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सोमवार, 10 मार्च 2014

ग्वालियर की यात्रा-2

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सिंधिया पैलस व तानसेन का मकबरा
किले से निकलते निकलते दोपहर के 12 बज गए थे.मे इस यात्रा मे केमरा नही ले गया था.सभी फोटो मोबाईल से ही लिये गए थे.तो आगे चलते है हमने एक आटो किया ओर उस से बोला की हमे रूकने के लिए होटल चाहिए कही ऐसी जगह उतार देना जहां होटल मिल जाए,उसने हमे एक चौराहे पर उतार दिया ,चिडियाघर के सामने शायद फूलबाग जगह थी, वही पर सिंधिया पैलस भी था.स्वगर्यी माधव राव सिंधिया का महल व वर्तमान  राजा ज्ययोतिमय राव सिंधिया जो अब काग्रेस पार्टी के बडे लीडर भी है.तो हमने पहले उस मे जाने का फैसला किया,मेरे फोन मे बेटरी खत्म होने वाली थी इसलिए भी मै कमरा पहले लेना चाहता था पर हम सिंधिया पैलस की ओर मुड गए, यह काफी आलीशान महल है,जिसे सिंधिया परिवार अब भी उपयोग करते हे लेकिन कुछ हॉल आम जनता को देखने के लिए एक संग्रहालय के रूप मे खोले हुए है ओर प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से 60 रूपया टिकट भी लगा रखा है ओर केमरा या मोबाईल पर अलग से75 रूपया.मेने दो टिकेट लिए ओर महल मे प्रवेश किया,कुल 19या 20 हॉल जनता को देखने के लिए खोले गए है पहले हॉल मे सिंधिया परिवार का इतिहास फोटो समेत आप देख सकते हे की कौन से राजा ने कब तक शासन किया एक हॉल मे राजशी पोशाके लगी थी,एक हॉल मे बच्चो की साईकल,खिलौने रखे थे,एक हाल मे हथियार रखे थे जैसे तलवार ,गन ,तोपे,व विश्वयुद्ध मे उपयोग होने वाले हथियार,एक हॉल मे सजावट के समान रखे थे वो सब विदेशी वस्तुएं थी,एक हॉल मे फोटो ही फोटो थे एक फोटो मे अमिताभ बच्चन साहब भी हाथ जोडते नजर आए,एक हाल मे भोजन से सम्बधित समान रखा था,बडे बडे झूमर देखे,पूरानी घोडा गाडी देखी.यह सब देखकर हम सिंधिया पैलस से बाहर आ गए.बाहर आकर हम बस स्टैंड के पास होटल नवीन मे 600 रूपये मे एक कमरा लेकर फोन चार्जीग पर लगा कर बाहर खाना खाकर वापिस होटल मे आ गए.होटल मालिक से बात कर के पता चला की कुछ दूरी पर ही सूर्य मन्दिर है पर शाम होने पर वह बन्द हो जाता है इसलिए आप संगीत सम्राट तानसेन का मकबरा देख सकते है हमने उनसे चाय के लिए बोल दिया थोडी देर मे चाय आ गई.चाय पीने के बाद हम तानसेन के मकबरे की तरफ निकल पडे.शाम के 5 बज रहे थे.पैदल पैदल हम आधे घण्टे मे मकबरे पर पहुंच गए.काफी भीड थी यहां पर चारो ओर घास का बगीचा ओर बीच मे तानसेन का मकबरा बना था इसकी इमारत मुगलकालिन शैली जैसी ही बनी थी.यहां पर कव्वालीयॉ चल रही थी कुछ फनकार ढोलक बजा रहे थे लग रहा था की कुछ कार्यक्रम चल रहा है. तानसेन अकबर के नवरत्नो मे से एक थे वह गायक ही नही कवि भी थे उनका देहांत 80 वर्ष की उम्र मे हुआ उनकी अन्तिम इक्छा यह थी उन्हे उनके गुरू मौ० गौस खान की कब्र के नजदीक ही दफन किया जाए.यही मकबरे के पास इमली का पेड भी है ऐसा कहते है की मियॉ तानसेन इसी इमली के पेड के पत्ते चूसते थे अपनी आवाज को मधुर बनाने के लिए.हमे यहॉ घुमते घुमते काफी टाईम हो गया था इसलिए हम होटल की तरफ चल दिए.रास्ते मे एक गोल गप्पे वाला खडा था जिसे देखते ही मेरे साथी खान गोलगप्पे वाले के पास पहुंच गया ओर दौना पकड लिया.गोलगप्पे खाकर आगे चल दिए इस प्रकार हम रात 8 बजे होटल पहुंचे. खाने के लिए बोला तो होटल के मैनेजर बताया की अभी होटल नया बन रहा है इसलिए खाने की सुविधा उपलब्ध नही है हमारा मन अब बाहर जाने को भी नही कर रहा था.थोडी देर मे मैनेजर कमरे मे आया ओर बोला की दाल रोटी चलेगी मै बोला अब कहां से आया खाना तो उसने बताया की होटल की मालकिन जो ऊपर रहती है वे अपने लिए खाना बना रही हे उन्होने ही पूछवाया हे की आप दाल रोटी खाना चाहेगे हमने कहा ले आओ थोडी देर मे अरहर की दाल व रोटी आ गई बिलकुल घर जैसा स्वाद था. खाना खाकर हम तो लेट गए .good night
ग्वालियर यात्रा अभी जारी है............

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