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सोमवार, 3 अगस्त 2015

हिमाचल यात्रा-06(कांगडा देवी,ब्रजेश्वरी माता)

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19 जून शाम 7 बजे हम गगल से गाड़ी ठीक करा कर सीधे कांगडा देवी माता ब्रजेश्वरी देवी पहुचे। मन्दिर से पहले ही बाजार चालू हो जाता है। शुरूआती बाजार में तो हर तरह की दुकानें  है। पर मन्दिर के पास ज्यादातर दुकानें प्रसाद व पूजा की वस्तुएँ की है।हमने  मन्दिर के निकट ही एक दुकान से प्रसाद ले लिया ओर मन्दिर के मुख्य दरवाजे की तरफ चल पडे।
अब हल्का हल्का अंधेरा हो चला था। मन्दिर व बाहर बाजार रौशनी से उजागर हो चुके थे। जब हम मन्दिर के नजदीक पहुँचे तब हमारे कानो में मन्दिर से आती घन्टीयों व आरती की मन्द व सुरीली ध्वनि पडी। जिसे सुनकर हर किसी का मन प्रसन्न हो ऊठे। हम सभी मन्दिर की बांयी तरफ लगी लाईन मे लग गए । काफी लम्बी लाईन थी कम से कम पांच छ: सौ भक्त तो होगे ही। मै ओर आयुष कुछ देर लाईन में लगने के बाद, आस पास के मन्दिर देखने के लिए, मन्दिर परिसर मे घुम ही रहे थे की देखा की मन्दिर के दाहिने तरफ भी दर्शनो के लिए लाईन लगी हुई है। जिसमे भीड बिल्कुल नही थी अगर गिनती करते तो मुश्किल से सौ ही लोग होते। मै जाकर उस लाईन में लग गया ओर आयुष को बोल दिया की तुम जाकर उन्हें भी बुला ला। थोडी ही देर बाद सब के सब वहां उस लाईन मे लग गए साथ मे ओर बहुत से लोग भी उसी लाईन मे लग गए। यह लाईन भी दुसरी लाईन जितनी लम्बी हो गई। पर हम आगे ही थे इसलिए हमे कोई तकलीफ नही हो रही थी।
"मै एक बार तकरीबन 15 वर्ष पहले भी यहां पर आ चुका हु। तब तो मुझे लाईन में लगने की जरूरत ही नही पडी। क्योकीं मै एक दवाई की कम्पनी के द्वारा यहां पर जागरण में आया था। जितनी बार दर्शन कर सकते थे वो भी बिना किसी रोक टोक के।"
कुछ ही समय बाद माता को भोग लग गया ओर मन्दिर में माता के दर्शन चालू हो गए । हम सब अपनी बारी के लिए लाईन मे धिमे धिमे चलते रहे। माता का मन्दिर काफी भव्य व विशाल बना है। यहां पर मन्दिर के समक्ष ही तीन चार पीतल के शेर माता के मुख्य कक्ष (गर्भ ग्रह)के सामने खडे है जिन पर लाईट पड रही थी ओर वह बहुत ही शानदार दिख रहे थे। य़हा पर हमने एक ऐसा पत्थर भी देखा जिस पर सिक्के चिपक रहे थे । जैसे वो पत्थर कोई चुम्बक हो ऐसा मेने हरिद्वार मे मंसा देवी मन्दिर पर भी देखा था।
आगे चल कर दोनो लाईन एक हो जाती है। हम ने माता के भवन मे प्रवेश किया यहां पर माता पिंडी रूप में विराजमान है,जिनका श्रंगार सिंदूर, मक्खन व फूलो से होता है, माता का यह रूप बड़ा ही दर्शनीय है। माता के दर्शन करने पर हमारा मन,मस्तिष्क पवित्र व शांत हो जाता है। बस माता को देखते रहना ही चाहता है। जब तक कोई पंडित वहां से ना हटाए । माता के दर्शन करते समय आयुष ने मन्दिर में फोटो खिंच लिए,तब वहा तैनात गार्ड ने आयुष को फोन जेब में रखने की हिदायत दी।
हम सभी बारी बारी से माता के दर्शन कर आए। तभी एक व्यक्ति ने फूलो से भरा टोकरा पियुष को देते हुए कहा की आप इन फूलो को भवन में दे आए। वह एक बार ओर मन्दिर में चला गया ओर वहां पर फूल दे कर आ गया।
हम सब दर्शन करने के बाद मन्दिर में बने अन्य मन्दिर देखने लगे। यहां पर अन्य सभी भगवानो के मन्दिर बने है। यहां पर कुछ माता की झांकी भी बनी है जैसे ध्यानू भक्त द्वारा अपना शिश काटकर माता को भेटं करना। इसके पीछे भी एक कहानी है,की..
"माता का एक बड़ा भक्त हुआ नाम था ध्यानू भक्त। जिसने माता के सामने दो बार अपना शिश काटकर भेंट किया पर माता ने उसका शिश हर बार धड से जोड दिया साथ में उसकी हर मनोकामना भी पूर्ण की। एक बार उसके गांव व आसपास के क्षेत्र (आगरा)मे बहुत दिन से बारिश नही हुई । सब जगह सुखा पड गया तब ध्यानू भक्त ने यही मन्दिर पर माता को तीसरी बार अपना शिश भेंट किया। माता ने उसकी यह भेंट स्वीकार की ओर उसके गांव में बारिश भी हो गई तब से उत्तर प्रदेश के लोग पीले वस्त्र पहन कर माता के यहां पर जात देने आते है। ओर नगरकोट माता को अपनी कुल देवी मान कर पूजा करते है"
हम लोग मन्दिर में दर्शन करने के बाद वापिस गाड़ी की तरफ चल पडे। समय लगभग 9:10 हो रहा था। हम बाजार से होते हुए जा रहे थे। रास्ते मे कुछ दुकानों से खरीदारी भी की। तभी हमे पता चला की की माता का भवन रात को 9:30 पर बंद हो जाता है क्योंकि यह समय माता का निंद्रा का होता है फिर सुबह ही भवन के कपाट खुलते है। मेने दुकान वाले से पूछा की उन लोगो का क्या होगा जो अब भी लाईन में लगे है तब उसने बताया की वह लोग वही मन्दिर या आसपास की धर्मशाला या होटल में ठहर जाएगे ओर सुबह ही दर्शन कर पाएगे। यह सुनकर मेने मन ही मन मे सोचा की अगर पहली लाईन मे ही लगे रहते तो कल सुबह ही माता के दर्शन हो पाते पर माता ने हमे जल्द ही दर्शनों के लिए बुला लिया।
यहां से हम सीधे गाड़ी पर पहुँचे । मेने सुझाव दिया की आज हम यही कही होटल लेकर ठहर जाते है ओर कल सुबह दिल्ली के लिए प्रस्थान कर देगे। क्योकीं कल हमे दिल्ली जरूर पहुँचना था वो इसलिए की अमरीष जी की 21जून सुबह 7बजे की फ्लाईट थी वह कही अपने काम से जा रहेथे। यह सुझाव  अमरीष जी को भी ठीक लगा पर नेहा ने एक सुझाव दिया की क्यो नही हम यहां से 14 दूरी पर स्थित धर्मशाला रूक जाए। फिर कल सुबह हम मैकलोर्डगंज घुम लेगें ओर दोपहर में दिल्ली के लिए चल पडेगे। लगभग सबको यह सुझाव ठीक लगा। इसलिए हम लगभग रात के दस बजे धर्मशाला के लिए चल पडे। कांगडा से धर्मशाला की दूरी मात्र 14km ही है। रास्ते मे एक रेस्टोरेंट पर खाने के लिए रूके पर वहा पर जबरदस्त भीड को देखकर हम वहा से तुरंत ही चल पडे।
कुछ ही मिनटों में हम धर्मशाला के मेन मार्किट में पहुचं गए। यहां पर कई सारे छोटे बडे होटल थे। हम तकरीबन रात के 10:40 पर धर्मशाला पहुंचे थे। शायद इसलिए सभी  दुकाने बंद हो चुकी थी। मार्किट मे पूरी तरह सन्नाटा फैला हुआ था। यहां पर हमने बहुत से होटल देखे पर सब के सब भरे हुए थे। लगभग सब होटल वालो ने यही हिदायत दी की आप कांगडा ही वापिस लोट जाओ नही तो चामुंडा देवी चले जाओ,वहा पर ही रूकने की जगह मिल सकती है। यहां पर ओर मैकलोर्डगंज में तो शायद ही जगह मिले आपको।
यह सुनकर हम थोडे निराश हो गए। फिर भी हमने ऊपर जाते रास्ते पर चल पडे। हम गलती से रिहायशी कालोनी में पहुचं गए। यहां पर घर ही घर थे पर कुछ गेस्ट हाऊस भी थे लेकिन सब के सब भरे हुए थे कोई सा भी खाली नही था।जब हम निराश होकर गाड़ी में बैठे ही थे की मेने वहां पर एक लोकल व्यक्ति से रात बिताने के लिए रूम के बारे में पुंछा तो उसने एक इशारे से बताया की वहां उस घर पर चले जाओ शायद वहां पर आपको एक रूम मिल जाए। उसने बताया की जब सीजन मे यहां पर भीड बहुत हो जाती है,तब यहां के लोकल लोग अपने घरो को होम स्टे के रूप मे पर्यटको को रूकने के लिए दे देते है। उसके अनुसार बताए घर मे पहुचें ओर हमे एक बड़ा कमरा रात बिताने के लिए मिल गय़ा। हम कमरे पर समान रख कर मेन रोड पर एक रेस्टोरेंट पर पहुंचे। यहां पर बहुत तगडा जाम लगा था । यह जाम था पर्यटको का जो ऊपर मैकलोर्डगंज जा रहे थे। खैर हम जाम से होते हुए रेस्टोरेंट पहुचं ही गए।रात के 12 बजे से ऊपर का समय हो रहा था भूख से ज्यादा थकान व निंद्रा हावी हो रही थी। यहां से खाना खाकर हम सीधे कमरे पर पहुंचे। अमरीष जी तो लेटते ही सो गए। हमारे कमरे के साईड वाले कमरे मे दिल्ली का ही एक परिवार रूका था। उनसे पता चला की वह 18 जून को धर्मशाला पहुचे थे पर उन्हे कल रात कोई रूम नही मिला ओर उन्होने पूरी रात गाड़ी मे ही बिताई फिर आज सुबह से ही यहां पर इतना जाम था की हमे धर्मशाला से मैकलोर्डगंज पहुंचने में चार घंटे लग गए। जब की मैकलोर्डगंज यहां से केवल10km ही दूर है। उन्होंने बताया की कल अर्थात् 20जून को दलाईलामा का जन्मदिन है ओर साथ मे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी है इसलिए यहां व ऊपर मैक्लोर्डगंज में काफी भीड है।
यह सुनकर मै मन ही मन मे सोचने लगा की शायद ही हम मैक्लोर्डगंज जा पाएगे। क्योकीं मेने रूम से बाहर बॉलकनी में आकर देखा की मेन रोड पर अब भी गाड़ियों की लाईट चमक रही थी। यह सोचकर की कल की कल देखेगे अपने बिस्तर पर आकर सो गया................
ब्रजेश्वरी देवी,नगरकोट माता या कांगडा देवी:- कांगडा देवी मां ब्रजेश्वरी देवी को नगरकोट माता के नाम से भी जाना जाता है। यह मन्दिर कांगडा जिले मे स्थित है। यह मन्दिर माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है। शक्ति पीठ माता के उन मन्दिरो को कहा जाता है जहां पर माता सती के शरीर के अंग व आभूषण गिरे थे। ओर वहा पर पींडी रूप मे माता को पूजा जाता है। नगरकोट माता ब्रजेश्वरी देवी मन्दिर मे माता सती के शरीर के अंग के रूप मे माता के स्तन गिरे थे। इसलिए यहां पर माता को पीन्डी रूप में पूजा जाता है। यह मन्दिर कांगडा जिले मे सबसे प्राचीन व भव्य मन्दिरो में आता हैं । जब की इस मन्दिर पर कई मुस्लिम शासको ने आक्रमण कर इस मन्दिर को लूटा व ध्वस्त किया । एक बार (1905)यह मन्दिर बहुत तेज आए भूकंप मे पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। तब  इसका दोबारा निर्माण कराया था। मौजूदा मन्दिर लगभग 100 साल पूराना है।
अब कुछ फोटो देखे जाए इस यात्रा के...
प्रवेश द्वार
मां ब्रजेश्वरी मन्दिर (कांगडा)
मन्दिर का पिछला भाग दृश्य
मन्दिर मे स्थित वटवृक्ष 
माता का भवन सामने से ऐसा दिखता है।
एक फोटो मेरा भी माता के  भवन पर
माता की सवारी
पत्थर पर सिक्के चिपके हुए
माता का मुख्य कक्ष जहां पर पिंडी रूप मे पूजा होती है।
पीयुष माता के भवन मे फूलो की टोकरी ले जाता हुआ।
मन्दिर परिसर 
ध्यानू भगत अपना शिश काटकर माता को भेंट करते हुए।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया फोंट्स,खासकर मंदिर के बाहर बिकने वाले सामान की,आँखे चौंधिया गयी

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  2. badhiya yatra vritant... kuchh technical khamiya hain... spelling bhi kai jagah galat hain..

    photos bahut achhi hain

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    1. धन्यवाद सर आपकी महत्वपूर्ण सलाह के लिए।

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  3. Nice write up Sachin ji :)

    Agree with SS ji but on the whole it's good :)

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  4. Nice write up Sachin ji :)

    Agree with SS ji but on the whole it's good :)

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  5. आपकी फोटोग्राफी ओर लेखन को पढ़कर मज़ा आ गया। ऐसा लगा की हम इस जगह के साक्षात् दर्शन कर रहे है। साभार।

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