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बुधवार, 1 अगस्त 2018

मेरी जयपुर यात्रा (आमेर फोर्ट, पन्ना मीणा कुंड व अम्बिकेश्वर मंदिर)

आमेर फोर्ट 

20 जनवरी 2018
जयगढ़ और नाहरगढ़ किले देखने के बाद हमने वापिसी की राह पकड़ ली। लेकिन कुछ दूरी पर ही राजस्थान ट्रैफिक पुलिस ने कार को रूकने का इशारा किया। मैंने कार को उनके बराबर में रोक कर पूछा कि क्या बात है। उन्होने कार की RC मांगी और कहा कि आपको 600 का चालान भुगतना होगा। मैंने उनसे पूछा कि मुझे किसलिए चालान भुगतना होगा? जबकि मेरे सभी डॉक्यूमेंट पूरे है। आप देख सकते है और सीट बेल्ट भी लगाई हुई है तब पुलिस वाले ने बताया कि आपकी श्रीमती जी ने बेल्ट नही लगाई हुई है। तभी एक राजस्थान नम्बर की गाड़ी निकली उसके ड्राइवर ने सीट बेल्ट नही पहनी हुई थी। फिर भी उस पुलिस वाले ने उसको नही रोका। उसी के पीछे एक बाइक पर बिना हेलमेट पहने एक लड़का भी गुजरा उसकी आगे की नम्बर प्लेट तक नही थी लेकिन उसको भी नही रोका गया। तब मैंने उस पुलिस वाले से पूछा कि आप केवल बाहर के टूरिस्टों को ही पकड़ते है क्या आपने उन्हें क्यो नही रोका? क्योंकि वह लोकल है। वह पुलिस वाला चुप रहा और एकदम से बोला कि आपका चालान कोर्ट का कर रहा हूं । मैने कहा कि मैं यहाँ घूमने आया हूं ना कि कोर्ट कचहरी जाने को। मैंने कहा कि मैं नकद भुगतान करूँगा वैसे मैं जानता था कि यह पुलिस की दादागिरी थी लेकिन मैं क्या कर सकता था। पुलिस ने मुझसे 300 रूपए नगद मांगे और चालान भी नही दिया लेकिन मैंने चालान कटवाया यह कहकर की आप मुझे चालान क्यो नही दे रहे है। आखिरकार मैं भी चालान की रसीद लेकर ही माना। अब मन थोड़ा खराब हो गया था। लेकिन फिर सोचा कि चलो 300 रुपए सरकारी खाते में ही तो गए है।

आमेर का किला (अम्बर फोर्ट)
गाड़ी का चालान भुगतान करने के बाद मैं आगे आमेर फोर्ट की तरफ चल पड़ा। आमेर के किले तक गाड़ी भी चली जाती है। इसलिये पीछे गांव वाले रास्ते से चल दिया। रास्ते मे एक लड़का मिला वह एक गाइड था उससे हमने 200 रुपयों में आमेर का किला घुमाने की बात पक्की की। हमने उससे कहा कि हमे किला ही नही बल्कि कुछ ऐसी जगह भी लेकर जाय जो पुरानी और दर्शनीय हो। उसने कहा कि वापसी में कुछ जगहों पर लेकर चलूंगा पर फिलहाल आप को आमेर का किला घुमाता हूँ। हमने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की और अम्बर फोर्ट देखने चल पड़े।

बाहर एक खिड़की पर जाकर हमारा गाइड टिकेट लेकर आ गया मैंने उसको ही टिकेट लाने के लिए बोल दिया था और पैसे भी दे दिए थे। देवांग का टिकेट नही लगा क्योंकि बच्चो का टिकेट नही लगता है। अंदर एक बड़े द्वार (चांद पोल) से होते हुए हम एक खुली सी जगह पहुँचे इस जगह के चारो तरह ऊँचे महल बने थे। पास ही में एक माता का मंदिर भी था। मंदिर पर दर्शनों के लिए काफी भीड़ लगी हुई थी। इस मंदिर को शिला माता मंदिर के नाम से जानते है। वैसे इस किले को अंबर फोर्ट भी कहते है जो अम्बे माता के नाम पर रखा गया है लेकिन कुछ मानते है कि अम्बिकेश्वर महादेव के नाम से आमेर का नाम व इस किले का नाम पड़ा। कुछ दूरी पर एक पेड़ के पास बलि देने का स्थान है यहाँ पर राज परिवार शिला माता को बलि भेंट किया करते थे। फिलहाल बलि प्रथा बंद हो चुकी है। इस खाली जगह के दो तरह आमने सामने दो गेट बने है जिसे पोल भी कहा जाता है। पोल मतलब एक बड़ा दरवाज़ा। एक का नाम सिंह पोल जिससे सैनिक और योद्धाओं की की एंटरी होती थी और दूसरा चाँद पोल है जिससे महल के अन्य कर्मचारियों व आम लोगो की एंटरी होती थी। चाँद पोल के ऊपर नौबत खाना भी बना है। नौबत खाना में कई प्रकार के वाद्ययंत्र होते थे। जो खास मौकों पर बजाए जाते थे। एक अन्य पोल (द्वार) जो कुछ खास है रंग बिरंगी कलाकृतियों से सजा है इस दरवाज़े का नाम है गणेश पोल यहाँ से अंदर आना जाना राजा और उनके मेहमान ही कर सकते थे।

कुछ सीढ़ियों पर चढ़ते ही दीवाने आम नज़र आ जाता है। दीवाने आम में राजा लोग आम आदमियों की गुहार व उनका झगड़ो व समस्याओं का समाधान करते थे। यह लाल बलुआ पत्थर की बनी है । फिर एक बड़े दरवाजे (गणेश पोल) से होते हुए हम अंदर पहुँचे। यहाँ पर दर्पण महल (mirror) या कहे शीश महल था। गाइड ने बताया कि यहां लगे दर्पण विदेशो से मंगाए गए थे और यह महल हल्की रोशनी से ही चमक उठता था। शीश महल में संगेमरमर पत्थर का भी प्रयोग किया गया है जो काफी ठंडा होता है। इधर ही एक खम्बे पर लगे एक पत्थर पर एक कलाकृति देखी जिसमे कुछ फूल व कुछ छोटे कीट पतंगे दिख रहे थे। 

शीश महल के सामने एक महल है जहाँ पर राजा और रानी रहा करते थे। उसी से सामने एक छोटा सा उपवन (गार्डन) भी बना है। आमेर के किले में और बहुत सी इमारते है जहाँ भी घुमा जा सकता है। पुरानी कलाकृतियों को देखकर तो हम चकित ही रह जाते है यह सोचकर कि उस समय इन जालियों को कैसे काटा गया होगा? इन फूलों और इन आकृतियों को कैसे पत्थर पर तराशा गया होगा? या फिर इतनी सुंदर पेंटिंग्स जो आज भी सुंदर लगती है ऐसे इनमे कौन से रंग डाले गए है? जो आज भी अपने रंग से हमको आकर्षित कर रही है? ये सब सवाल मेरे मन मे तो जरूर ऊठे थे मेरे हिसाब से शायद हर इंसान के मन मे ये सवाल जरूर उठते होंगे जो इनको ध्यान से देखता होगा क्योंकी जब हाथ से ही यह सब कलाकारी की जाती थी। आगे चले तो जोधाबाई की कढ़ाई देखी काफी बड़ी कढ़ाई थी और उसी के बराबर में बिल्कुल वैसी ही एक और कढाई रखी हुई थी। हमारे गाईड ने बताया कि इसको फ़िल्म वाले छोड़कर गए है जब जोधा अकबर की फ़िल्म की शूटिंग यहाँ हुई थी। वेसे जोधाभाई का मायका भी तो है आमेर ही था। और अकबर का ससुराल भी। इस किले में कुछ टच स्क्रीन पैनल भी लगे है जिसकी मदद से महल के हर कोने को देखा जा सकता है वो भी 360° व्यू के साथ। यह सुविधा मुझे बहुत अच्छी लगी। कुछ देर आमेर के किले में समय बिताने के बाद हम वापिस गाड़ी के पास पहुँचे और आगे चल पड़े।

दीवाने आम 

शिला माता का मंदिर 

गणेश पोल 

शीश महल के सामने वाला गार्डन और महल 

शीश महल 

शीश महल 

शीश महल 

शीश महल 

संगमरमर पत्थर पर बनी कलाकृति 






एक पिलर पर बनी एक पुरानी कलाकृति और दूसरे पर बनी नयी है 


छज्जे की बनावट देखो 


एक बड़ी कढ़ाई 

मिटटी का एक बड़ा बर्तन 

बलि देने का स्थान 

पुराना आमेर 


पन्ना मीणा की बावली (step well)
अब हमारा गाइड हमे आमेर के किले के नजदीक ही बनी एक पुरानी पानी की बावली (कुंड) पर ले गया। यह है तो छोटी सी ही लेकिन पानी तक जाने के लिए इसके चारों तरफ बहुत सी सीढ़ियों को बहुत सुंदर ढंग से बनाया है जो दूर से देखने पर बहुत सुंदर लगती है। गाइड ने इसके बारे में ज्यादा नही बताया लेकिन इतना ही बताया कि यह 16 वी शताब्दी में बनाई गई थी। और यह आमेर की जनता के लिए ही थी क्योंकि राजा ऊपर महल में रहा करते थे। लेकिन मेरी समझ से जनता के लिए कुँओं का निर्माण होता था यह बावली जरूर शाही लोगो के लिए ही बनी होगी। हमारे गाइड ने बताया कि अगर आप नीचे पानी तक जाएंगे तो जिन सीढ़ियों से आप उपयोग करेंगे उन्ही सीढ़ियों से आप वापिस नही आ पाएंगे क्योकि यहाँ हर सीढ़ी एक सी है और आप भूल जायँगे की आप किधर से आये थे। मैंने कहा ठीक है मैं जाकर दिखाता हूं लेकिन उधर बोर्ड लगा था कि नीचे जाना मना है। बावली के आसपास कुछ छोटे बारामदे भी बने है जिनको बारादरी कहते है। यह बावड़ी वास्तुकला की दृष्टि से एक सुंदर धरोधर है। जिसको और संरक्षण की जरूरत है।
बिहारी जी टेम्पल 

पन्ना मीणा कुंड 

पन्ना मीणा कुंड step well 





अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर
पन्ना मीणा की बावली से थोड़ा आगे चलकर एक मोड़ पर पहुँचते ही अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर आ जाता है। मंदिर के बारे में पता चला कि यह बहुत प्राचीन मंदिर है इस शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री कृष्णा ने द्वापरयुग में की थी। लेकिन इस मंदिर को 900 साल पहले बनाया गया है एक किदवंती के अनुसार एक गाय रोज़ाना शाम को दूध नही देती थी। गाय पालक ने एक दिन गाय का पीछा किया उसने देखा कि गाय एक गड्ढे के पास पहुँची और उसके थनो से दूध अपने आप निकल कर उस गड्ढे में गिरने लगा। बाद में उस जगह को खोदा गया तो एक शिवलिंग को पाया। आज भी वही शिवलिंग उस गड्ढे के अंदर ही है। और हर सावन में जब भी बारिश पड़ती है तभी शिवलिंग तक पानी भर जाता है। पास में एक गुफा भी है जो काफी प्राचीन है फिलहाल कोई उसमे जाता नही है मैं भी उस तरफ नही गया। हमने भी शिवलिंग का जलाभिषेक किया और मंदिर से बाहर आ गए। हमने आपने गाइड को उसके तय किए हुए पैसे दिए और धन्यवाद भी किया। अब हम वहाँ से चलकर कुछ समय जलमहल पर रुके। काफी पर्यटक यहाँ थे जैसे दिल्ली के इंडिया गेट का शाम का माहौल होता है लोग आते है स्ट्रीट फूड का इंजॉय करते है वैसे ही यहाँ पर लोग पिकनिक मनाने आये हुए थे। थोड़ी देर यहां रुके और हम सीधें अपने होटल चले गए।
अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर 

गेट के उस तरफ अम्बिकेश्वर मंदिर है 

शिवलिंग 

मैं सचिन त्यागी और गाइड (टोपी पहने )

21 टिप्‍पणियां:

  1. सचिन भाई, खूबसूरत वर्णन और बेहतरारीन तस्वीरें। ये अच्छा किया की आपने 300 रपये की रसीद ली और पैसे सरकारी खाते में दिए किसी भ्रष्ट पुलिस कर्मी के खाते में नहीं।

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    1. शुक्रिया हरिश भाई जी।
      बाकी जब चालान काटा गया है तो रसीद लेने का अधिकार है अन्यथा सारे पैसे उसकी जेब मे चले जाते। उसने 600 का चालान बोल कर और कोर्ट की धमकी देकर वह 300 रुपये रिश्वत लेना चाह रहा था लेकिन उसकी जी की हो ना पायी।😃

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  2. हम आधे रास्ते से वापस आ गए थे हमारी कार ख़राब हो गई थी वरना जरूर ये किला देखती

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    1. शुक्रिया दर्शन जी (बुआ जी)। कोई बात नही है जनवरी में साथ चलते है इस बार।

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद विजया पंत जी। ऐसे ही संवाद बनाये रखें।

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  4. पुरानी यादें ताजा कर दी सचिन जी

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  5. सचिन भाई। आपका वर्णन और चित्रण दोनों ही बढ़िया रहे। 2016 फरवरी में मेरा भी जाना हुआ था जयपुर परंतु ये तीनों ही स्थान देखने से वंचित रह गए। आमेर फोर्ट के बारे में पता चला था वह दिन में भी खुलता है और रात को भी। मैंने रात की कुछ बहुत सुंदर फोटो भी देख रखी थीं फोर्ट की। शाम को पहुंचे तो पता चला कि फोर्ट देखने का समय समाप्त होने वाला है और रात को साउंड एंड लाइट शो देखा जा सकता है। सो वही देख आये।

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    1. शुक्रिया शुशांत जी । बाकी मैंने भी यह फोर्ट दो बार दिन में ही देखा है। कभी जब भी जयपुर जाना हुआ तो रात को होने वाला लाइट एंड साउंड शो जरूर देखूँगा। उसका अलग ही मजा होता है।

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  6. ये बात मुझे भी किसी ने बताई थी कि जयपुर पुलिस राजस्थान से बाहर के वाहनों को बहुत परेशान करती है।

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    1. मैं भी उदाहरण बन गया अब जयपुर पुलिस की दादागिरी का शिकार होने का।

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    2. सही सुना है।बाहर। का नंबर देखते ही पुलिस वाले झपटते हैं जयपुर में

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  7. सन 2001 में आमेर का किला देखा था । तबकी धुंधली सी याद है । आपने याद ताजा करा दी । बढिया यात्रा विवरण । सुंदर फ़ोटो

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  8. हमारे लिए जयपुर की यात्रा सुखदाई नहीं रही थी क्यूंकि बारिश हो गई थी बहुत ज्यादा इस वजह से हम बहुत ज्यादा कहीं नहीं जा पाए थे लेकिन आपके फोटो और विस्तृत विवरण देखकर लगता है दोबारा जाना ही चाहिए .

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  9. बढ़िया जानकारी और सुंदर तस्वीरों से भरी पोस्ट । बस चालान कटना अच्छा नही हुआ ।मूड खराब हो जाता है ऐसी घटना से ।

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    1. धन्यवाद नरेश जी। जी सही कहा आपने मूड खराब हो जाता है थोड़े समय के लिए अगर आपको ही निशाना बनाया जाता है।

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  10. बहुत अच्छी पोस्ट सचिन भाई.... आपके साथ जयपुर घूम लिए काफी हद तक.... ये गलत है बाहर के लोगो के साथ स्थानीय पुलिस का व्यवहार ....

    खैर फोटो अच्छे लगे...

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    1. शुक्रिया रितेश जी । इस ज्यादतियों की रिपोर्ट भी नही हो सकती क्योंकि वह कानून नियमों के तहत कार्य कर रहे है।

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