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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

औली की सैर

औली यात्रा भाग 04

पहला भाग 01 पढ़े
04 नवंबर 2019
कल हम बद्रीनाथ में ही रुक गए थे और हमने snowfall होता हुआ भी देखा था। आज सुबह आराम से उठे। उठते ही रूम की खिड़की खोली तो मौसम साफ था धूप निकल रही थी। होटल के दिखता नीलकंठ पर्वत चमक रहा था साथ मे कुछ और पर्वत जो कल हरे भरे दिख रहे थे आज वो भी सफ़ेद हो चुके थे। मैं नहा धोकर होटल में बने रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुँच गया कुछ देर बाद सभी लोग आ चुके थे। सभी ने नाश्ता किया और होटल का हिसाब चुकता कर आगे के सफर पर बढ़ गए। बद्रीनाथ जी से 12 km चलकर जोशीमठ के रास्ते के बीच एक हनुमान जी का मंदिर पड़ता है जिसको हनुमान चट्टी जगह बोला जाता है यहां पर हमने रुक कर प्रसाद चढ़ाया और चल पड़े जोशीमठ की तरफ कुछ समय बाद हम जोशीमठ पहुँच चुके थे। हमे औली जाना था जो जोशीमठ से तकरीबन 12 या 13 किलोमीटर दूर पड़ता है




सुबहे उठा तो नीलकंठ पर्वत चमक रहा था। 

होटल से दिखता बद्रीनाथ व बर्फ से ढंकी पहाड़ियाँ 

होटल जिसमे हम कल रुकें थे। 

बद्रीनाथ से चल दिए। 

हनुमान मंदिर, हनुमान चट्टी 

विष्णु प्रयाग 

औली से कुछ पहले 
औली पहुंच गए 
औली शीतकालीन खेलों के लिए विश्व प्रसिद्ध जगह में से एक है जहां पर स्किंग व अन्य खेल होते है। हम लगभग रुकते रुकते 40 मिनिट में औली पहुँच गए। इधर से बहुत सारे बर्फ से ढके पर्वत दिख रहे थे और जो ऐसे पर्वत थे जो हमे कार्तिकेय स्वामी से नही दिख रहे थे। इन पर्वतों में हाथी घोड़ी पर्वत, नंदा देवी पर्वत, द्रोणागिरी, कॉमेट, नीलकंठ पर्वत आदि मुख्य थे और अन्य पर्वत भी साफ दिखाई दे रहे थे जिनका मुझे नाम भी नही पता था। यह जगह बहुत ही शानदार व सुंदर जगह है। यहां पर दो प्रकार के उड़न खटोला (केबल कार) भी चलते है। जिसमें आप सवार होकर औली पहुँच सकते है। पहला केबल कार जिससे आप सीधे जोशीमठ से ही आना जाना कर सकते है उसके लिए आपको 1200 रुपये प्रति व्यक्ति देना होगा। दूसरी केबल चेयर जो औली से ही मिलती है इसमें आना जाना 500 रुपये प्रति लोगों का लगता है। यह तकरीबन एक किलोमीटर लंबी यात्रा होती है।
हम लोग औली पहुँच कर एक पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके आगे चल दिये। आगे हमे एक मैदान में पहुँचना था इस के लिए दो विकल्प है एक पैदल का रास्ता दूसरा केबल चेयर का हमने दूसरा विकल्प चुना और केबल चेयर पर बैठ गए। चार कुर्सी के साथ जुड़ी होती है जो एक तार पर चलते रहती है। कुछ ही समय बाद यह चल पड़ी। एक और बात इसमे बैठने से पहले ही अपने सभी कीमती सामान आदि को संभाल के पकड़ लेना चाहिए क्योंकि अगर आपका समान गिर गया तो वह आपको नही मिल पाएगा क्योंकि यह ऊपर नीचे, दाँय बांये से एक दम खुली हुई है कोई प्रॉटेशन नही होती है। हम औली के उस मैदान में पहुँचे जो विश्व प्रसिद्ध है। अभी कुछ दिन बाद इधर बहुत बर्फ पड़ जाएगी लेकिन अभी इधर कोई बर्फ नही थी। बाकी औली में इस मैदान के अलावा और कुछ नहीं है, यह एक ढलान नुमा मैदान है इसलिए स्कींग इधर होती है। हम औली में स्किंग सीख भी सकते है। यहां पर एक होटल gmvn का है और क्लिफ टॉप नाम का रिसोर्ट बना हुआ है। लेकिन इधर प्राकृतिक सुंदरता बहुत है इधर से हिमालय के सुंदर नज़ारे बेहद नजदीकी से देख सकते हैं। कुछ दूरी पर देवदार के पेड़ों का जंगल भी दिख रहा था। हम थोड़ा चल कर जंगल के पास पहुँच गए। उधर कुछ दुकाने भी बनी हुई थी ऐसी ही एक दुकान से हमने मैगी बनवा ली। इस जंगल के बीच एक बुग्याल भी है। बुग्याल मतलब एक घास का मैदान होता है। जो 3km आगे जंगल को पार करने के बाद आता है। सभी उसको गुरसो बुग्याल बोल रहे थे। ललित उधर जाना चाहता था लेकिन पता नही क्यो पर मेरा मन बुग्याल जाने को नही हो रहा था। लेकिन फिर मैंने गुरसो बुग्याल जाने का मन बना लिया। ललित चार घोड़े तय कर के ले आया, घोड़े वाले हमे 700 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से गुरसों बुग्याल तक घुमा कर लेकर आयंगे। यदि हम पैदल भी जाना चाहते तब भी आराम से जा सकते थे क्योंकि यह 3 किलोमीटर का रास्ता बिल्कुल भी कठिन नही था और आराम से एक घंटे से पहले ही बुग्याल तक पहुँचा जा सकता था। लेकिन हमारे पास समय कम होने के कारण हमने घोड़े पर ही जाने का निर्णय किया और हम कुछ ही समय बाद गुरसो बुग्याल पहुंच गए। घोड़े वालो ने हमे नीचे उतार दिया।
औली पहुँच पहले गाड़ी पार्किंग में लगाई। 

चारो दोस्त केबल चेयर पर बैठ कर औली के उस मैदान में पहुँचे जो विश्व विख्यात है अपनी सुंदरता के लिए। 

अंकित ,अमित ,ललित और मैं सचिन 

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ललित 
घोड़ो पर सवार हम चले गुरसों बुग्याल। 
गुरसों बुग्याल 
यह एक बड़ा बुग्याल था जैसे रानीखेत में गोल्फ कोर्स मैदान दिखलाई देता है यह उससे भी बड़ा है इधर से नंदा देवी पर्वत को देखना और भी सुंदर लग रहा था। मैं तो कुछ देर सिर्फ और सिर्फ हिमालय के पर्वतों की तरफ ही सम्मोहित हो गया था। कुछ ही दिन बाद यहां पर काफी बर्फ पड़ जाएगी है तब इधर आना मुश्किल हो जाएगा। एक व्यक्ति जो यहा गाइड का काम करता है उसने हमें बताया कि इस बुग्याल से आगे एक छोटा सा पानी का कुंड भी है जिसको लोग देखने जाते है। बुग्याल से कुछ अंग्रेज ट्रैवलर आगे भी जा रहे थे। जिनके पोर्टर से मुझे पता चला कि वह आगे कहीं ट्रैक के लिए जा रहे हैं वैसे इस बुग्याल से नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान 40किलोमीटर दूर है। शायद यह ग्रुप उधर ही जा रहा होगा। हमने बुग्याल में तकरीबन एक घंटा बिताया और वापस घोड़ों पर बैठकर औली आ गए। जिससे हमने मैग्गी खाई थी उसको मैगी के पैसे देकर वापिस केबल चेयर की तरफ बढ़ गए और फिर केबल चेयर (केबल कार ) से वापिसी करते हुए gmvn की बनी पार्किंग में पहुंच गए। जहां से हम अपनी गाड़ी में बैठकर शाम तक बिरही (चमोली) पहुँच गए। रात को यहां पर रुकने के बाद अगले दिन 5 nov को हम सुबह अपने घर दिल्ली के लिए निकल चले और हरिद्वार से होते हुए रात को तकरीबन 8:30 बजे दिल्ली पहुंच गए।
गुरसों बुग्याल और पीछे नंदा देवी पर्वत। 

नंदा देवी पर्वत 

शायद हाथी घोड़ी पर्वत है 

द्रोणागिरी पर्वत 


हाँ यही है नंदा देवी पर्वत 





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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत़ ही सुंदर दृश्यों के साथ शानदार लेखन प्रस्तुति

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  2. बहुत सुंदर दृश्य के साथ तुम्हारा लिखने का अंदाज भी पसन्द आया। कभी ओली की यात्रा करुगी तो तुमसे सम्पर्क करुगी।

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    1. आभार आपका दर्शन कौर उर्फ जगत बुआ जी। बाकी आपके लिए हमेशा उपलब्ध रहूंगा जब चाहें संपर्क कर सकती है।

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  3. बहुत शानदार यात्रा वर्णन, सचिन भाई आप बढिया यात्रा करा रहे हैं। धन्यवाद

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    1. शुक्रिया प्रकाश जी। बाकी इस यात्रा को आपने पसंद किया उसके लिए आभारी हूँ।

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  4. ये सही किया आपने , बदरीनाथ जी के साथ औली की भी यात्रा कर ली आपने और गुरसो बुग्याल तक भी हो जाये .... आपने औली से खूबसूरत पर्वत श्रंखला भी अपने चित्रों के माध्यम दिखा दी ।

    बढ़िया जी

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    उत्तर
    1. भाई जी इस यात्रा पर मैं गया ही इन शर्तों पर कि औली और कर्तिक स्वामी जरूर जाना है। धन्यवाद आपका पोस्ट पसन्द करने के लिए।

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