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सोमवार, 30 मार्च 2020

कार्तिक स्वामी मंदिर ट्रैकिंग यात्रा भाग 02

कार्तिक स्वामी मंदिर की पैदल यात्रा भाग 02

kartikeya swami temple,uttrakhand 

02 नवंबर 2019
मै सुबह लगभग 6:00 बजे उठ चुका था। मुझसे पहले ललित भी उठ गया था फिर मैंने दूसरे कमरे में जाकर अंकित और अमित को भी जगा दिया और उनसे बोल भी दिया कि 7:00 बजे फ्रेश होकर नीचे रेस्टोरेंट पर मिलो हम सभी लगभग 7:00 बजे के करीब रेस्टोरेंट पहुंच गए और हमने नाश्ते के लिए बोल दिया। तब तक हमने अपना सारा सामान गाड़ी में लगा दिया। होटल वाले ने आवाज लगा कर हमसे बोला कि आपके पराठे रेडी हो गए है। नाश्ता करने के बाद ललित ने कहा कि तीन चार पराठे यहीं से पैक करा लेते हैं क्योंकि पता नहीं यहां के आगे कोई ढाबा या होटल मिले या ना मिले। मैंने उसे बोला कि मैंने नेट पर देखा था तथा कुछ यात्रा वृतांत भी पढ़े थे जिसमें बताया गया कि कनक चोरी गांव में कुछ होटल है। लेकिन फिर भी मैं ललित की बात से सहमत हो गया और हमने अपने लिए तीन परांठे साथ में थोड़ा सा आचार पैक करा लिया। होटल का बाकी भुगतान करने के बाद हम वहां से चल दिए। रुद्रप्रयाग से तकरीबन 38 किलोमीटर दूर कनक चोरी गांव है, वहीं से 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है कार्तिकेय स्वामी मंदिर तक के लिए। हम तकरीबन 9 बजे कनक चोरी गांव पहुंच चुके थे। यहां हमने एक दुकान के सामने गाड़ी खड़ी कर दी और उससे मैगी बनाने को बोल दिया फिर गरमा गरम मैगी खा कर और एक पानी की बोतल लेकर हम तैयार थे कार्तिक स्वामी ट्रेक के लिए। कनकचोरी गांव एक छोटा सा गांव है और यह चमोली जिले के अंतर्गत आता है जबकि कार्तिकेय स्वामी मंदिर जो ऊंची चोटी पर बना है वह रुद्रप्रयाग जिले में आता है।


कनकचोरी गाँव की तरफ चल पड़े 

कनक चौरी गाँव पहुँच गए 

हम लोग अब आगे चल पड़े। कुछ स्थानीय लोग जहाँ से यात्रा आरंभ होती है उधर बैठे हुए थे। ये शायद फॉरेस्ट विभाग के कर्मचारी थे। ललित ने इन लोगो से पूछा की मंदिर तक कितने किलोमीटर का रास्ता है? उन्होंने बताया कि यहां से 3 किलोमीटर का रास्ता है और 1 घंटे में यह सफर पूरा हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आज आप लोग ही पहले जा रहे हो। ललित ने पूछा कि रास्ता कैसा है और कोई जानवर तो नही मिल जाएगा? उन्होंने बताया कि रास्ता जंगल से होकर जाता है और जानवरों का किसी भी प्रकार का डर नहीं है। जब यहां पर बर्फ ज्यादा पड़ जाती है तब भालू वगैरह कुछ जानवर आ जाते हैं लेकिन इस मौसम में कोई जानवर रास्ते पर नही आता है इसलिए आप बिल्कुल बेफ़िक्र होकर जाए आपको कोई दिक्कत नही आएगी। यदि आपको लगे कि कोई जानवर आगे है तो आप थोड़ी देर इंतजार करना जब वह नीचे उतर जाए तब अपनी यात्रा प्रारंभ करना। वैसे आप आराम से जाए कोई दिक्कत नही है। उनको धन्यवाद कह कर हमने अपनी यात्रा आरंभ कर दी। हम थोड़ा सा ही चले थे कि एक आंटी मिल गई उनका घर उधर ही है, जहां से यात्रा स्टार्ट होती है। उन्होंने हमें लकड़ी की स्टिक दी इन से हमें ऊपर चढ़ने में आसानी रहेगी उन ऑन्टी ने हम से कहा की वापिसी में यह लकड़ी की स्टिक मेरे घर पर ही रख जाना जिससे अन्य लोगो को भी मदद हो सके। हम सभी ने एक स्वर में जवाब दिया जी ठीक है। हम उनको नमस्कार कर आगे बढ़ गए। वाकई ये ऑन्टी कितनी मददगार है।

कनकचोरी गांव लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर है और कार्तिकेय स्वामी मंदिर की ऊंचाई लगभग 2700 मीटर है। लगभग सारा रास्ता जंगल से होकर जाता है हमे पहाड़ की धार से होता हुआ जाना है। लेकिन रास्ता काफी चौड़ा बना है कहीं-कहीं जंगल की तरफ से कटीले तार भी लगाए गए हैं जिससे जंगली जानवर मुख्य मार्ग पर ना आए और मुसाफिर रास्ता ना भटके इसलिए स्थानीय लोगों ने या जो दर्शन के लिए जाते हैं उनको जगह जगह लाल चुनरी निशानी के तौर पर बांधी हुई है जिससे हमें पता चलता रहता है कि सही रास्ता कौन सा है कई बार मोड़ भी आता है जहां से दो रास्ते अलग हो जाते हैं तो वहां पर भी चुनरी कुछ ऐसे बांधी हुई है जिसकी मदद से हम रास्ता नहीं भटकते है।

ऐसे रास्ते के होकर जाना होता है 
मैं सचिन त्यागी 

हिमालय के दर्शन होते हुए 





चलते चलते ललित थक गया था इसलिए वह एक दो जगह बैठता हुआ ऊपर चढ़ रहा था। बाकी दोनों मित्र अमित व अंकित भी इस यात्रा का पूरा लुफ्त उठा रहे थे। बोल रहे थे कि हम शुरू में तो काफी डर रहे थे कि पैदल कैसे चलेंगे लेकिन यह हमारे लिए बहुत ही अच्छा एडवेंचर टूर हो गया है। बाकी हम चारो एक दूसरे से बोलते हुए चले जा रहे थे। एक मोड़ पर ललित जो सबसे आगे चल रहा था उससे मैंने मज़ाक मज़ाक में बोला कि आगे कोई जानवर खड़ा था ललित तुरन्त चलता चलता रुक गया मैं ललित से आगे निकल कर बोला कि यह मज़ाक था चल आ जा । ललित ने पहले एक छोटा पत्थर आगे फैंका फिर तस्सली कर आगे बढ़ा। ललित भी एक जगह रुक कर मुझ से बोला कि उसे भी अच्छा महसूस हो रहा है और अब थकान भी नही हो रही है। मौज मस्ती से चलते चलते हम लगभग एक किलोमीटर चल चुके थे। इस रास्ते से हिमालय की बर्फ से ढँकी पहाड़ियां जैसे चौखंबा, केदारनाथ, स्वर्गारोहिनी के साथ अन्य भी जिनका मुझे नाम याद नहीं है वह सभी साफ दिखाई दे रही थी। जिनको देखने के लिए भी लोग कार्तिक स्वामी मंदिर आते हैं इन सब का और भी सुंदर नज़ारा ऊपर से दिखाई देता है। अब हम उस स्थान पर पहुंचे जहां से मंदिर 1 किलोमीटर ही रह जाता है और जंगल का रास्ता भी समाप्त हो जाता है। इधर कुछ पंडित लोग रहते हैं उनके घर भी बने हुए है साथ मे कुछ होटल जैसी इमारत भी बन रही थी। यहाँ पर एक पानी का कुंड भी था इससे आगे हमे मंदिर तक सीढ़ियों से होकर जाना है।
ऊपर उस चोटी तक जाना है मंदिर उसी चोटी पर ही है



ललित थक कर बैठ गया 

अंकित व अमित 

चौखम्बा पर्वत 

यहाँ से जंगल का रास्ता समाप्त हो जाता है और सीढियों वाला शुरू हो जाता है 


सीढियों वाला रास्ता जो मंदिर तक बना है 

सीढ़ियों के रास्ता थोड़ा कठिन लग रहा था अर्थात जितना सरल दो किलोमीटर जंगल का रास्ता था लगभग उतना ही कठिन आखिरी का एक किलोमीटर वाला ये सीढ़ियों वाला लग रहा था। लेकिन इस ट्रेक को मैं एक सरल ट्रैक की श्रेणी में ही रखूंगा क्योंकि इसको आप केवल 3 घंटे में कर लेते हो इसलिए यह बहुत ही सरल ट्रेक है लेकिन साथ मे यह एक छोटा ट्रक होने के बावजूद भी एक अच्छा ट्रैक माना जाता है। बहुत से लोग यहां सिर्फ वीडियोग्राफी और फोटोशूट करने ही आते है। अब हम मंदिर पर पहुंच चुके थे। हमे लगभग एक घंटा 15 मिनट लगे मंदिर तक पहुंचने में कनकचोरी गांव से। पहले हमने वहीं बैठ कर अपनी सांसों को शांत होने दिया फिर हमने जूते स्टैंड पर अपने जूते रखे और हाथ धोने के बाद मंदिर की तरफ चल दिये। मंदिर में एक पुजारी जी खड़े हुए थे जिनसे मंदिर के बारे में पूछने पर उन्होंने हमें बताया कि यह जो मूर्ति आप देख रहे हैं यह भगवान कार्तिकेय अर्थात भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र की हड्डियां है जिनको हजारो सालो से पूजा जा रहा है उन्होंने आगे बताया कि एक बार गणेश जी और कार्तिकेय जी में प्रतियोगिता हुई कि जो ब्रह्मांड को पहले नाप लेगा वही श्रेष्ठ माना जाएगा। इसलिए कार्तिकेय जी तो चले गए ब्रह्मांड को नापने के लिए और गणेश जी ने अपने माता-पिता के ही चक्कर लगाकर उनसे बोल दिया कि मेरे लिए तो मेरे माता पिता ही ब्रह्मांड हैं तब भगवान शिव और माता पार्वती ने उनसे खुश होकर ने उन्हें वरदान दिया कि आप सर्वप्रथम पूजन वाले भगवान होंगे और जब यह बात कार्तिकेय जी को पता चली तो वह बड़े क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शरीर का माँस माता पार्वती को भेंट कर दिया और अपनी हड्डियां भगवान शिव को भेंट कर दी और खुद निर्वाण रूप (अदर्शय) रूप में आकर इस क्रोध पर्वत पर तपस्या करने लगे तब से यहा भगवान कार्तिकेय स्वामी जी की पूजा होती है और माना जाता है भगवान कार्तिकेय आज भी यही रहते है।

बस पहुँच ही गए सामने ऊपर मंदिर ही है 

थोडा और ऊपर 



आखिरकार हम मंदिर पहुँच ही गए 

हमने मंदिर में दान दक्षिणा दी और प्रसाद भी चढ़ाया।  भगवान कार्तिक स्वामी के दर्शन करने के पश्चात हम मंदिर के पीछे एक चबूतरे पर बैठ गए और अपने साथ लाये हुए पराठे को खाया। भूख भी बहुत जोरों से लग रही थी वह पराठे खाकर हम तृप्त हो गए। मंदिर से आसपास का दिखने वाला दर्शय बहुत सुंदर लग रहा था लेकिन हिमालय पर्वत की चोटियों को हम देख ना सके क्योंकि वह बादलों में विलीन हो चुकी थी। अर्थात वह हमें दिखाई नहीं पड़ रही थी जो नजारा हम देखना चाहते थे वह हमें नहीं दिख रहा था लेकिन यहां आकर फिर भी हम बहुत हर्ष, आनंदित महसूस कर रहे थे। अंकित, अमित और ललित तीनों दोस्त यहां आकर बहुत खुश थे और इसी खुशी में उन्होंने कहा कि शायद हम इस ट्रैक पर नही आते तो हम कुछ ना देखते हैं आज तुम्हारी वजह से हमने यह सब देखा जिसके बारे में हम तो कभी सोच भी नहीं सकते कि हम यहां आ सकते हैं और तुम ही हमें ऐसी जगह ले कर आए सच में यह हमारे लिए बहुत ही रोमांचित करने वाला एहसास है और आगे भी हम आपके साथ ऐसी जगह जाना पसंद करेंगे। उनकी यह बात सुनकर मुझे अच्छा लग रहा था। अमित ने बताया कि उसको पैदल चलकर ऐसे स्थान पर पहुंचना, जंगल के बीच से निकलना, पुरानी कथाओं को सुनना, एक अलग सी शांति महसूस करा रही है।
बदलो में छिपा हिमालय 

अमित व अंकित 


परांठे और हिमालय

कार्तिक स्वामी मंदिर स्तिथ मूर्ति जिसे कार्तिक स्वामी की हड्डियाँ भी बोला जाता है और पूजा भी जाता है
भैरव नाथ व गौरी माता का मंदिर 

कुछ देर बाद हम ने नीचे उतरना स्टार्ट कर दिया बीच में भैरव जी का मंदिर भी है वहां पर भी हमने दर्शन किए फिर से हम जंगल वाले रास्ते पर आ गए थे अब जंगल स्टार्ट हो चुका था लेकिन अब हमें काफी लोग ऊपर आते हुए दिख रहे थे इसका मतलब है कि यहां पर दर्शन के लिए काफी लोग आते हैं पर ज्यादातर यहां पर स्थानीय लोग ही थे बाहरी पर्यटक यहां पर कम आता है अगर उत्तराखंड सरकार यहां पर कुछ होटल बनाए और अन्य सुविधा दे तो लोगो को अपनी जीविका चलाने का एक बड़ा अवसर प्राप्त हो सकता है। खैर हम जल्दी ही नीचे आ गए हमने पहले सभी लकड़ी की स्टिक को उन ऑन्टी को वापिस दे दिया और उन्हें धन्यवाद भी कहा और नीचे आने के बाद अब हम ने मैगी वाली दुकान पर ही स्पेशल चाय बनवाई और चिप्स खाने के बाद गाड़ी लेकर आगे मोहन खाल होते हुए करणप्रयाग पहुंचे। यहां पर हमने खाना खाया और आगे हमें मुख्य मार्ग पर काफी जगहों पर सड़क निर्माण कार्य की वजह से रुकना पड़ रहा था। कई जगह जाम की स्थिति थी और यहां पर हमें आधे आधे घंटे भी रुकना पड़ा और शाम के तकरीबन 5:00 बजे हम चमोली से कुछ किलोमीटर आगे बिरही में तपोवन नाम से रिसोर्ट में रुक गए इस रिसोर्ट पर मैं और ललित पिछले साल भी रुके थे इसलिए उधर का स्टाफ हमे जनता था और मैंने मोहनखाल में ही रिसोर्ट में फ़ोन लगा कर अपने लिए दो रूम बुक करा दिए थे। कल हम इधर से ही बद्रीनाथ जी के लिए निकलेंगे।

इस यात्रा के अन्य भाग पढ़
भाग 01   

8 टिप्‍पणियां:

  1. जय कार्तिकेय स्वामी।
    आपका यात्रा वृत्तांत आगे की यात्रा में काम आयेगा।
    www.yatrinamas.com

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  2. बहुत़ ही सुंदर। कार्तिकेय स्वामी के भी दर्शन हो गए। चलो आगे चलते हैं आपके साथ। आपकी यात्रा हमारे लिए भी जानकारी उपलब्ध करवा रहीं हैं जय़ देवभूमि उत्तराखंड 🌺 🙏

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    1. धन्यवाद सुनील जी बस ऐसे ही प्रेम बनाए रखे।

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  3. अब ये बताओ कि ललित कौन हैं ,उसका कोई परिचय ही नही दिया:) :)

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    1. मेरा रिश्तेदार है और उसने कई यात्रा मेरे साथ कि हुई है।

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  4. बढ़िया रहा इस यात्रा का ये भाग । कार्तिक स्वामी मंदिर तक ट्रेक यात्रा पढ़कर अच्छा लगा ...... बढ़िया लेखन और चित्र ।

    जय हो कार्तिक स्वामी की

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    1. जय कार्तिक स्वामी की।
      धन्यवाद रितेश जी पोस्ट पसंद करने के लिए।

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