शित किया गया है। जिनको देखना अच्छा लगता है। एक अन्य इमारत जिसको सिलहखाना कहते है यहाँ पर विभिन प्रकार के हथियारों को रखा गया है जैसे तलवार, कटारे, तीर कमान, बंदूकें आदि हथियारों को रखा गया है।
एक और दरवाजे जिसको राजेन्द्र पोल कहते है इस दरवाज़े के दोनों तरफ संगेमरमर के हाथी रखे हुए है जिनको स्पर्श करते हुए हम अंदर चले गए। अंदर दीवाने खास महल है। यहाँ पर दो बहुत बड़े चांदी के कलश रखे हुए है जो विश्व मे सबसे बड़े कलश है जिसका विवरण गिनिस बुक में दर्ज है। और इन कलश में गंगा जल लेकर राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय इंग्लैंड गए थे। यहाँ से आगे दिवानेआम आम है यहाँ राजा अपने जागीदारो, ठाकुर व अन्य आम जन लोगो से मिलते थे। आगे हम एक इमारत या कहें कि महल में गए जिसको प्रीतम निवास महल कहते है। यहाँ पर चित्रकारी बहुत दर्शनीय है। यही पर चंद्रमहल है जो कि राजाओ का निवास स्थान है। यहाँ पर पंच रंग का एक शाही झंडा लहराता है। इधर ही राजाओ की शाही बग्गियों और रथों को रखा गया है। जिनमे मुख्य ठाकुर जी और रानी विक्टोरिया की बग्गी है। कुछ दुकाने भी इधर है जहाँ आप समान ले सकते है। इन सभी जगहों को घूम कर हम अगले पड़ाव हवामहल की तरफ चल पड़े।
राजेंद्र पोल 


संगमरमर का हाथी 

इस इमारत में राजशाही वस्त्रो को रखा गया है। 


एक बड़ा कलश जिसमे माधोसिंह गंगा जल लेकर गए थे। 

मैं सचिन त्यागी 

प्रीतम निवास महल 



प्रीतम निवास महल 



देवांग तोप के पास फोटो खिचवाते हुए 

बग्गिया 

ठाकुर जी की बग्गी 

कठपुतली का खेल दिखाते हुए। 

विक्टोरिया की बग्गी 

सिटी पैलेस का बाहरी दरवाज़ा 

हवामहल
हवामहल जयपुर शहर के मध्य में बना है इसके दोनों तरफ दुकाने बनी है। इसका निर्माण 1799 में महाराजा सवाई प्रतापसिंह जी ने करवाया था। इसके वास्तुकार उस्ताद लालचंद जी थे। सवाई प्रतापसिंह श्री कृष्ण जी के बड़े भक्त थे। इसलिए इन्होंने हवामहल को श्री कृष्ण के मुकुट के सामान पांच मंजिला बनवाया। इस महल में छोटी बड़ी सैकड़ो खिड़कियां बनाई गई । सुंदर गलियारे व छज्जे बनवाये गए। बेहतरीन नक्काशी की गई। इसकी हर एक मंजिल का अलग अलग नाम है जिनको शरद मन्दिर, रत्नमन्दिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवामन्दिर नाम से जाना जाता है। हवामहल सिटी पैलेस के नजदीक ही बना है जब मुख्य रास्ते पर जलसा , झांकी या कोई भी मुख्य कार्य होता था तो रानियां सिटी पैलेस से अंदर ही अंदर हवामहल पहुँच जाया करती थी। और इन्ही खिड़कियों से बाहर का नजारा देखा करती थी।
हमने हवामहल में प्रवेश करने से पहले टिकट लिए और अंदर चल पड़े। एक बड़े से दरवाजे से होते हुए हम ऊपर के तल की तरफ चल पड़े। अब ज्यादातर खिडकियों को बंद कर रखा है। थोड़ा समय हमने ऊपर के तल पर बिताया क्योंकि इधर से पूरा जयपुर दिखता है जो नजारा बेहद शानदार था। अब हम नीचे आ गए और गाड़ी लेकर भानगढ के लिए निकल गए। हमारी यह जयपुर यात्रा बहुत अच्छी रही लेकिन अभी जयपुर की बहुत सी जगहों को देखना बाकी रह गया है जो आगे कभी जयपुर आऊंगा तब देखेंगे।

हवामहल की एंट्री गेट 

हवामहल सड़क से ऐसा दिखता है। यह श्री कृष्ण के मुकुट जैसा बनाया गया है। 

एक गलियारा 




हवामहल की सबसे ऊपरी मंजिल से दिखता आमेर का क़िला 


देवांग एक छोटी सी खिड़की के झाँकता हुआ। 

हवामहल के निचली मंजिल पर एक म्यूजियम भी है उधर रखी एक मूर्ति 

एक मूर्ति जिसमे संगीत और नृत्य दर्शाया गया है। 

जलमहल ,जयपुर 

यात्रा समाप्त

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सचिन भाई, क्या खूब। आपकी यात्रा बहुत सलीके से की गई यात्रा रही जिसमें आपने जो भी देखा, विस्तार से देखा। जब हम सिटी पैलेस पहुंचे तो बस पौन घंटा बाकी था अतः भागते दौड़ते ही देख पाया। हवा महल देखने पहुंचा तो टिकट खिड़की खुलने में दो घंटे बाकी थे। अब आपके विवरण और फोटो से ही ठीक से परिचय मिला है।

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    1. धन्यवाद सुशांत जी। पोस्ट पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी करने के लिए।
      जयपुर की पुरानी इमारते देखना मुझे बहुत अच्छा लगा। वैसे हवामहल बाहर से ही बढ़िया दिखता है।

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  2. अपने इस लेख के माध्यम से बहुत शानदार यात्रा कराया।

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  3. में जयपुर गया था तो अल्बर्ट musuem hall देख ही नही पाया...आपके माध्यम से आज देख लिया.... बढ़िया पोस्ट…..

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    1. Thanks pratik bhai
      वैसे जयपुर का इतिहास बहुत पुराना है यहाँ की हर पुरानी इमारत का अपना इतिहास है। देखते देखते फिर भी बहुत सारी जगह देखनी रह जाती है। मेरी भी कई जगह रह गयी है जो कभी आगे के यात्रा में देखूँगा।

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  4. सुन्दर तस्वीरों और बढ़िया जानकारी से भरी एक बढ़िया पोस्ट .

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  5. बहुत ही खूबसूरत चित्र लिए हैं सचिन त्यागी जी आपने ! सवाई माधौ सिंह का गंगाजल वाला कलश तो बड़ा तो है ही बहुत सूंदर भी है ! हमारी जयपुर यात्रा तो बारिश ने खराब कर दी थी , लगता है फिर जाना पड़ेगा !! प्रीतम पैलेस पहली बार सूना मैंने !!

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    1. धन्यवाद योगी जी।
      प्रीतम पैलेस,सिटी पैलेस के अंदर ही है। यहाँ राज परिवार के लोग रहते थे।

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