22 , मार्च, 2017
सुबह 5:30 पर मोबाइल में अलार्म बज ऊठा। जल्द ही बिस्तर छोड दिया। सुबह की चाय की बडी जबरदस्त तलब ऊठी पर होटल में 7 बजे के बाद ही चाय मिलेगी । इसलिए मै होटल से बाहर आ गया और मुझे साथ में बच्चो के लिए गर्म दूध लेना था। लकिन मॉल रोड पर अभी सन्नाटा पसरा हुआ था। इक्का दुक्का सुबह की सैर पर जाने वाले ही इधर उधर घुम रहे थे। हवा तेज थी बाकी ठण्ड नहींलग रही थी। मैं तल्लीताल बस स्टैंड की तरफ चल पडा। एक जगह दुकान दिखी पर उसपर दूध नही था इसलिए चाय नही बन सकती थी। उसके बाद मेने चाय पीने का विचार ही छोड दिया। हां एक बात रात को मुझे वॉटसेप चैट पर पता चला की हमारे एक घुमक्कड दोस्त( प्रतीक गाँधी ) जो की मुम्बई से है और आजकल उत्तराखंड भ्रमण पर है वो भी नैनीताल रूके है। कल रात मैने उन्हे फोन लगाया था लेकिन बात नही हो पाई। सुबह उनका ध्यान आया तो उनको फोन मिलाया लेकिन फोन बंद था। मैने फिर उनको वटसप पर मैसेज डाल दिया। मेरी सुबह की सैर हो चुकी थी और चाय ,दूध कुछ नहीं मिला इसलिए वापिस होटल आ गया।
होटल पहुंच कर देखा तो लगभग सभी तैयार थे मैं भी जल्द ही नहा -धोकर तैयार हो गया। हमने नाश्ता होटल में ही कर लिया। नाश्ता करने के बाद हम होटल से चैकआऊट कर ही रहे थे की मैने एक वेटर से पूछा की क्या मेरी कार zoo तक चली जाएगी। तब उसने बताया की नही आपकी कार ऊपर नही जा सकती है नीचे से zoo तक टैक्सी चलती है 40 रूपये लेती है लौटफेर के। मैने अपने सारे बैग होटल मे ही छोडना चाहे, लेकिन उस वेटर ने कहा की आप पार्किग में से गाडी ले आओ, वही टैक्सी स्टेंड पर लगा देना और टैक्सी से zoo तक चले जाना। मैं अपनी कार पार्किंग से लेकर आ गया । सारा समान रख कर टैक्सी स्टैंड पहुंचे आने जाने की टिकेट कटाई और कार उधर ही पार्क कर दी। लेकिन टैक्सी स्टैंड पर बैठे व्यक्ति ने मुझे बताया की इसको पार्किंग में ही खडी करो। नही तो आपका चालान कट जाएगा। क्या ना करता वापिस पार्किग पर गाडी खडी कर आया ऊपर से 100 रूपए और देने पडे। पार्किंग से रिक्शा पकड में टैक्सी स्टैंड पहुँचा ।
सही 10 बजे टैक्सी आ गई और कुछ ही मिनटो में हम ऊपर ज़ू के लिए चल पडे। zoo पहुंचने पर सबसे पहले टिकेट खरीदे अभी ज़ू खुला नहीं था इसलिए कैंटीन में गरमा गर्म मैगी खा ली। कुछ ही देर बाद ज़ू का गेट खुल गया और हम अंदर चले गए। तभी मेरा फोन बज ऊठा। देखा तो प्रतिक गांधी का फोन था। मैने सुबह उनको फोन मिलाया था लेकिन वो रिसीव नही कर सके थे। मैने उन्हे बताया की मै नैनीताल zoo पर हूं उनका होटल भी पास में ही था वह पांच मिनट में ही मुझसे मिलने आ गए। उनसे यह मुलाकात बहुत छोटी रही बस कहां कहां घुमे यही बात होती रही मैने प्रतिक को zoo देखने का निमंत्रण भी दिया। लेकिन उन्हे आज दो तीन जगह देखकर दिल्ली पहुंचना था। क्योकी परसो उनकी मुम्बई की ट्रेन थी। इसलिए मैने ज्यादा जोर नही दिया नही तो मुझे उनके साथ बातचीत करने का और अवसर मिल जाता। भविष्य में मिलेगे यह कहकर प्रतिक वहां से चले गए। मुझे उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा जबकी मै उनसे दूसरी बार ही मिल रहा था लेकिन चैटिंग रोजाना होती रहती है। प्रतीक के जाने के बाद मै भी ज़ू में वापिस पहुँचा।
nainital zoo |
नैनीताल Zoo :--नैनीताल का चिड़ियाघर(ZOO ) बस अड्डे से करीब 1 किमी दूर है। इसका नाम उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है। चिड़ियाघर में बंदर से लेकर हिमालय का काला भालू, तेंदुए, बाघ, तिब्बती भेड़िया, चमकीले तितर, गुलाबी गर्दन वाले पक्षी व बहुत से अन्य पक्षी भी है। पहाड़ी लोमड़ी, घोरल, हिरण और सांभर जैसे जानवर भी है। Zoo हर सोमवार व राष्ट्रीय अवकाश और होली-दिवाली के मौके पर बंद रहता है। इस चिडियाघर में बहुत से जानवर रेस्क्यू करके भी लाए जाते रहे है। यदि कोई जानवर जख्मी हो जाता है उसे भी उपचार के लिए यही लाया जाता है। यह चिड़ियाघर प्रात 10 बजे से सांय 4 :30 तक खुलता है। इसकी टिकट दर प्रति व्यक्ति 50 व बच्चो के लिए 20 रुपए है।
ज़ू में घुसते ही लाल रंग का पक्षी मिला वैसे यह मुर्गा जैसा दिख रहा था। इसी के पास ही जानवरो का हॉस्पिटल भी था। यहाँ में अकेला ही घूम रहा था क्योकि बाकि सभी तो पहले ही यहाँ आ चुके थे। अब मैं टाइगर (बाघ ) को देखने गया टाइगर अपने बाड़े (पिंजरे ) में आराम फरमा रहा था। वैसे यहाँ पर दो बाघ थे। यहाँ से आगे चला तो तिब्बती वॉल्फ (भेड़िया) दिख गया बेचारा परेशान सा नज़र आया वह इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर लगाए जा रहा था। थोड़ी दूर पर ही लेपर्ड ( तेंदुआ ) का पिंजरा देखा एक तेंदुआ तो आराम से सो रहा था तो एक पानी पी रहा था। ये जानवर पिंजरे में ना हो तोह इतनी पास जाने की हिम्मत नहीं होगी चलो आगे चलते है आगे काला भालू मिल गया फोटो खिचवाने की मुद्रा में बैठा था। जंगल में बाघ ,तेंदुए से भी ख़तरनाक जानवर होता है यह भालू। भालू के पास ही हिरण के बाड़े (पिंजरे ) भी है वही पर अपनी टीम मिल गयी सभी बच्चे बड़े खुश नज़र आ रहे थे। यहाँ से थोड़ा ऊपर की तरफ भी लेपर्ड का पिंजरा था यह पिंजरा ज़ू का सबसे ऊँची जगह है। चार पांच लेपर्ड आराम कर रहे थे। तभी एक लेपर्ड हमारे नजदीक आ गया वह बीमार सा लग रहा था उसकी दोनों आंखे सफ़ेद हो रखी थी। तभी वहां मौजूद ज़ू कर्मचारी ने बताया की यह एक आंख से अँधा और दूसरी से इसको कम दिखता है। थोड़ा नीचे आकर हिरन व भराल व भौकने वाला हिरन भी है। पास में गंगनाथ जी मंदिर के नाम से एक शिव मंदिर भी था। मंदिर में नहीं गया बस बाहर से ही हाथ जोड़ लिए। अब लगभग हमने सारा ज़ू देख ही लिया था इसलिए हम सभी ज़ू से बाहर आ गए और टैक्सी में बैठ कर नीचे मॉल रोड पर आ गए। मॉल रोड से दूसरी टैक्सी ले कर हम पार्किंग के पास पहुंचे और गुरूद्वारे के पास एक होटल पर लंच कर लिया और निकल पड़े अगली मंजिल की ओर .........
अब नैनीताल ज़ू के फोटो देखें। ..
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हम लोग नैनीताल से निकल कर लगभग 11 किलोमीटर दूर भवाली पहुंचे। यह एक क़स्बा है लकिन हर जरुरत का सामान यहाँ मिल जाता है। यहाँ पर मार्किट भी काफी बड़ी है। जल्द ही हमने भवाली से रानीखेत वाला रास्ता पकड़ लिया या कहे की अल्मोड़ा मार्ग पर चल दिए। भवाली से निकले ही थे की कार के पिछले टायर में बहुत तेज़ आवाज आने लगी। कार रोकी नहीं बल्कि आगे की और चलाते रहे एक दुकान दिखी लकिन वो बंद थी वही एक व्यक्ति ने हमे बताया की आगे मोड़ पर भी एक दुकान है। मोड़ पर पहुंचे तो दुकान दिख गयी। लकिन दुकान का मालिक कही गया हुआ था हमने उसकी पंचर लगाने वाली किट उठा ली और खुद ही पंचर लगा डाला लकिन हवा अब भी निकल रही थी क्योकि टायर में पत्थर ने बड़ा कट लगा दिया था एक और पंचर लगा दिया अब हवा बहुत कम निकल रही थी फिर ललित के पास हवा भरने का पोर्टेबल कोम्प्रेस्सेर भी था इसलिए दुकान के पास बैठे एक बच्चे को पैसा दे दिए और बोल दिया की जब दुकान का मालिक आ जाये तो उसे दे देना। फिर हम वहां से चल पड़े भवाली से तरक़ीबन 7 किलोमीटर दूर कैंचीधाम मंदिर है जिसको बाबा नीव करोरी जी ने बनवाया था। मैं 10 साल पहले भी इस मंदिर में आया था जब इसे लोग इतना ज्यादा नहीं जानते थे आज तो शायद ही कोई इस मंदिर को नहीं जनता होगा। मंदिर में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफ़ी करना मना है। हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी को प्रणाम किया फिर एक मंदिर जिसमे बाबा नीव करोरी जी की मूर्ति लगी थी वहां पर बैठ गए यहाँ पर बहुत शांति थी मंदिर में कोई घंटी भी नहीं बजा रहा था। अगर कोई शोर कानो में पड़ रहा था तो वो शोर पक्षियों का था जो पेड़ो पर बैठे हुए थे कुछ बंदर भी इधर से उधर घूम रहे थे। मंदिर में हमारे अलावा कुछ अंग्रेज भी थे जो ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे। एक बेड पर बाबा का कंबल रखा हुआ था उसको छू कर माथे से लगाया और मंदिर से प्रसाद (उबले हुए चना) लेकर बाहर आ गया।
मंदिर के बाहर एक दुकान थी बिलकुल रोड पर वहां से पानी की बोतल ली गयी और चल पड़े अगली मंजिल की ओर .........
कैंची धाम मंदिर ,भवाली
परम पूज्य बाबा नीब करोरी महाराज जी ने इस मंदिर की नीव सन् 1964 में 15 जून को रखी । वैसे वह यहां पर सन् 1962 में ही आ गए थे। उन्होने सर्वप्रथम यहां पर हनुमान जी की मूर्ति को स्थापित किया था। बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश फ़िरोज़ाबाद ज़िले के अकबरपुर गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था फिर बाबा ने घर बार छोड़ दिया फिर बाबा 1962 में यहाँ आ गए। कहते है की एक बार यहां पर भंडारा लगाया गया और इसी दौरान घी खत्म हो गया तब बाबा जी ने पास वाली नदी से पानी मंगवाया और वह पानी चमत्कारी रूप से घी में परिवर्तित हो गया। आज बाबा तो नही रहे ( स्वर्गवासी 10 सितम्बर 1973 ) लेकिन उनका आशिर्वाद व हनुमान जी की कृप्या यहां पर सभी को मिलती है। एप्पल कंपनी के संस्थापक (स्टीव जॉब्स ) व फेसबुक के संस्थापक (मार्क जुकरबर्ग ) व अन्य बहुत बडी बडी हस्तियां यहां आकर बाबा जी का आशिर्वाद लेते है और यहाँ के जीवन की नई सोच ले जाते है और जीवन में अपार सफलता प्राप्त करते है। आज भी लोगो का यह मानना है की यहां पर सभी तकलीफ़े दूर हो जाती है।
कैंची धाम के फोटो देखें। ......
पिछली पोस्ट ......
नई पोस्ट। ......
अब नैनीताल ज़ू के फोटो देखें। ..
सुबहे नैनीताल |
एक चर्च माल रोड पर |
टिकट घर |
ज़ू का प्रवेश द्वार |
ज़ू से नैनी झील ऐसी दिखती है। |
मैं सचिन और प्रतीक गाँधी (मुंबई आया मेरा दोस्त ,दोस्त को सलाम करो ) |
मुर्गा जैसा दिखने वाला पक्षी |
बाघ |
भेड़िया |
गुलदार लेपर्ड |
बारहसींगा |
हिमालय काला भालू |
अँधा तेंदुआ |
भराल |
चीतल |
गंगनाथ मंदिर |
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हम लोग नैनीताल से निकल कर लगभग 11 किलोमीटर दूर भवाली पहुंचे। यह एक क़स्बा है लकिन हर जरुरत का सामान यहाँ मिल जाता है। यहाँ पर मार्किट भी काफी बड़ी है। जल्द ही हमने भवाली से रानीखेत वाला रास्ता पकड़ लिया या कहे की अल्मोड़ा मार्ग पर चल दिए। भवाली से निकले ही थे की कार के पिछले टायर में बहुत तेज़ आवाज आने लगी। कार रोकी नहीं बल्कि आगे की और चलाते रहे एक दुकान दिखी लकिन वो बंद थी वही एक व्यक्ति ने हमे बताया की आगे मोड़ पर भी एक दुकान है। मोड़ पर पहुंचे तो दुकान दिख गयी। लकिन दुकान का मालिक कही गया हुआ था हमने उसकी पंचर लगाने वाली किट उठा ली और खुद ही पंचर लगा डाला लकिन हवा अब भी निकल रही थी क्योकि टायर में पत्थर ने बड़ा कट लगा दिया था एक और पंचर लगा दिया अब हवा बहुत कम निकल रही थी फिर ललित के पास हवा भरने का पोर्टेबल कोम्प्रेस्सेर भी था इसलिए दुकान के पास बैठे एक बच्चे को पैसा दे दिए और बोल दिया की जब दुकान का मालिक आ जाये तो उसे दे देना। फिर हम वहां से चल पड़े भवाली से तरक़ीबन 7 किलोमीटर दूर कैंचीधाम मंदिर है जिसको बाबा नीव करोरी जी ने बनवाया था। मैं 10 साल पहले भी इस मंदिर में आया था जब इसे लोग इतना ज्यादा नहीं जानते थे आज तो शायद ही कोई इस मंदिर को नहीं जनता होगा। मंदिर में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफ़ी करना मना है। हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी को प्रणाम किया फिर एक मंदिर जिसमे बाबा नीव करोरी जी की मूर्ति लगी थी वहां पर बैठ गए यहाँ पर बहुत शांति थी मंदिर में कोई घंटी भी नहीं बजा रहा था। अगर कोई शोर कानो में पड़ रहा था तो वो शोर पक्षियों का था जो पेड़ो पर बैठे हुए थे कुछ बंदर भी इधर से उधर घूम रहे थे। मंदिर में हमारे अलावा कुछ अंग्रेज भी थे जो ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे। एक बेड पर बाबा का कंबल रखा हुआ था उसको छू कर माथे से लगाया और मंदिर से प्रसाद (उबले हुए चना) लेकर बाहर आ गया।
मंदिर के बाहर एक दुकान थी बिलकुल रोड पर वहां से पानी की बोतल ली गयी और चल पड़े अगली मंजिल की ओर .........
कैंची धाम मंदिर ,भवाली
परम पूज्य बाबा नीब करोरी महाराज जी ने इस मंदिर की नीव सन् 1964 में 15 जून को रखी । वैसे वह यहां पर सन् 1962 में ही आ गए थे। उन्होने सर्वप्रथम यहां पर हनुमान जी की मूर्ति को स्थापित किया था। बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश फ़िरोज़ाबाद ज़िले के अकबरपुर गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था फिर बाबा ने घर बार छोड़ दिया फिर बाबा 1962 में यहाँ आ गए। कहते है की एक बार यहां पर भंडारा लगाया गया और इसी दौरान घी खत्म हो गया तब बाबा जी ने पास वाली नदी से पानी मंगवाया और वह पानी चमत्कारी रूप से घी में परिवर्तित हो गया। आज बाबा तो नही रहे ( स्वर्गवासी 10 सितम्बर 1973 ) लेकिन उनका आशिर्वाद व हनुमान जी की कृप्या यहां पर सभी को मिलती है। एप्पल कंपनी के संस्थापक (स्टीव जॉब्स ) व फेसबुक के संस्थापक (मार्क जुकरबर्ग ) व अन्य बहुत बडी बडी हस्तियां यहां आकर बाबा जी का आशिर्वाद लेते है और यहाँ के जीवन की नई सोच ले जाते है और जीवन में अपार सफलता प्राप्त करते है। आज भी लोगो का यह मानना है की यहां पर सभी तकलीफ़े दूर हो जाती है।
कैंची धाम के फोटो देखें। ......
कैंची धाम मंदिर |
कैंची धाम |
देवांग और तनु |
मैं सचिन त्यागी कैंची धाम मंदिर पर |
बाबा नीव करोरी जी महाराज |
कैंची धाम दूर से दिखता हुआ |
नई पोस्ट। ......
बढ़िया त्यागी जी अच्छी पोस्ट है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनोद भाई।
हटाएंमैं अकेला ही सन 2001 में नैनीताल गया हूँ लेकिन आप और दुसरे लोगों की पोस्ट पढ़कर और फोटो देखकर मन हो रहा है एक बार परिवार के साथ जाना ही चाहिए ! अच्छा विवरण लिखा आपने सचिन जी , चिड़ियाघर के विषय में मुझे जानकारी नहीं थी !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी भाई।
हटाएंबहुत अच्छी तरह से सब चीजो का वर्णन है । यह लेख वहाँ जाने वाले लोगो को दिकदर्शक का काम करेगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कपिल चौधरी जी।
हटाएंबहुत अच्छा विवरण दिया है सचिन जी, 2011 में हम लोग चिडियाघर देखने से रह गए थे क्योंकि उस दिन छुट्टी थी।लेकिन अापने अब चिड़ियाघर की अच्छे से सैर करा डाली
जवाब देंहटाएंHa ha ha..! Thanks Harjinder ji
हटाएंशानदार post
जवाब देंहटाएंभाई जी👍👌
धन्यवाद अजय जी
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट...उस दिन रात को मुझे आपके यहाँ आने का पता 11 बजे जब में खाना खा रहा था तब पता चला क्योकि जब आपने मुझे कॉल किया तब में फ़िल्म देख रहा था और में फ़िल्म में हमेशा फोन बंद कर देता ह...बैटरी डाउन थी इसलिए सुबह चार्ज के बाद पता चला जैसे पता चला वैसे आ गया आपसे मिलने...अच्छा लगा आपसे मिल कर...रात को आपके साथ मॉल रोड घूमने ला अवसर खो दिया फिर कभी आपके साथ घुनक्कड़ी करेंगे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतीक। मुझे भी आपसे मिलकर अच्छा लगा,, बिल्कुल भविष्य में फिर मिलेंगे।
हटाएंबढ़िया पोस्ट .अच्छा विवरण लिखा है आपने सचिन जी.....नरेश सहगल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नरेश जी।
हटाएंसचिन भाइ,बहुत ही सुंदर पोस्ट, आपने मेरी पिछले साल नैनिताल यात्रा की यादें ताज़ा कर दीं |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नितिन जी। ऐसा होता है जब किसी जगह के बारे में पढते है और फोटो देखते है तब हम अपनी पुरानी यादों में चले जाते है। शुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट त्यागी जी.... प्रतीक भाई से मुलाकात भी हो गयी ये तो और भी अच्छा रहा.. |
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ते पढ़ते मैं भी अपनी यादों में खो गया | जब हम गये तब यहाँ की टिकिट मात्र 5 रुपया थी...
धन्यवाद रितेश जी, प्रतिक जी से मुलाकात थोड़े समय के लिए ही हो पाई लकिन बढ़िया रही .
हटाएंआपकी यात्रा भी मैंने पढ़ी थी आप अच्छा लिखते है .
हमने ज़ू भी नही देखा था ,पर ज़ू तक अपनी गाड़ी न ले जाने की क्या तुक है समझ नही आया । नीम करोरी मन्दिर हमने भी देखा था जब अल्मोड़ा जा रहे थे , चलिए आगे आगे क्या होता है जय बाबा करोरी की ....
जवाब देंहटाएंदर्शन कौर (बुआ जी) जू तक गाडी तो जा सकती है लेकिन पार्किंग की जगह ना होने के कारण, टैक्सी चलती है वो भी दो या तीन ।
हटाएंहां मैने आपका फोटो देखा है कैंची धाम वाला।
जय बाबा की...
फोटो बेहद ब्यूटीफुल हैं....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रोहित जी
हटाएंसचिन जी, मैं भी अपनी यात्राओं पर ब्लॉग लिखता हूँ। मेरा ब्लॉग http://mainmusafir.com/ (मैं मुसाफिर डॉट कॉम) है। समय मिले तो पढ़ना। और हो सके तो अपने व्हाट एप के ग्रुप में मुझे भी शामिल कर लिजियें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गौरव जी। जरूर आपका ब्लॉग पर जरूर आऊंगा व आपकी यात्रा अवश्य पढूंगा। भाई मेरा कोई वाटसप ग्रुप नही है।
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