आपने अभी तक पढा की मै और बाकी कुछ दोस्त कल बरसुडी पहुँचे। एजूकेशन कैम्प व मेडिकल कैम्प लगाने के लिए....
अब आगे...
13/अगस्त/2017
सुबह जल्दी ऊठ गया। बाहर कुछ पक्षियों ने सुरीला राग जो छेडा हुआ था। हरीश जी ने बैड टी (चाय) बना कर पिला दी। बाकी दोनो दोस्त अभी बिस्तर पर ही विराजमान थे। चाय पीने के बाद मैं थोडा घुमने चल पडा। पक्षी अभी भी सुबह सुबह मधुर गीत सुना रहे थे। कुछ लोग अपनी बकरियों व गाय को चारा दे रहे थे। कुछ बुजुर्ग लोग घर से निकल कर बाहर बैठे हुए थे। मै घुमता हुआ पंचायत भवन पहुंचा, जहां रात हमने खाना खाया था। थोडी देर बाद बीनू भी आ गया। बीनू और मैने बच्चो को दिए जाने वाले गिफ्ट व बांटे जाने वाली अन्य सामाग्री को अलग कोने में रख दिया। जिससे कोई समान यहां रह ना जाए। क्योकी हमे तकरीबन 2 किलोमीटर नीचे स्कूल में पहुँचना था। समान अलग रख कर मैं वापिस कमरे पर पहुंचा। नहाने व दैनिक कार्यो से निवर्त होकर हम तीनो तैयार थे स्कूल जाने को। हरीश जी ने एक बार और चाय व साथ में खाने के लिए बिस्किट दिए। समय लगभग 7:30 हो रहा था। हम सब पंचायत भवन पहुंचे और कुछ समान लेकर नीचे स्कूल की तरफ चल पडे। स्कूल तक बहुत उतराई थी मतलब आते वक्त बहुत चढ़ाई मिलेगी। हम बिना थके आगे बढ़ चले। हरीश जी पांचवी तक के स्कूल में रूक गए और हमे कहा की मै कुछ काम करके आता हूं आप लोग नीचे बडे स्कूल पर पहुंचे जहां पर आज दोनो स्कूलो का कार्यक्रम होना है।
हम नीचे की तरफ चल पडे। यह पगडंडी बहुत सुंदर है रास्ते में एक जगह छोटा सा झरना भी मिला जिसमे बहता पानी बडी सुंदर ध्वनि दे रहा था। कुछ देर बाद हम स्कूल पहुंच गए। हमसे पहले कुछ साथी भी आ चुके थे। स्कूल के टीचर व बच्चे कार्यक्रम के अनुसार तैयारियों में लगे हुए थे। हमारे हलवाई सब के लिए नाश्ता व बाद में खाने की तैयारियां कर रहे थे। हर कोई कार्य में शामिल था। मैने मोबाईल देखा तो एयरटेल के सिग्नल आ रहे थे घर फोन करके अपना हालचाल व उनका हालचाल बता व सुन लिया। बाकी ऊपर बरसुडी में सिग्नल नही मिल रहे थे। वोडाफोन व बीएसनल के सिग्नल भी कही कही आ रहे थे। स्कूल पर ऊंचाई नापी तो यहा की ऊंचाई लगभग
1120 मीटर दर्शा रही थी मतलब हम दो किलोमीटर में लगभग 200 मीटर नीचे आ गए है। यह स्कूल गांव के शहीद नायक कलानीधी कुकरैती जी के नाम से बना है। आप कश्मीर में तैनात थे और देश के फर्ज निभाते हुए आप शहीद हो गए। यह स्कूल दसवीं तक का है। फिर आगे की पढाई के लिए गांव के बच्चो को गुमखाल से आगे जहरीखाल जाना होता है। शहीद कलानिधि जी अपने हरीश कुकरैती जी के छोटे भाई थे। उनको मेरा नमन है।
सब तैयारी पूर्ण होकर, कार्यक्रम का श्रीगणेश हुआ मतलब शुरूआत दीपक जला कर हुआ। पहले बच्चो के बीच भिन्न प्रकार के खेल आयोजन किये गए। जिसमे रेस, चम्मच रेस, बोरी रेस, रस्सी कुद रेस आयोजित की गई। इनमे से प्रथम, दूसरे व तीसरे नम्बर पर आने वाले प्रतियोगी का नाम पुरुस्कार के लिए नामित किया गया। फिर लडको की कबड्डी व लडकियों की कबड्डी का आयोजन हुआ। बाद मे छोटे बच्चो के बीच भी गुब्बारा फोड प्रतियोगिता कि गई। बाद में कुछ मौखिक व लिखित प्रशन प्रत्योगिता भी हुई। बच्चो ने बडी खुशी खुशी इन सब में भाग लिया। कुछ बच्चो ने हमे अपने राज्य व अपने गांव का कल्चर से भी रूबरू कराया और स्थानीय गीतो पर नृत्य किया। वाकई यह सब देखकर में बहुत अच्छा महसूस कर रहा था। हम लोग पहाड पर जाते है होटल में रूकते है, खाना खाते है इधर उधर घुम कर वापिस आ जाते है और कहते है की पहाड की यात्रा कर आए। जबकी पहाड की असली यात्रा इन गांवो में है इन जैसे कार्यक्रमो में है।
शाम के पांच बज चुके थे कार्यक्रम का समापन होते होते। अब सब ऊपर बरसुडी के लिए चल पडे। मैं, मुस्तफा व गौरव चौधरी एक साथ चल रहे थे। रास्ता अब कठीन लग रहा था क्योकी चढाई बहुत थी और पूरे रास्ते ही चढाई थी। हम कुछ स्थानीय महिलाओं के साथ साथ चल रहे थे। फिर मै उनसे आगे हो गया एक पेड के नीचे खडे खडे सुस्ता रहा था तो वह महिलाएं जो साथ साथ आ रही थी। उनमे से एक महिला ने पूछा की आप कहा के रहने वाले हो मैने बताया की मैं दिल्ली रहता हूं, वह कहने लगी की हम आपस में कह रहे थे की आप यही आसपास के रहने वाले हो क्योकी आप ऊंचाई पर बिना रूके ही चल रहे हो। मै सिर्फ हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा की वाकई मैं बढिया चल रहा हूं, और आगे बढ गया। सच्ची बताऊ मन खुश हो गया था उनकी बातों को सुनकर। अब हम प्राथमिक विद्यालय पहुंचे यहां पर पानी की टंकी थी। पानी पीया और आगे बढ़ गए। चलते चलते बहुत पसीना आ रहा था, कपडे निकालने को मन हो रहा था। पहाड पर ऐसा अक्सर होता हैै चढतेे वक्त पसीना और रूकते ही ठंड लगने लगती है। आखिरकार हम महनत कर पंचायत भवन पहुंच ही गए। यहां पर अभी कोई नही था इसलिए हम सीधा अपने कमरे की बालकनी में पहुंचे और कुर्सी पर बैठ गए। मैने तो बनियान भी निकाल दिया। थोडी ही देर बाद सब पसीना सूख गया और हल्की ठंडी हवा लगने लगी। जल्द ही कपडे पहन लिए। काफी देर तक वही बैठे रहे लगभग आधा घंटे बाद कुछ लोग पंचायती भवन पर बैठे दिख रहे थे। मैं समझ गया था की बाकी के लोग आ गए है।
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वापसी स्कूल से (फोटो जग्गी जी द्वारा) |
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सभी बच्चो को यह गिफ्ट दिया गया जिसे मिलते ही सभी बच्चो के मुख पर ऐसी मुस्कान थी। |
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वो महिलाए जिनके साथ साथ हम ऊपर आए। |
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प्राइमरी स्कूल यहाँ रुक कर पानी पीया गया। |
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वापिस आकर थोड़ा रिलेक्स करते हुए |
थोडी देर बाद डॉक्टर त्यागी जी जो सम्भल (यूपी) से आए हुए थे व सचिन जांगडा जी जो पानीपत से आए हुए थे। उन्होने मुझसे पूछा की चलो आपको टंकी पर ले चलते है। हम सब नहाने जा रहे है। हम तीनो उनके साथ चल पडे। अब हम गांव के पिछली तरफ से नीचे उतर रहे थे। दूर झाली माली देवी का मन्दिर दिखलाई पड रहा था। यह देवी कुकरेतीयों की कुल देवी है। टंकी तक का रास्ता पतली पगडंडी का ही था। बरसुडी के चारो तरफ जंगल ही जंगल है। जहां पर जंगली सुअर, भालू व तेंदुए भी रहते है। यह बात हमारे मित्र मुस्तफा को पता चल गई इसलिए वह बहुत डरा हुआ था। वह थोडा डरपोक किस्म का प्राणी है। खैर हम थोडा चलने पर टंकी पर पहुंच गए। यहां पर एक विशाल बरगद का पेड है और एक बहुत बडी पानी की टंकी है। और हां यहां पर एक शिवालय भी है। हम में से कुछ दोस्त नहाने लगे तो कुछ ने मुंह हाथ ही धौए। मैने केवल मुंह हाथ ही धौए, पानी को छुते ही मुंह से यही निकला की हाय मर गए। इसका मतलब था की पानी बहुत ठंडा था जैसे बर्फ का पानी हो। अब हम तीने ने वापसी की राह पकड ली बाकी कुछ देर बाद आएगे। गांव पहुंचते पहुंचते अंधेरा फैल चुका था। थोडी देर कमरे में रूक कर व रात के कपडे पहन कर, हम खाना खाने पंचायती भवन पहुंच गए। जहां कुछ देर बातो का सिलसिला चलता रहा। हंसी मजाक चल रहा था। ऐसे पल बहुत खास होते है, जब दोस्तो से महफिले गुलज़ार होती है। हम सभी के आने से इस गांव में उत्सव जैसा माहौल बना हुआ था। सभी ने खाना खाया और अपने अपने घरो की तरफ चल पडे। यहां पर मैने घर शब्द का प्रयोग किया है क्योकी गांव के हर घर में कोई ना कोई हम में से रूका हुआ था और हम को लग ही नही रहा था की हम मेहमान है, पूरे गांव वासियों ने हम सबको इतना प्यार दिया की हम उनके घर का एक सदस्य बन गए थे। अब हम भी अपने घर को चल दिए।......
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टंकी की तरफ |
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टंकी का ठंडा पानी |
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टंकी पर बैठे आराम करते हुए दोस्त |
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शिव मंदिर बरसुडी |
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अब हल्का हल्का अँधेरा हो गया था इसलिए हम वापिस चल पड़े। |
यात्रा का अगला भाग
उत्तराखंड में ऐसे बहुत से पिछडे इलाके है जहाँ ऐसे प्रयास होने चाहिए....
जवाब देंहटाएंपहाडों में आपकी चाल तो ठीक है...
शायद आपकी किस्मत में सतोपंथ जाना नहीं लिखा था नहीं तो आप ब्रदीनाथ से लौटते नहीं....
संदीप जी नमस्कार व धन्यवाद।
हटाएंजी आपने सही फरमाया उत्तराखंड में ऐसे गांवो की बहुत बडी सख्या है जहाँ तक अभी भी बहुत सी जरूरतो की कमी है। बाकी शायद पर्यावरण भी इसलिए ही बचा है वहां,, जंगल इसलिए ही बचे है वहां की ज्यादा संसाधन नही है। लोगो की जरूरतें ज्यादा बडी नही है। लेकिन फिर भी प्राथमिक जरूरतों को पूरा करने के संसाधन मिलना इन्हे जरूरी है। बाकी किस्मत का खेल निराला है ही।
वापिस बरसुड़ी पहुंचा दिया भाई... धन्यवाद यादें ताज़ा करवाने के लिये :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कोठारी जी।
हटाएंबढ़िया सचिन भाई.....यादें ताजा कराने के लिए धन्यवाद आपका....बरसुडी जाओ और पानी की टंकी पर ना जा पाओ तो मानो यात्रा में कुछ कमी रह गयी....☺
जवाब देंहटाएंवैसे तो पूरा बरसुडी ही शांत व सुंदर जगह है लेकिन पानी की टंकी जगह बहुत शानदार जगह थी। धन्यवाद आपका जो आप मुझे वहा लेकर गए।
हटाएंशानदार त्यागी न जाने की खलिश है दिल मे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनोद जी।
हटाएंवाह !! वीरों की धरती उत्तराखंड को नमन !! एक बहुत अच्छे प्रयास को आप लोगों ने न केवल आयोजित किया बल्कि सफल भी बनाया !! हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंयोगी जी आप का बहुत बडा योगदान रहा है प्रशन पत्र बनाने में। आपका बहुत आभार
हटाएंआपने गांव में कुछ दिन बीता कर असली घुम्मक्कड़ी की है दूसरे लोगु को भी इससे कुछ सीखना चाहिए
जवाब देंहटाएंउत्तराखंड को बहुत नजदीकी से अगर देखना या जानना है तो वहां के गांव की घुमक्कडी करनी चाहिए। आपका धन्यवाद रावत जी
हटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद, एक उत्तराखण्डी होने के नाते आपका यह प्रयास सुदूर ग्रामों के विद्यार्थियों के जीवन में एक नई स्फूर्ति प्रदान करता रहेगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रवीन चंद्र जी।
हटाएंThis is our village in Uttarakhand :- https://www.facebook.com/%E0%A4%A2%E0%A5%8C%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0-1287013008083213/
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर है यह जगह। शुक्रिया सर
हटाएंमेरा भी प्रोग्राम था बसरूडी जाने का परन्तु नही पहुँच पाया। आगे कभी जरूर पहुँचूँगा।
हटाएंधन्यवाद शैलेंद्र जी। कोई नही भाई आप बरसुडी अवश्य होकर आना। हो सके तो शायद अगले साल भी ऐसा कार्यक्रम हो तब आप चले जाना।
हटाएंबहुत ही सराहनीय पोस्ट...बरसूडि के हर एक पहलु से अवगत कराती हुई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतीक जी। पोस्ट पंसद करने के लिए
हटाएंफोटो और विवरण शानदार,
जवाब देंहटाएंबच्चो के चेहरे पे मुस्कान बढ़िया थी
धन्यवाद वसंत पाटिल जी। जी सच कहां बच्चो के मुख पर वह मुस्कान बहुत बढिया दिख रही थी।
हटाएंआप सभी का योगदान आगे भी ऐसा ही रहे यही कामना करती हूं,,,,,बरसूडी अब आप सबका भी अपना गांव है, सुंदर पोस्ट सचिन हर एक लाइन गांव की याद दिलाती है गॉड ब्लेस्स भाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीदी.. बरसूडी के लोग इतने प्यारे व मिलनसार है की हर कोई यहां बार बार आना चाहेगा। जबही तो हम सभी दोस्त इसे अपना गांव मानते है।
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